इंडिया और भारत के बीच इस व्यापक फर्क को पहचानिए जिसने नागरिकों की बैद्धिकता को कैद कर लिया है और नागरिक इसे सामान्य तौर पर समझ रहे हैं। देश में ‘फिट इंडिया’ नाम से एक कैंपेन शुरू हुआ है। जिसके तहत इंडिया के सेलिब्रिटी कल्चर के नागरिक एयर कंडीशनर में बैठकर कसरत करते हुए वीडियो बना रहे हैं और और अन्य लोगों को चैलेंज करते हुए इस मुहिम को जनमुहिम बनाने की गुज़ारिश भी कर रहे हैं।
अब देश के भारतीय नागरिकों को इंडियन कल्चर की इस मुहिम के पीछे की वस्तुस्थिती को बारीकी से समझना होगा। क्योंकि इस मुहिम में इंडियन गवर्नमेंट की सरकारी तंत्र की कवायद को इंडियन सेलिब्रिटी ने इसे हाथों-हाथ उठा लिया। अब इस इंडियन मुहिम के पचड़े में भारतीय नागरिकों के कई मौलिक और बुनियादी सवाल खत्म हो गए।
इंडियन मानसिकता के लोगों के लिए देश के समक्ष कोई बड़ी आपदा भले ही दिखाई नहीं पड़ रही हो लेकिन भारतीय नागरिकों के लिए देश के मुंहाने पर कई गंभीर सवाल खड़े हैं। बेरोज़गारी, भुखमरी, पेट्रोल की बढ़ती कीमतें, नागरिकों की असुरक्षा, शैक्षणिक गुणवत्ता, परीक्षा की निष्पक्षता आदि कई गंभीर और भयावह चुनौतियां देश के आगे खड़ी हैं, लेकिन इन जटिल समस्याओं पर ना तो कोई मंत्री मुहिम चलाने की कोशिश करता है और ना ही कोई सेलिब्रिटी प्रधानमंत्री को टैग कर इन समस्याओं को तोड़ने की चुनौती देता है। तो सवाल यही है कि क्या हमारा देश दो नामों के संदर्भ में बंट चुका है। क्योंकि तमाम संसाधनों से पर्याप्त सेलिब्रिटी इन मुद्दों की बात नहीं करते हैं। और जो इन मुद्दों की पीड़ा में उलझा है, वो इन मुद्दों पर बात करना चाहता है और प्रधानमंत्री को टैग करता है तो उस वक्त ना प्रधानमंत्री कोई रिप्लाई करते हैं और न ही कोई मंत्री इसे मुहिम बनाता है।
तो सवाल यही उठता है कि क्या इन सामान्य नागरिकों के सवाल को केवल इस आधार पर तूल नहीं दिया जाता क्योंकि वह भारतीय नागरिक कोई सेलिब्रिटी नहीं है। प्रधानमंत्री 125 करोड़ नागरिकों के देश के जनसेवक होने का दावा करते हैं फिर एक बड़ी संख्या वाली जनता के सवालों का निराकरण क्यों नहीं करते है।
2017 के एक आंकड़ों के अनुसार देश में 18.3 मिलियन युवा बेरोज़गार हैं। बेरोज़गारी पर रोक लगाने के लिए हर साल सरकार को 8.1 मिलियन रोज़गार देने की आवश्यकता है। 15 साल से अधिक वर्ष के आयु में हर साल 1.3 मिलियन लोग प्रवेश कर रहे हैं। SSC परीक्षा पर छात्र धांधली का आरोप लगाते हैं लेकिन सरकार और सेलिब्रिटी मूक दर्शक बने रहते हैं। तो सवाल यही उठता है कि इंडियन यानी सरकार एवं सेलिब्रिटी और भारतीय यानी देश के आम नागरिक के बीच के बढ़ते फासलों को नज़रअंदाज करना कितना मुनासिब होगा।
अगर आम नागरिक सेलिब्रिटी नहीं बन पा रहे हैं तो फिर आम नागरिकों के संघर्षों के चैलेंज को कौन तोड़ेगा। सत्ता-सरकार केवल सेलिब्रिटीज़ और उसके चैलेंज में ही उलझे रहेंगे तो भारत के संघर्षों का चैलेंज और उसका निराकरण कौन करेगा। विचार कीजिये और इसे सामान्य मत समझिये। इसे सामान्य तब माना जाता जब कोई गंभीर सवाल देश के मुंहाने नहीं खड़ा होता।
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