हम बात कर रहे हैं देश की दो ताकतवर महिला नेताओं बहन जी (मायावती) और दीदी (ममता बनर्जी) की। राजनीति में इन दिनों दोनों ही महिला नेताओं की चर्चा ज़्यादा है। भारतीय जनता पार्टी को हराने के लिए विपक्ष इन दिनों इन्हीं महिला नेताओं की बात कर रहा है लेकिन, कुछ ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से बहन जी इस रेस में दीदी से आगे हैं।
2019 लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद से राहुल गांधी का नाम हटने के बाद इस पद की प्रबल दावेदार बसपा सुप्रीमो मायावती को माना जा रहा है। भारत में वोट बैंक की राजनीति से देखें तो देश में दलित वोट बैंक ज़्यादा है और दलित तबका हमेशा से मायावती के साथ रहा है।
अगर मायावती को विपक्ष, प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाता है तो दूसरी पिछड़ी जातियां भी मायावती के साथ आ सकती हैं। क्योंकि मायावती जिस उत्तर प्रदेश से आती हैं, वहां लोकसभा की 80 सीटे हैं और मायावती अगर समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर लेती हैं तो यूपी में अधिक सीटों पर बसपा-सपा गठबंधन की जीत होगी।
दोनों पार्टियों ने उपचुनावों में ऐसा करके सफलता भी हासिल की है। वहीं दूसरी ओर मायावती की पहचान देश के दूसरे राज्यों में भी है, जहां पर दलित और पिछड़ी जातियों का वोट बैंक ज़्यादा है। तीसरी चीज़ जो मायावती को ममता बनर्जी से आगे करती है, वह है उनका नेतृत्व और सभी धर्मों को साथ लेकर चलना।
अगर हम देखें तो मायावती के शासनकाल में उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था चुस्त दुरुस्त रहती है और वो किसी भी धर्म के खिलाफ नहीं बोलती हैं। इससे बीजेपी से नाराज़ वोटर मायावती के पक्ष में मतदान कर सकते हैं। वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की बात करें तो उनके ऊपर आरोप लगते रहे हैं कि वो मुस्लिम धर्म की तरफदारी करती हैं। ममता के शासनकाल में कई बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या भी हुई है और कानून व्यवस्था को लेकर भी उनकी सरकार की अलोचनाएं हुई हैं।
वहीं ममता बनर्जी उम्र में भी मायावती से बड़ी हैं। तीसरी चीज़ यह कि मायावती की अपेक्षा ममता बनर्जी की हिंदी भाषा पर पकड़ कमज़ोर है, जिसका असर हिंदी भाषी राज्यों में रैलियों के दौरान होगा। जबकि मायावती को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाए जाने पर प्रधानमंत्री मोदी रैलियों में उन पर ज़्यादा हमला नहीं कर सकेंगे। जिससे पूरा फायदा विपक्ष को मिलेगा।
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