Quantcast
Channel: Politics – Youth Ki Awaaz
Viewing all articles
Browse latest Browse all 8248

“अंबेडकर की पुण्यतिथि के दिन ब्राह्मणवाद को मज़बूत करने की साजिश रची गई थी”

$
0
0

जैसे-जैसे 6 दिसंबर आने को होता है, धर्म कुछ नया मोड़ लेने लगता है। 26 साल पहले मस्जिद गिराने से शुरू हुआ यह सिलसिला भारतीय संविधान के आदर्शों पर आघात तो है ही साथ ही यह ऐसा षडयंत्र है जो रचा किसी के नाम पर जा रहा है (मुस्लिमों के खिलाफ), जिसका वास्तविक लक्ष्य कुछ और है, वहीं लाभ की बात किसी और की हो रही है (हिन्दू) लेकिन उससे अंततः लाभ पा कोई और रहा है।

रोचक तथ्य यह है कि साल के 365 दिनों में धर्म का पहिया 6 दिसंबर के आस-पास ही क्यों रुकता है। इस विकट परिस्थिति में राम और अंबेडकर एक दूसरे के आमने-सामने खड़े हो जाते हैं। 6 दिसंबर 1992 को अंबेडकर की पुण्यतिथि के दिन बाबरी मस्जिद विध्वंस से यह पहिया चला जो हमें उन परिस्थितियों में ले गया जिन्हें यूरोप 14वीं, 15वीं शताब्दी में त्याग चुका था। इसने राजनीति में धर्म के मिश्रण को दृढ़ किया, जो पहले अंतर्निहित था वह अब सुस्पष्ट रूप में दिखने लगा।

1947 के बाद के वर्षों में जहां नई आकांक्षाओं के साथ देश बन रहा था, विकास, विज्ञान, अधिकारों के मुद्दों की नींव पर लोकतंत्र मज़बूत हो रहा था वहीं 1992 की बाबरी विध्वंस की घटना ने धर्म को आगे की पंक्ति में लाकर खड़ा कर दिया। यह देश का दुर्भाग्य था कि धर्म विकास, लोकतंत्र व अन्य सभी मुद्दों को पछाड़कर आगे निकल गया। इससे मुख्यधारा के दोनों बड़े राजनीतिक दलों ने बहुत लाभ लिया है, चाहे कोई पक्ष में हो या विपक्ष में, केंद्रीय मुद्दा तो धर्म/मंदिर ही है।

इस घटना के 3 मुख्य प्रभाव भारतीय समाज, राजनीति पर दिखते हैं। पहला बहुसंख्यक/भीड़तंत्र का लोकतंत्र को प्रतिस्थापित करना, दूसरा सामान्य जन का गांव के भगवान, लोक देवी-देवताओं से शहरी भगवान ‘राम’ की और गमन, तीसरा मंडल आयोग की रिपोर्ट के बाद पिछड़े समुदायों को वर्ग ना बनने देना। साथ ही 1990 में भारत रत्न दिए जाने के उपरांत अंबेडकर के मुख्यधारा में प्रसार को रोकना।

यह मात्र बहुसंख्यकवादी लोकतंत्र/भीड़तंत्र का ही प्रसार नहीं बल्कि यह इतिहास के साथ खिलवाड़ की भी शुरुआत थी, जिसमें मध्यकाल से प्राचीन काल में गमन की शुरुआत हुई। यही कड़ी वर्तमान शहरों के नाम परिवर्तन, शिक्षा पाठ्यक्रम में परिवर्तन के रूप में जारी है।

लोक देवताओं से शहरी भगवान राम की ओर गमन प्रतिक्रियावादी तत्वों की विकास की ही परिभाषा है। जो 80 व 90 के दशकों में टेलीविज़न के शुरुआती युग में रामायण आदि नाटकों से शुरू हुई, जो वर्तमान में बच्चों के कार्टून नाटकों से वाहनों पर लगे पोस्टर के रूप में जारी है।

यह मंडल आयोग रिपोर्ट के बाद आरक्षण के अधिकार के कारण एकजुट होते पिछड़े वर्गों, दलितों, आदिवासियों को तोड़ने का षड्यंत्र था। दशकों से और सभी मुख्यधारा की पार्टियों द्वारा भुलाये अंबेडकर को 1990 में भारत रत्न के बाद मुख्यधारा में आने से रोकने का षड्यंत्र था। 6 दिसंबर 1992 को मस्जिद का ढहना व अयोध्या मंदिर विवाद का राजनीति के केंद्र में आना इसका ही परिणाम है।

इस षड्यंत्र में जहां 80-85% आबादी को इतिहास का संदर्भ देकर 13% आबादी से डर के विरुद्ध एकजुट रहने को कहा जा रहा है, वहीं इस डर के षड्यंत्र में 5-10% वर्ग शेष 90% को उपर्युक्त विकास और लोकतंत्र के सपने में गुमराह कर सत्ता और संसाधनों का लाभ पा रहा है।

6 दिसंबर 2018 को अयोध्या में धर्म संसद प्रतिक्रियावादी वर्ग के इसी विकासवादी लक्ष्य की रणनीति है। परिणामस्वरूप भारत में ब्राह्मणवाद और मज़बूत होगा। राम राज्य आने को है, पहला शम्बूक तो मुस्लिम बनाये गए, अब देखना यह है की अगला शम्बूक कौन होता है ।

The post “अंबेडकर की पुण्यतिथि के दिन ब्राह्मणवाद को मज़बूत करने की साजिश रची गई थी” appeared first and originally on Youth Ki Awaaz and is a copyright of the same. Please do not republish.


Viewing all articles
Browse latest Browse all 8248

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>