अभी कुछ दिन पहले तक लोग कह रहे थे कि कैराना 2019 का सेमीफाइनल है। जो यहां जीतेगा 2019 में लड़ाई उससे ही होगी। नतीजे आये तो गठबंधन की प्रत्याशी तबस्सुम हसन ने वरिष्ठ भाजपा नेता स्व. हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को हरा दिया। आपको याद होना चाहिए कि कैराना में ही प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पलायन का मुद्दा उठाया था, क्योंकि योगी सिर्फ एक काम बखूबी करते हैं, वो है हिन्दू और मुस्लिम के बीच खाई पैदा करना, दूरियां लाना। हिंदुस्तान विविधताओं का देश है और जब यहां संवैधानिक पद पर बैठा हुआ कोई शख्स ये कहता है कि मैं ईद नहीं मनाऊंगा क्योंकि मैं हिंदू हूं, तो वो सीधे-सीधे उस शपथ का अपमान करता है जो उसने खाई थी। कैराना में, नूरपुर में भाजपा को मिली करारी हार के पीछे कई वजह हैं-
1. अमित शाह को ये अभिमान है कि लोग उन्हें चाणक्य कहते हैं, उनकी व्यूह-रचना के आगे कोई नहीं टिकता। ये उनका अहंकार है।
2. प्रधानमंत्री करीब 80 विदेश यात्राएं कर चुके हैं, उनके पास बागपत में रोड शो करने का वक्त तो है मगर अपने क्षेत्र में हुई 18 मौतों का कोई गम नहीं है। एक तो वो वहां गये नहीं और दूसरा उसी दिन वो रात में कर्नाटक के जश्न में दिल्ली में शामिल थे। आज वाराणसी में गंगा की हालत दयनीय है। मां अपने बेटे को पुकार रही हैं, लेकिन बेटा कहीं बांसुरी तो कहीं ढोल बजा रहा है।
3. गोरखपुर और फूलपुर की हार से भी सबक नहीं लिया गया, ज़मीनी कार्यकर्ताओं को लगातार नज़रअंदाज़ किया गया।
4. लक्ष्मीकांत बाजपेयी वो हस्ती हैं, जिसने मृतप्राय भाजपा को ज़िंदा किया था, आज उत्तर प्रदेश में सबसे ज़्यादा अपमान और उपेक्षा इन्हीं की है।
5. भाजपा को लगता था कि मोदी का मैजिक, शाह की रणनीति और योगी के सुलगते भाषण से कैराना में ध्रुवीकरण हो जाएगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
6. ऑफ द कैमरा मृगांका सिंह भी ये कहती हैं कि पार्टी ने साथ नहीं दिया वरना जीत मुश्किल ना होती।
7. दंगे भड़काने के आरोपी नेताओं पर से केस वापस लेने का ऐलान, गन्ना किसानों का बकाया भुगतान, चुनाव को धर्म जाति के रंग में रंगने की कोशिश हार की मुख्य वजह रही।
8. चुनाव से ठीक पहले सोची समझी रणनीति के तहत जिन्ना का मुद्दा उछालना, भाजपा का ये दांव बेहद बचकाना था।
9. पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों का असर साफ-साफ दिखा।
10. सोशल मीडिया पर मोदी भक्तों की फौज ने एक ऐसा माहौल तैयार करके रखा है कि जो मोदी के साथ है वो राष्ट्रभक्त और जो मोदी का विरोधी है वो देशद्रोही। जब कर्नाटक में विपक्ष एक मंच पर आया तो इन्हीं अनपढ़ और कुपढ़ भक्तों की जमात ने मोदी को शेर बताते हुए विपक्ष पर अमर्यादित टिप्पणी की।
11. इस चुनाव में सबसे बड़ा फैक्टर रहा, विपक्ष की अभेद रणनीति का। जयंत चौधरी ने पूरी विनम्रता से चुनाव संचालन किया। कैराना, शामली और आस-पास के इलाके के लोकल पत्रकार बताते हैं कि जयंत की ज़मीनी पकड़ मज़बूत है और वो बीते 2 सालों से लगातार लोगों से मिल रहे थे। 2013 के दंगों से आई दूरी को खत्म कर रहे थे। अखिलेश यादव को प्रचार अभियान से दूर रखा गया ताकि भाजपा को दंगों के नाम पर घेरने का मुद्दा ना मिले। प्रधानमंत्री हों या अमित शाह ये दोनों भाषण देते-देते विपक्षी नेताओं पर निजी हमले शुरू कर देते हैं। कोई मर्यादा नहीं रखते। लेकिन जयंत ने ऐसा एक भी बयान नहीं दिया।
12. बात विनम्रता की चली है तो चुनाव से इतर एक बात ये कि राजनैतिक कौशल अखिलेश यादव में है, जयंत चौधरी में है, तेजस्वी यादव में है। ये भविष्य की सियासत के लिए शुभ संकेत हैं।
13. बात अगर प्रदेश सरकार की करें तो एक साल की सरकार से इतनी नाराज़गी शायद पहले कभी नहीं रही होगी। मुख्यमंत्री और एक डिप्टी सीएम के संबंध बेहद खराब हैं। हाल ही में मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड आया था जिससे अमित शाह और सुनील बंसल दोनों नाराज़ थे।
14. इस वक्त सरकार और संगठन दोनों की ओवरहालिंग की ज़रूरत है। वरना 2019 में राह मुश्किल ही रहेगी।
15. भाजपा के सहयोगी दल उससे नाराज़ हैं चाहे वो महाराष्ट्र में शिवसेना हो, बिहार में जदयू, उत्तर प्रदेश में ओमप्रकाश राजभर और अनुप्रिया पटेल, चाहे अकाली दल सब में नाराज़गी है।
16. उत्तर प्रदेश के सांसदों का 4 साल का रिपोर्ट कार्ड पासिंग मार्क्स लायक भी नहीं है। सिर्फ जुमलेबाज़ी, नारेबाज़ी, बयानबाज़ी।
17. एक तरफ तो चीख-चीखकर कहा जाता है, ‘इस चौकीदार को 60 महीने दीजिये’ तो दूसरी तरफ लव जिहाद, घर वापसी, ताजमहल, जिन्ना जैसे फिज़ूल के मसले। गज़ब तो ये भी है कि ऐसे बयान बहादुरों पर कार्रवाई करने की हिम्मत ना तो मोदी में है और ना ही शाह में।
भारतीय जनता पार्टी, उसके सहयोगी दल, अमित शाह जी, नरेंद्र मोदी जी, योगी आदित्यनाथ जी आप सभी के लिए आत्म अवलोकन का, आत्म चिंतन का वक्त है। वरना ये देश चंद मिनटों में कुर्सी से खींचकर उतार फेंकता है। ये आप जानते ही हैं। कुछ काम भी कर लीजिए।
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