उत्तर प्रदेश और देश की दलित राजनीति में भूचाल लाने वाली भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आज़ाद को जहां मीडिया और भाजपा विरोधी नेताओं का बड़े पैमाने पर समर्थन मिल रहा है, वहीं दूसरी ओर बसपा प्रमुख मायावती भीम आर्मी से बीएसपी संबंधों को सिरे से खारिज़ कर रही हैं।
भीम आर्मी का जन्म सहारनपुर दलित सवर्ण दंगे के खूनी संघर्ष से होता है जिसके नायक चंद्रशेखर हैं, जो कि प्रोफेशनली अधिवक्ता हैं और कानून के जानकार। चंद्रशेखर के अनुसार भीम आर्मी एक कोचिंग संस्थान चलाती थी, जिसमें दलित-वंचित समुदाय के विद्यार्थियों की पढ़ाई-लिखाई का इंतज़ाम किया गया था वहीं से इसकी शुरुआत होती है।
एक कोचिंग संस्थान से भीम आर्मी का कारवां बढ़ता गया और इसका नेटवर्क पूरे सहारनपुर में फैल गया। आर्मी के नेटवर्क को देखकर स्थानीय सवर्णों को यह सब पचा नहीं कि एक ‘चमार’ का लड़का हमारे सामने सीना तानकर कैसे चल सकता है? वंचितों के स्वाभिमान की रक्षा और सवर्णों की सामंती मानसिकता के खिलाफ विद्रोह का नाम भीम आर्मी पड़ा। इसी विद्रोह के कारण सवर्ण दलित दंगा ने सहारनपुर को कलंकित भी किया।
उसी दौरान चंद्रशेखर को देश की मीडिया दिन दुगना रात चौगुना कवरेज देकर हीरो बनाती है और उभरता है भारत का नया चंद्रशेखर जो साफ-साफ अत्याचार और नाइंसाफी के खिलाफ संघर्ष करने का बिगुल बजाता हुआ सामने आता है।
मीडिया कवरेज के बाद चंद्रशेखर आज़ाद उर्फ पूरे देश में लोकप्रिय हो जाते हैं खासकर दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्गों में इनकी लोकप्रियता खासा देखी गई। यही कारण है कि जब चंद्रशेखर एक कॉल देते हैं तो पूरा संसद मार्ग नीले रंग में रंग जाता है।
इन सबके बीच चंद्रशेखर का मायावती को बुआ संबोधित करना, अपना खून बताना और ठीक उसके विपरीत मायावती की तरफ से बार-बार यह कहना कि चंद्रशेखर से हमारा कोई नाता नहीं है, इससे वे युवा परेशान हैं, जो बीएसपी और भीम आर्मी दोनों को अपना संगठन मानते हैं।
बहन जी द्वारा भीम आर्मी से संबंध विच्छेद को लेकर किए गए प्रेस कॉंफ्रेंस के पीछे क्या कूटनीति हो सकती है? तो आप अपना कंफ्यूज़न दूर कीजिए, बहन जी की कूटनीति यह है कि भीम आर्मी यदि राजनीतिक पार्टी होती तो उसके साथ 10 लोग भी नहीं आते क्योंकि वह सामाजिक संगठन है इसलिए उसके साथ समाज का बड़ा धरा जुड़ा हुआ है।
मायावती जी का चंद्रशेखर से रिश्ता ना जोड़ना शायद इसी कूटनीति का अंग हो सकता है कि यदि राजनीतिक रिश्ते जगजाहिर हो जाएंगे तो फिर यह उभरता हुआ सामाजिक संगठन मुर्झा जायेगा। मायावती चतुर चालाक और विद्वान राजनीतिज्ञों में गिनी जाती हैं शायद उनकी यह कूटनीति सही है।
मायावती और चंद्रशेखर भीम आर्मी के संबंध अंदर ही अंदर गाढ़ी है और इस बात को मायावती बखूबी जानती हैं क्या यह संयोग है कि बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद पर से निष्कासित एक नेता भीम आर्मी में जाता है और उसके राष्ट्रीय मंच से बहन मायावती को प्रधानमंत्री बनाने का उद्घोष करता है।
क्या यह संयोगवश है कि बार-बार मायावती द्वारा रिश्ते पर कटाक्ष और बीएसपी से भीम आर्मी का कोई भी रिश्ता नहीं होने के प्रेस कॉंफ्रेंस के बावजूद भीम आर्मी के शीर्ष नेतृत्व और चंद्रशेखर भी मायावती को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं।
यह संयोग नहीं बल्कि सहयोग की मायावी कूटनीति है और वर्तमान में भीम आर्मी खासकर युवाओं में जितनी जगह बना पाई है वह बड़े परिवर्तन की ओर इशारा करती है। शायद इसलिए मायावती ने अपने दूत जय प्रकाश सिंह को भीम आर्मी में भेजकर डैमेज कंट्रोल करने का प्रयास किया है।
अब आप लोग समझ गए होंगे कि मायावती क्यों चंद्रशेखर से अपना रिश्ता नहीं जोड़ना चाहतीं और पर्दे के पीछे बहुजन समाज पार्टी के नेता भीम आर्मी के नेताओं से मिलकर सहानुभूति लेने और देने में भी पीछे नहीं हट रहे हैं।
इससे यह बात साफ हो जाती है कि बहुजन समाज पार्टी भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर के साथ है और वह नहीं चाहती कि एक सामाजिक संगठन जो युवाओं में खास प्रभाव डाल चुकी है उसका विघटन हो जाए। यदि राजनीतिक संबंध उजागर होंगे तो सामाजिक संगठन का विघटन निश्चित है।
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