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इमरान खान क्या अपनी राजनीतिक कप्तानी में भी कमाल दिखा पाएंगे

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22 गज के दायरे में, 22 खिलाड़ियों के साथ क्रिकेट खेलने के बाद, 22 साल के राजनीतिक सफर या संघर्ष के बाद 11 अगस्त को इमरान खान पाकिस्तान के 11वें वज़ीरे आज़म बनने जा रहे हैं। कप्तान साहब, अपने मुल्क और पड़ोसी मुल्क के साथ-साथ विश्व इतिहास में कैसे वज़ीरे आज़म साबित होंगे? इसका आकलन अभी करना अंधेरे में बटेर मारने जैसा होगा। आने वाले समय में उनके सियासी फैसलों से ही उनका मूल्यांकन किया जा सकता है।

ध्यान रहे, इमरान खान क्रिकेट में भी सफल रहें, बतौर समाजसेवी भी उनका सफर बेमिसाल रहा है, अब वह अपनी राजनीतिक पारी के उरोज़ पर हैं।

परंतु, इस बार पाकिस्तान के वज़ीरे आज़म कुछ तो अलग नज़र आ रहे हैं, जिसको नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है। अगर ध्यान दें, तो 90 के बाद के दशक से पाकिस्तान की हुकूमत कमोबेश 1940-50 दशक की पैदाइश के लोगों के हाथों में रही है। खुद इमरान की पैदाइश भी 1952 की है। परंतु, इमरान खान पाकिस्तान में वंशवादी राजनीति की मुखालफत नहीं कर रहे हैं। दूसरे शब्दों में, उन्होंने पाकिस्तान की सियासत में वंशवादी राजनीति को कुछ समय के लिए राजनीतिक सीमा रेखा के बाहर कर दिया है।

इसी तरह, पाकिस्तानी राजनीतिक फ़िजा में बहुत कुछ हुआ है जो पहले नहीं देखने को मिलता था। मसलन, पाकिस्तान के आम चुनाव में पहली बार ट्रांसजेंडर, जिनको पाकिस्तानी ज़ुबान में खोजा भी कहते हैं आम चुनावों में राजनीतिक भागीदारी के लिए शिरकत कर रही हैं।

इस आम चुनावों में बतौर मतदाता और राजनीतिक भागीदारी में भी महिलाओं की भागीदारी अव्वल रही है। 272 नेशनल असेंबली के सीटों पर 171 महिला उम्मीदवारों ने अपनी दावेदारी पेश की, परंतु पाकिस्तान के चुनाव में महिला मतदाताओं की घटती भागीदारी चिंता का कारण भी है। इन सबों के साथ-साथ पाकिस्तान के चुनावी परिणामों में वहां की आवाम ने आतंकी संगठनों के उम्मीदवारों को पूरी तरह से खारिज़ कर दिया है। इन बातों की चर्चा भारतीय मीडिया में सकारात्मक तरीके से नहीं देखने को मिली।

इमरान खान पाकिस्तान के वज़ीरे आज़म की सूची में दूसरे हैं जिनका रिश्ता क्रिकेट से है। पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ के क्रिकेट खेलने के शौक के बारे में सब जानते हैं पर वह पेशेवर क्रिकेट में सफल नहीं रहें। जबकि पेशेवर क्रिकेट में इमरान खान बतौर कप्तान पाकिस्तान को नई ऊंचाइयों पर ले गए।

बहुत कम लोगों जानते हैं कि इमरान खान और बेनज़ीर भुट्टो ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में सत्तर के दशक में सहपाठी भी थे। इमरान दर्शन, राजनीति और अर्थशास्त्र के छात्र थे और बेनज़ीर ने अंतरराष्ट्रीय कानून, दर्शन और राजनीति विषय का अध्ययन किया। बेनज़ीर ऑक्सफॉर्ड यूनियन की अध्यक्ष चुनी जाने वाली पहली एशियाई महिला थीं और इमरान क्रिकेट में उम्दा प्रदर्शन कर रहे थे।

साथ ही साथ कप्तान साहब, शायद पाकिस्तान के पहले ऐसे वज़ीरे आज़म होंगे, जिन्होंने क्रिकेट के चलते भारत में अधिक वक्त भी बिताया है और उनके शपथ ग्रहण समारोह में जिन विदेशी मेहमानों को आमंत्रित किया है, वे सभी भारतीय हैं।

ऑक्सफोर्ड के दिनों में कार्ल मार्क्स के विचारों के मुरीद रहे इमरान पाकिस्तान की राजनीति में गैर-ज़रूरी सरकारी खर्चों पर अंकुश लगाना चाहते हैं इसलिए भी उन्होंने शपथ ग्रहण समारोह बिल्कुल सादा रखा है। वाज़िब तौर पर इमरान पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के तनाव को जानते हैं। चुनाव में मिली जीत की पहली तकरीर में उन्होंने मुद्रा-कोष अर्जित करने के तनाव पर चर्चा भी की है।

यह वह मोर्चा है जिसपर मौजूदा बन रही सरकार की बड़ी अग्नि परीक्षा है। भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने पर वह कितने खरे उतर सकेंगे यह कहना मुश्किल है, क्योंकि अल्पमत में होने के कारण बहुमत जुटाने के लिए इमरान वहीं करने को मजबूर हो रहे हैं, जिसके लिए वो अब तक नवाज़ शरीफ की आलोचना करते रहे हैं।

कप्तान साहब के ज़्यादातर समर्थक युवा हैं जो नई उम्मीद और जोश से लबरेज़ हैं, जिनको नए पाकिस्तान का वादा भी किया गया है। पाकिस्तान के आतंरिक हालात के लिए ज़रूरी है कि शक्ति के असंतुलन और नागरिक संस्थानों की मज़बूती के साथ सुशासन पर ध्यान दिया जाए। जो कप्तान साहब की मुश्किलों को बढ़ा सकता है क्योंकि यह रातों रात तो नहीं हो सकता है।

मौजूदा पाकिस्तान को बाहरी और आतंरिक दोनों मोर्चों पर बेहतर संतुलन की ज़रूरत है। इसके साथ-साथ इमरान खान की ताजपोशी में सेना की भूमिका को लेकर भी कई तरह की बातें हैं जिसको नज़रअंदाज़ तो नहीं किया जा सकता है।

इन सारी बातों के बीच 11 अगस्त 2018 को एक सादे शपथ ग्रहण समारोह के मौके पर, पाकिस्तान के राष्ट्रपति भवन में पहली बार होगा कि लोग शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री की बीवी को नहीं देख पाएंगे, क्योंकि उनकी तीसरी बीवी बुशरा खान पर्दे में रहती हैं और लोगों के बीच कम आती हैं।

इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह के लिए उनके कुछ भारतीय मित्रों को मिले न्यौते को भारतीय मीडिया देशभक्ति और गद्दारी की बहस बना चुका है। फिलहाल उम्मीद और आशंकाओं के बीच मौजूदा स्थिति तो यही बयां करती है कि कुछ तो अलग है, क्रिकेटर से राजनेता बने, इमरान की कप्तानी में।

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