पूर्व क्रिकेटर और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के प्रमुख इमरान खान ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ले ली है और अब वो पाकिस्तान के 22वें प्रधानमंत्री बन गए हैं।
इमरान खान ने चुनाव कैंपेनिंग के दौरान अपने कौम को एक ‘नया पाकिस्तान’ देने का वादा किया है। मौजूदा समय में पाकिस्तान भारी कर्ज़ में डूबा हुआ है, मुद्रास्फीति के कारण महंगाई आसमान छू रही है, दहशतगर्दी लगातार बढ़ती ही जा रही है, अपराध के मामले दिन-प्रतिदिन नए रिकॅार्ड कायम कर रहे हैं और वैश्विक स्तर पर भी पाकिस्तान की साख पर लगातार सवालिया निशाना खड़ा हो रहा है।
ऐसे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक हालात में इमरान खान के सामने कई मुश्किलें हैं जिन्हें दुरुस्त करना उनके लिए एक गंभीर चुनौती है।
पाकिस्तान में 1970 में पहली बार आम चुनाव हुआ जिसमें शेख मुजीबुर रहमान की पार्टी अवामी लीग को सबसे अधिक सीट जीतने के बावजूद सरकार बनाने नहीं दिया गया। सैन्य ताकतों के सामने पाकिस्तान का तंत्र कमज़ोर पड़ गया और यह चुनाव महज़ एक प्रतियोगिता साबित हुई। इसके बाद से पाकिस्तान के सियासी हालात बिगड़ते चले गए और 1971 में पूर्वी पाकिस्तान एक नया राष्ट्र बांग्लादेश बनकर विश्व के मानचित्र पर स्थापित हुआ।
सैन्य शक्तियों का दबदबा शुरुआत से ही पाकिस्तान की राजनीति का अहम हिस्सा रहा है। ऐसा माना जाता है कि जिसे सैन्य समर्थन हासिल है उसे सत्ता में आने से कोई नहीं रोक सकता। इस बार के चुनाव में भी इमरान खान पर सेना का समर्थन हासिल होने का आरोप तमाम विपक्षी पार्टियों ने लगाया, 2013 के चुनाव में इमरान खान ने यही आरोप नवाज़ शरीफ पर भी लगाया था।
पाकिस्तान के इस आम चुनाव में इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ नेशनल असेम्बली के 272 सीटों में से 116 सीटें जीतकर देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। इस चुनाव में जहां नवाज़ शरीफ की पार्टी को सिर्फ 64 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा, वहीं पीपीपी केवल 43 सीट पर ही अपनी कामयाबी दर्ज करवा पाई। पाक के नेशनल असेंबली में कुल 342 सीटें हैं जिनमें से 272 सीटें जनरल और 60 सीटें महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित होती हैं।
इस बार का पाकिस्तान आम चुनाव पिछले सालों में हुए चुनावों के मुकाबले कई मायनों में अलग था क्योंकि इसी चुनावी माहौल के बीच पनामा पेपर केस की सुनवाई हुई जिसमें पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को 10 साल और उनकी बेटी मरियम नवाज़ को 7 साल की सज़ा सुनाई गई। जिसके बाद से नवाज़ शरीफ की पार्टी पीएमएल (एन) पूरी तरह से नेतृत्वहीन हो गई और इसका सीधा फायदा पीटीआई को पहुंचा।
पिछले एक साल से राजनीतिक उथल-पुथल के कारण पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था लगातार गिरती ही चली जा रही है। डाॅलर के मुकाबले पाकिस्तानी रूपया काफी कमज़ोर हो गया है। आज एक अमेरीकी डाॅलर लगभग 122 पाकिस्तानी रूपए के बराबर है। ऐसी अटकलेंं भी लगाई जा रही हैं कि पाकिस्तान अब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का दरवाज़ा खटखटा सकता है।
मीडिया में ये खबर आते ही अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो का बयान सामने आया जिसमें उन्होंने आईएमएफ को पाकिस्तान को कर्ज़ देने को लेकर चेताया और सोच-समझकर फैसला लेने की बात कही। हालांकि पाकिस्तान की तरफ से अभी तक आईएमएफ को आर्थिक मदद के लिए कोई आधिकारिक पत्र नहीं भेजा गया है।
पिछले कुछ सालों में भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में काफी कड़वाहट आई है। सर्जिकल स्ट्राइक और कुलभूषण जाधव का मामला इन दो सालों में काफी चर्चित रहा। अभी भी पाकिस्तान की ओर से लगातार युद्ध विराम का उल्लंघन हो रहा है। भारत के साथ संबंधों को लेकर इमरान खान कितने गंभीर हैं ये तो वक्त ही बताएगा लेकिन कुछ बेहतर और सकारात्मक कदम वो उठाएंगे कम-से-कम इतनी उम्मीद तो हम कर ही सकते हैं।
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