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“क्या करतारपुर गलियारे के ज़रिए पाक अपनी छवि सुधारना चाहता है?”

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करतापुर गलियारा सिखों की चिर लंबित मांग होने के बाद भी पूर्व की सरकारों द्वारा इसमें कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई गई थी। इस कारण आज तक यह परवान नहीं चढ़ पाया था। केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने गुरु नानक देव की 550वीं जयंती से एक दिन पहले 22 नवंबर को गलियारे के निर्माण का फैसला लिया। पंजाब के गुरदासपुर ज़िले के डेरा बाबा नानक से अंतरराष्ट्रीय सीमा तक करतारपुर गलियारे की इमारत और विकास को मंज़ूरी दे दी गई है।

करतारपुर गलियारा सिखों के लिए सबसे पवित्र जगहों में से एक है। करतारपुर साहिब सिखों के प्रथम गुरु, गुरु नानक देव ने अपने जीवन के आखिरी लगभग साढ़े 17 साल यहीं गुज़ारे थे। उनका सारा परिवार वहीं बस गया था। कहा जाता है कि उनके माता-पिता और उनका देहांत भी वहीं हुआ था। इस लिहाज़ से यह पवित्र स्थल सिखों की आस्था से जुड़ा धार्मिक स्थान है। पहला गुरुद्वारा भी इसे ही माना जाता है।

भारत ने 22 नवंबर को करतारपुर गलियारे को विकसित करने का फैसला लिया और इसके ठीक 6 दिनों बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने करतारपुर साहिब में इसका शिलान्यास कर दिया। शिलान्यास में भारत की ओर से केंद्रीय मंत्री हरसिमरत बादल कौर और हरदीप पुरी के साथ पंजाब के कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू विशेष तौर पर मौजूद रहें। हालांकि सिद्धू का यह आधिकारिक दौरा नहीं था।

इसके अलावा भारत से सिख समुदाय के लोगों ने भी शिलान्यास में भाग लिया। यह दोनों देशों का ऐसा फैसला है, जिसने दोनों को एक-दूसरे के करीब ला दिया। इस फैसले से अगर दोनों देशों के रिश्ते बेहतर होंगे तब इतिहास में लंबे वक्त तक याद किया जाएगा लेकिन ऐसा प्रतीत होता कम ही दिख रहा है, क्योंकि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने शिलान्यास के दौरान एक बार फिर कश्मीर का राग अलापा है। दोनों देशों के बीच में विवाद का प्रमुख कारण कश्मीर और आतंकवाद का मुद्दा ही है। ऐसे में कश्मीर का राग अलापना पाकिस्तान की कूटनीति भी हो सकती है। भारत को इस मुद्दे पर सतर्कता बरतने की आवश्यकता है।

अलग-थलग पड़े पाक को छवि सुधारने का मौका

विश्‍व में पाक की स्थिति आज क्‍या है, इससे कोई अंजान नहीं है। आतंकवाद को बढ़ावा देने और टेरर फंडिंग पर लगाम ना लगा पाने की वजह से पाकिस्तान आज अलग-थलग पड़ा हुआ है। ऐसा लगता है कि मौजूदा अकेलेपन से छुटकारा पाने की चाहत में पाक ने करतारपुर गलियारे के लिए हामी भरी है। कुल मिलाकर देखा जाए तब करतारपुर गलियारा पाकिस्तान के लिए छवि सुधारने का मौका था, जिसे उसने लपक लिया है।

खालिस्तानी समर्थक की उपस्थिति, कहीं साजिश तो नहीं

करतारपुर गलियारे के शिलान्यास के दौरान इमरान खान ने इतिहास भुलाकर नए रिश्ते की नींव रखने की बात कही लेकिन इसके पीछे पाकिस्तान के असली इरादे कुछ और ही तो नहीं हैं? पाकिस्तान और इमरान की नियत पर उसी वक्त से सवाल उठ रहे हैं, जब इमरान के सरकारी कार्यक्रम में भारत के दुश्मन खालिस्तानी गोपाल सिंह चावला को मेहमान बनाया था।

गोपाल सिंह चावला आतंकी हाफिज़ सईद का करीबी होने के साथ-साथ पाकिस्तान गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का महासचिव भी है। उसकी चाहत भारत के पंजाब को तोड़कर खालिस्तान बनाने की है। इसके बावजूद अगर पाकिस्तान की साजिश पर कोई शक हो तब उसे पाकिस्तान के ही विदेश मंत्री ने खत्म कर दिया। एक बार फिर शाह महमूद कुरैशी का वह नापाक बयान आया जिससे पाकिस्तान बेनकाब हो रहा है। कुरैशी ने गुरुवार को कहा कि ऐतिहासिक करतारपुर गलियारे के शिलान्यास कार्यक्रम में भारत सरकार की मौजूदगी सुनिश्चित करने के लिए प्रधानमंत्री इमरान खान ने एक ‘गुगली’ फेंकी है।

पड़ोसी है मगर सावधान रहने की ज़रूरत

शाह महमूद कुरैशी के इस सनसनीखेज़ बयान से लगता है कि पाकिस्तान, हिंदुस्तान के साथ अब तक का सबसे खतरनाक ‘खेल’ खेल रहा है। यह कहना गलत नहीं होगा कि इमरान खान की मीठी छुरी भारत के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकती है। आतंकियों के सरगना, आतंकियों के दोस्त और आतंकियों के सरपरस्त के साथ खड़े होकर अमन की बात करने वाले इमरान से भारत को हर कदम पर सावधान रहने की ज़रूरत है।

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