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“महिला पत्रकार पर मानहानि का केस ठोकने से आप सही साबित नहीं हो जाएंगे मंत्री जी”

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पिछले कुछ वक्त से भारत में जिस तरीके से #MeToo के ज़रिए बड़े-बड़े नाम सामने आ रहे हैं, उससे यह स्पष्ट है कि बदलाव की हवा बहनी शुरू हो चुकी है। इस मुहिम का उद्देश्य केवल महिलाओं के साथ शोषण करने वालों को सलाखों को पीछे पहुंचाना नहीं है बल्कि पुरुष प्रधान देश में महिलाओं के लिए गंदी मानसिकता रखने वाले पुरूषों के लिए एक सबक भी है। ये मुहिम खासकर उन रसूखदार लोगों के लिए एक संदेश भी है जो अपने ओहदे का फायदा उठाकर ये सोच रहे थे कि हमारा तो कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता।

जब भारत में #MeToo की शुरुआत हुई तब बॉलीवुड और सरकार में बैठे कुछ लोगों ने यहां तक कह दिया कि इसका कोई मतलब नहीं है, क्योंकि इतने सालों बाद लग रहे आरोपों को साबित नहीं किया जा सकता।

#MeToo आंदोलन के ज़रिए समाज की लड़कियों और महिलाओं को काफी बल मिली है। इसका प्रमाण है विदेश राज्यमंत्री एमजे अकबर का इस्तीफा देना। पत्रकार प्रिया रमानी ने 8 अक्टूबर को अकबर के बारे में एक ट्वीट किया था, जिसके बाद अब तक 16 महिला पत्रकार अकबर के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप लगा चुकी हैं और 20 महिलाएं उनके खिलाफ गवाही के लिए तैयार हैं।

एक-एक कर इन महिलाओं के सामने आने से आम लोगों की ही नहीं बल्कि राजनीतिक गलियारों के बड़े चेहरों की भी नींद उड़ गई। यहां तक कि भाजपा की विधायिका ने #MeeToo अभियान को ही कटघरे में खड़ा कर दिया।

हद तो अब हो गई जब एमजे अकबर ने महिला पत्रकार प्रिया रमानी के खिलाफ मनहानि का केस दायर कर दिया। आपराधिक मानहानि की धारा आईपीसी 499 और 500 के तहत उन्होंने केस दायर किया है। इस धारा के तहत दोषी पाए जाने पर दो साल तक की सज़ा का प्रावधान है।

एक महिला गलत हो सकती है, चलो मान लेते हैं चार-पांच महिलाएं भी गलत बोल सकती हैं लेकिन यहां तो 20 महिलाओं की फौज ने मंत्री साहब पर आरोप लगाए हैं। ऐसे में मानहानि का केस दायर करते हुए मंत्री जी ने अपनी बौखलाहट ज़ाहिर कर दी है और इससे वे खुद को दोषमुक्त नहीं कर सकते।

हद की सीमाएं तो अब और भी टूट चुकी है जब एक लिखित बयान में उन्होंने खुद को बेकसूर बताते हुए आरोपों को पूरी तरह गलत और मनगढ़ंत बता दिया। उन्होंने कहा, झूठ के पैर नहीं होते लेकिन उसमें ज़हर होता है जिसे उन्माद में बदला जा सकता है।

शुरू में ऐसा लगा था कि महिलाओं की आवज़ें दब जाएंगी और आगे कुछ होने वाला नहीं है। अब इसे सोशल मीडिया की ताकत ही कह लीजिए जहां कुछ दबता नहीं, बल्कि उजागर होता है।

पुलिस के बड़े अधिकारी भी रसूखदार नेताओं के आगे नतमस्तक होकर उनकी जी-हुजूरी करने में जुट जाते हैं। अब जब महिलाओं ने उन्हें सबक सिखाने का ज़िम्मा ले लिया है तब इसकी सराहना की जानी चाहिए। महिलाएं बता रही हैं कि शोषण सिर्फ बलात्कार करने से ही नहीं होता बल्कि गलत तरीके से देखने और बात करने से भी असहज हो जाती हैं महिलाएं।

मंत्री जी का इस्तीफा भारत में #MeToo आंदोलन की जीत के साथ-साथ मंज़िल तक पहुंचने के लिए लिया गया पहल कदम है। महिलाओं को अपनी आवाज़ बुलंद ही रखनी चाहिए, क्योंकि दुनिया में सम्मान से जीने का अधिकार सभी को है और उसमें महिलाएं भी शामिल हैं।

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