साल 2018 का ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स‘ जारी होने के साथ ही भारत से भूखमरी दूर करने की मोदी सरकार की कोशिशों पर पानी फिर गया। 119 देशों की सूची में भारत को 103वां स्थान प्राप्त हुआ है, जबकि साल 2017 में भारत 100वें स्थान पर था। ये आंकड़े इसलिए भी परेशान करने वाले हैं क्योंकि नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से लागातार ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत फिसड्डी साबित हो रहा है।
उल्लेखनीय है कि साल 2014 में ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ में भारत 55वें स्थान पर था, जबकि साल 2015 में 80वें और साल 2016 में 97वें पायदान पर था। पिछले वर्ष से तुलना की जाए तो भारत के रैंक में तीन अंकों की गिरावट हुई है।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स के ये आंकड़े मोदी सरकार की कार्यशैली पर ज़बरदस्त प्रहार करती दिखाई पड़ती है। गरीबी और भूखमरी दूर करने को लेकर सरकार की ओर से लगातार योजनाओं का हवाला दिया जाता रहा है।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की ‘2018 बहुआयामी वैश्विक गरीबी सूचकांक’ की मानें तो वित्त वर्ष 2005-06 से 2015-16 के बीच भारत में 27 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकल गए हैं। अभी हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 73वें सत्र में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसके लिए भारत की तारीफों के पुल भी बांधे।
आपको बता दें कि मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते साल 2013 में ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ में भारत 55वें स्थान पर था। अब साल 2018 में भारत की स्थिति पड़ोसी देश जैसे, नेपाल और बांग्लादेश से भी खराब है। नेपाल 72वें और बांग्लादेश को 86वें पायदान पर है। जबकि बेलारूस को शीर्ष स्थान प्राप्त है।
क्या है ग्लोबल हंगर इंडेक्स
विभिन्न देशों में लोगों को खाने की चीज़ें कितनी और कैसे मिलती है यह दिखाने का साधन है ग्लोबल हंगर इंडेक्स। जीएचआई का आंकड़ा हर साल अक्टूबर के महीने में जारी किया जाता है। इसके ज़रिए पूरे वर्ल्ड में भूख के खिलाफ चल रहे अभियान की उपलब्धियों और नाकामियों को दर्शाया जाता है।
जीएचआई की सूची तैयार करने का पैमाना
- अंडर नॉरिशमेंट: देश के कितने लोगों को ज़रूरत के हिसाब से कम भोजन मिलती है।
- चाइल्ड वेस्टिंग : पांच वर्ष से कम के कितने बच्चों में लंबाई के हिसाब से वजन कम है।
- चाइल्ड स्टनिंग: पांच वर्ष से कम के कितने बच्चों में उम्र के हिसाब से लंबाई कम है।
- चाइल्ड मॉर्टलिटी रेट : बाल मृत्यु दर की गणना को भी शामिल किया जाता है।
आपको बता दे जीएचआई के आंकड़ों के मुताबिक चाइल्ड वेस्टिंग के अलावा अन्य तीन पैमानों पर भारत पहले से सुधार की तरफ है, जबकि चाइल्ड वेस्टिंग एक गंभीर समस्या बनी हुई है। साल 2000 में भारत की चाइल्ड वेस्टिंग रेट 17.1 थी, साल 2005 में 20 प्रतिशत और अब साल 2018 में यह आंकड़ा 21 प्रतिशत पर पहुंच चुका है।
जीएचएस आंकड़ों के मुताबिक साउथ एशियाई देशों की चाइल्ड वेस्टिंग दर अन्य देशों के मुकाबले सर्वाधिक है। इसके अलावा साउथ एशियाई देशों में अकेले भारत की चाइल्ड वेस्टिंग दर सबसे अधिक है।
जीएचएस की माने तो साउथ एशियाई देशों में बढ़ते चाइल्ड वेस्टिंग के आंकड़ों के पीछे स्तनपान भी बड़ी वजह है। गरीबी के कारण औसत महिलाएं अच्छी खान-पान नहीं ले पाती हैं जिस वजह से उनका शरीर खुद ही कमज़ोर हो जाता है। ऐसे में स्तनपान के ज़रिए बच्चे को भी ज़रूरी पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं।
अब भारत सरकार के सामने बड़ी चुनौती के तौर पर सिर्फ भूखमरी ही नहीं है बल्कि चुनावी ज़ुमलेबाज़ी के दौरान इस संदर्भ में कही गई तमाम बातें झूठी साबित होती दिखाई पड़ रही है। क्या इन चीज़ों पर सरकार को एक बार फिर से समीक्षा नहीं करनी चाहिए?
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