कॉंग्रेस पार्टी द्वारा रविवार को भले ही राहुल गांधी का नाम प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए सामने लाया गया हो लेकिन, इसके तीन दिन बाद ही आखिर ऐसा क्या हुआ कि कॉंग्रेस अपने ही बयान से पलट गई।
दरअसल, रविवार को राहुल गांधी के नेतृत्व में हुई पहली कॉंग्रेस कार्यसमिति की बैठक के बाद पार्टी ने कहा था कि राहुल गांधी अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री के उम्मीदवार होंगे। लेकिन दो तीन दिन बाद कॉंग्रेस को अपनी बात से पलटते हुए यह कहना पड़ा कि उसे प्रधानमंत्री उम्मीदवार के लिए विपक्ष में से किसी भी ऐसे उम्मीदवार को स्वीकार करने में एतराज नहीं है, जिसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का समर्थन नहीं हो।
कॉंग्रेस की इस तरह की पलटी की सिर्फ दो ही वजहें हो सकती हैं, पहला कि कॉंग्रेस को आभास हो गया है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी चुनाव नहीं जीत सकती है, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में जनता राहुल गांधी पर भरोसा नहीं करेगी। भले ही वर्तमान समय में मोदी सरकार की कई मुद्दों को लेकर अलोचना हो रही है, फिर भी राहुल के मुकाबले मोदी की छवि मज़बूत है और देश की अधिकतर जनता का विश्वास उन पर बना हुआ है।
वहीं दूसरी बात यह हो सकती है कि राहुल के नाम पर विपक्ष सहमत ना हुआ हो। क्योंकि कई खबरों से ऐसा लगता है कि विपक्षी गठबंधन प्रधानमंत्री उम्मीदवार के लिए में बीएसपी (बहुजन समाजवादी पार्टी) की अध्यक्ष मायावती या फिर टीएमसी की अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी की मांग रहा है। राहुल गांधी का नाम लिए जाने के बाद मायावती से लेकर तेजस्वी यादव ने भी विरोध जाताया था।
किसी को भी प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में राहुल गांधी का नाम मंज़ूर नहीं है। ऐसे में कॉंग्रेस को यह डर सताने लगा कि कहीं 2019 में उसे बड़ी पार्टियों के गठजोड़ के बिना ही लोकसभा चुनाव लड़ना पड़े और ऐसा होता है तो पार्टी की हार तय है और 2019 की हार से कॉंग्रेस के वजूद पर सवाल खड़ा हो जाएगा।
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