पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री इमरान खान ने बातचीत के दौरान कहा,
दोनों देशों में जंग संभव ही नहीं है। दोनों देशों में जंग का मतलब है दोनों देशों का नुकसान, ऐसे में जंग कैसे हो सकती है? जब जर्मनी और फ्रांस साथ रह सकते हैं तो भारत-पाकिस्तान क्यों नहीं ?
वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान का एक और चेहरा है जिससे कोई भी अनजान नहीं है। “मुंह में राम बगल में छुरी”, यह कहावत बिलकुल सटीक बैठती है पाकिस्तान की हरकतों के ऊपर।

हाल ही में करतारपुर कॉरिडोर की बात सुनने में आ रही है, जिसमें तकरीबन 4 किमी लम्बी एक सड़क बनाने की बात कही जा रही है। यह सड़क हिंदुस्तान-पाकिस्तान बॉर्डर पर बनेगी जिसका काम 2019 तक पूरा किये जाने की बात कही जा रही है।
हिंदुस्तान के उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अरमिंदर सिंह ने इस कॉरिडोर की नींव 26 नवंबर 2018 को भारत में रख दी है। वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री भी इस कॉरिडोर की नींव 28 नवंबर 2018 को डाल दी है। पाकिस्तान में इसका काम 2019 तक पूरा करने की बात कही गयी है। इस कॉरिडोर को गुरु नानक साहब की 550वीं जयंती पर खोलने की बात कही गयी है।
चलिए पहले इसका इतिहास जानते हैं-
गुरुद्वारा दरबार साहिब करतारपुर, यह गुरुद्वारा करतारपुर नारोवाल ज़िला, पाकिस्तान में है, जहां पर गुरु नानक जी ने अपनी ज़िन्दगी के आखिरी 18 साल गुज़ारे थे। गुरु नानक को सिख समुदाय के साथ-साथ मुस्लिम धर्म के लोग भी अपना मानते थे।
22 सितम्बर 1539 गुरु नानक ने आखिरी सांस ली थी, जिसके बाद मुस्लिमों और सिखो में झगड़ा शुरू हो गया। झगड़ा इस बात को लेकर था कि मुस्लिम बोले कि बाबा हमारे थे हम बाबा को दफनायेंगे और सिख बोले कि बाबा जी हमारे थे हम इनका अंतिम संस्कार करेंगे। जब लोगों ने चादर उठाई वहां बाबा नहीं थे, बल्कि उनकी चादर के नीचे फूल थे, जिसको दोनों समुदायों में बराबर-बराबर बांटा गया।
मुस्लिमों ने उन फूलों को दफना दिया और वहां दरगाह बना दी। सिखों ने फूलों का संस्कार करके उनकी समाधि बना दी। जिसके बाद दोनों समुदाय गुरुद्वारा दरबार साहिब करतारपुर में जाकर अपने अपने धर्म के मुताबिक उन्हें मानते हैं।
काफी लंबे समय से हो रही थी इस कॉरिडोर की मांग-
कॉरिडोर की मांग कोई नई मांग नहीं है। भारत पिछले कई सालों से इस कॉरिडोर की मांग करता आया है। शिरोमनि गुरद्वारा प्रबंधन कमेटी भी इसकी मांग भारत की सरकार से बहुत पहले से करता आया है। नवजोत सिंह सिद्धू पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री इमरान खान की शपथ समारोह में शामिल हुए, जहां सिद्धू पाकिस्तान के आर्मी चीफ कमर जावेद बजवा से गले मिले, जिसको लेकर हिंदुस्तान में काफी सवाल खड़े हुए।

सिद्धू जबसे गले मिले तभी से इस कॉरिडोर की बात कर रहे थे और 28 नवंबर को यह बात सही साबित हुई, जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस कॉरिडोर की नींव रखी। इमरान खान और सिद्धू ने इस कॉरिडोर को बनाने को लेकर कहा है कि यह कॉरिडोर हिंदुस्तान-पाकिस्तान के रिश्तों में मिठास लेकर आएगा।
वीज़ा और पासपोर्ट फ्री होगा कतारपुर कॉरिडोर-
यह कॉरिडोर मात्र 4 किमी लम्बा होगा जो रावी नदी से होता हुआ गुज़रेगा। इस कॉरिडोर को वीज़ा तथा पासपोर्ट फ्री रखा गया है। मतलब गुरुद्वारे के दर्शन के लिए कोई भी वीज़ा की ज़रूरत नहीं है और इस कॉरिडोर की मदद से एक ही दिन में दर्शन करके वापस लौटा जा सकता है।
करतारपुर कॉरिडोर, हिंदुस्तान के खिलाफ पाकिस्तान की कोई साजिश तो नहीं है?-
पाकिस्तान की कॉरिडोर बनाने की नीति को भारत को बहुत संभलकर देखना होगा क्योंकि इतिहास गवाह है जब भी हिंदुस्तान ने पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है, बदले में पाकिस्तान ने पीठ में छुरा भोंका है, चाहे वो कश्मीर मुद्दे की शक्ल में हो या फिर 26/11 की।
दूसरा यह कि खालिस्तान की मांग करने वाले लोगों को पाकिस्तान समथर्न करता है, पाकिस्तान के कई गुरूद्वारों में सिख रेफरेंडम 2020 जैसे पोस्टर देखने को मिलते हैं, जिसका मकसद है 2020 तक पंजाब को भारत से अलग करके एक अलग राष्ट्र बनाना और यह सिर्फ पाकिस्तान में ही नहीं बल्कि कनाडा, यूएस, यूके, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया इत्यादि राष्ट्रों में भी खालिस्तान की मांग कुछ ग्रुप्स करते रहते हैं।
इस कॉरिडोर के बनने से हो सकता है पाकिस्तान खालिस्तान के समर्थन करने वाले लोगों को उकसाये और पंजाब राज्य में भी कश्मीर जैसे हालात पैदा कर दे, जो हिंदुस्तान के लिए बहुत बड़ा खतरा साबित हो सकता है ।
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