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“मेरे लोको पायलट दोस्त ने बताया रेल की पटरी पर खड़ा होना आत्महत्या करना है”

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भारतीय रेल के बारे में कुछ बातें मैं लिखने जा रहा हूं, जिसे मेरे एक मित्र ने मेरे साथ साझा किया है। मेरे दोस्त को अपने काम का अनुभव बताना और मुझे दूसरों के अनुभव सुनना बहुत अच्छा लगता है। मैं हर समय खाली ही रहता हूं तो मेरा दोस्त अपने काम से जुड़ी फ्रस्ट्रेशन मुझे बता कर हल्का महसूस करता है। इत्तेफाक से अभी वह भारतीय रेलवे में लोको पायलट है। वह ट्रैन के केबिन, शेड और पटरियों के इर्द-गिर्द होने वाली सभी अच्छी, बुरी, खतरनाक और मज़ेदार गतिविधियों को बेहद मज़ाकिया ढंग से बताता है। वह बताता है कि ट्रेन को शेड से निकालने से पहले पूरा इंस्पेक्ट किया जाता है और यह सब रजिस्टर में दर्ज होता है। इस प्रक्रिया में घंटों लगते हैं।

वह बताता है कि दिल्ली के कई इलाकों में कुछ ऐसी जगहों से ट्रेन लेकर निकलता है, जहां लोगों की ज़िन्दगी रेल की खतरनाक पटरियों के बीच ही कटती है।

लोगों के घर पटरियों के इतने पास होते हैं कि वहां से लोको पायलट चलती ट्रेन से ही बाहर लपक कर बाल्टी, मग्गा, तौलिया उठा सकता है। लोग पटरियों पर आराम से बैठ कर धूप सेंकते रहते हैं, ट्रैन जब हॉर्न बजाते हुए नज़दीक आती है, तब सब एक-एक करके धीरे-धीरे उठते हैं और ट्रेन के निकलते ही फिर बैठ जाते हैं, कोई हड़बड़ी, कोई डर नहीं, ना पटरियों पर बैठे लोगों को और ना ही इंजन में बैठे लोको पायलट को। मेरे दोस्त जैसा कोई नया असिस्टेंट लोको पायलट इतनी भीड़ देखकर घबराहट में अगर ज़्यादा हॉर्न बजा दे, तब लोग नाराज़ होकर पत्थर भी मारने लगते हैं।

अपने अनुभवों का ज़िक्र करते हुए मेरा मित्र बताता है, किसी सुनसान रास्ते में ट्रेन चली जा रही है, दूर कोई पटरी पर लेटा हुआ सा दिखाई पड़ रहा है, लोको पायलट ब्रेक लगाकर गाड़ी रोक लेता है, मेरा दोस्त नीचे उतर कर देखने जाता है, नीचे जाने पर पता चलता है कि एक 24-25 साल का लड़का अपनी गर्दन पटरी पर सटा कर लेटा हुआ है। मेरा दोस्त उसको डांट कर भगाता है लेकिन वो कहता है कि गाड़ी मेरे ऊपर से ही ले जाओ। पता चलता है कि उसको प्यार में धोखा मिला है इसलिए वह जान देना चाहता है। मेरा दोस्त उसको खींच कर बाहर भगाता है और ‘ज़िन्दगी रहेगी तो बहुत लड़कियां मिलेंगी’ का ज्ञान भी देता है।

किसी सुनसान जगह पर रेड लाइट के सिग्नल पर इंतज़ार करना लोकल अपराधियों की वजह से काफी खतरनाक हो सकता है। वो बताता है कि किस तरह से 8-10 हथियारबंद अपराधियों के हमले से उसे केबिन छोड़कर  भागना पड़ता है और इंजन रूम में खुद को घंटों बंद करके उसकी और उसके साथी की जान बच पाती है।

वो बताता है,

एक अधेड़ आदमी जो शायद ट्रेन की आवाज़ सुन नहीं पाया और अचानक पटरियों के बीच में आ गया। उस आदमी ने पल भर के लिए सीधे मेरे दोस्त की आँखों में देखा, शायद आखरी बार। मेरे दोस्त ने बताया कि मैंने उस व्यक्ति की आँखों में और जीने की हसरत देखी थी। वो मरना नहीं चाहता था लेकिन मौत को सामने देख कर बेबस हो गया।

अपने अनुभवों को साझा करते हुए आगे कहता है कि लोग किस तरीके से बेपरवाह होकर पटरियों पर घूमते रहते हैं और ट्रेन के हॉर्न बजाने पर भी नहीं हटते। जब ट्रेन एकदम करीब आ जाती है, तब स्टाइल मारते हुए बगल हो जाते हैं। वो ये भी बताता है कि कैसे छोटे-छोटे लौंडे इसी तरह ट्रेन रूकवाकर ड्राइवर से मज़े लेकर चले जाते हैं। लोको पायलट इंसान क्या, जानवरों के लिए भी गाड़ी रोक देता है लेकिन वह ऐसा तभी करता है जब गाड़ी रूकने लायक हो। गाड़ी अगर 100-120 की रफ्तार से आ रही होती है और अचानक कोई कूद पड़ता है, तब ब्रेक नहीं लगाया जा सकता।

दुर्घटना होने पर सरकारी प्रक्रियाएं फॉलो करना भी पब्लिक की वजह से कभी-कभी बहुत मुश्किल हो जाता है, क्योंकि लोगों का आक्रोश सीधे-सीधे ड्राइवर पर होता है, चाहे उसकी गलती हो या ना हो।

अमृतसर हादसे में भी ड्राइवर हॉर्न बजाते हुए स्पीड में निकला है, शायद उसने सोचा होगा कि लोग हट जायेंगे। लोग ऊंचाई के कारण ट्रैक पर चढ़े थे ताकि रावण दहन ठीक से दिखाई दे। रावण तो दिख गया लेकिन पटाखों के शोर में ट्रेन नहीं दिखी। भीड़ का मनोविज्ञान भी अजीब होता है, भीड़ में किसी की ज़िम्मेदारी नहीं रह जाती। भीड़ में एक आदमी अपनी ज़िम्मेदारी दूसरे पर डाल देता है और सोचता है कि बगल वाला देखेगा और बगल वाला अपने बगल वाले के कंधे पर यह ज़िम्मेदारी दे देता है। इस तरह से सभी बेपरवाह हो जाते हैं। जो हुआ वह बेहद दु:खद है लेकिन रेल की पटरी पर खड़ा होना आत्महत्या करने जैसी चीज़ है।

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