24 अगस्त 2017, भारत के संविधान के लिए काफी अहम दिन था जब 9 जजों वाली सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार का हिस्सा माना और बता दिया कि इस देश के नागरिकों के निजता के साथ कोई भी समझौता नहीं किया जा सकता है। आज एक बार फिर निजता का अधिकार चर्चा में है।
गौरतलब है कि गृह मंत्रालय ने एक आदेश जारी करते हुए इंटेलिजेंस ब्यूरो, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय, सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्स, डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस, सीबीआई, एनआईए, कैबिनेट सेक्रेटेरिएट (रॉ), डायरेक्टरेट ऑफ सिग्नल इंटेलिजेंस और दिल्ली के कमिश्नर ऑफ पुलिस को देश में चलने वाले सभी कंप्यूटर्स की निगरानी करने की मंजूरी दी है।

इस फैसले के बाद हर तरफ चर्चा का बाज़ार काफी गर्म है। सोशल मीडिया से लेकर अलग-अलग जगहों पर एक तरफ इसकी आलोचना की जा रही है तो वही दूसरी ओर कुछ लोग सरकार के इस कदम को सही भी करार दे रहे हैं।
वैसे तो सरकार के फैसलों के विरोध में आवाज़ उठाना विपक्ष का काम ही है लेकिन इस आदेश के खिलाफ विपक्ष ने यह कह कर मोर्चा खोल दिया है कि सरकार भारत के नागरिकों की जासूसी करवाने का आदेश दे रही है, जो नागरिकों के निजता के अधिकार का हनन है। ऐसे में हमें पहले इस बात को समझना होगा कि निजता का अधिकार पूर्ण अधिकार नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने ‘निजता के अधिकार‘ को मौलिक अधिकार में शामिल करते समय साफ शब्दों में ज़िक्र किया था कि निजता का अधिकार संपूर्ण अधिकार नहीं है और इस पर राजसत्ता कुछ हद तक तर्कपूर्ण रोक लगा सकती है, लेकिन विपक्ष के पास सुप्रीम कोर्ट का पूरा फैसला पढ़ने का वक्त कहां होगा और ना ही वे सकारात्मक राजनीति कर इस फैसले का स्वागत कर सकती है।
आज़ादी और अधिकार कभी भी पूर्ण नहीं हो सकते और उन पर उचित प्रतिबंध होना ज़रूरी भी है। भारत का संविधान भी यही कहता है जिसे समझने के लिए हमें ‘आर्टिकल 19’ पढ़ना होगा। आर्टिकल 19 के क्लॉज़ 1 में जिन अधिकारों का ज़िक्र है, उन्हीं अधिकारों के संदर्भ में क्लॉज़ 2 से लेकर क्लॉज़ 6 तक उचित प्रतिबंध भी हैं।

इस देश की अखंडता और सुरक्षा को सर्वप्रथम मान कर देश हित में उठाए गए फैसलों पर अगर हम सकारात्मक टिप्पणी नहीं कर सकते तब चुप रहना बेहतर होता है। हमें समझना होगा कि नकारात्मक टिप्पणियों का फायदा देश के विरोधी उठा लेते हैं।
टेक्नोलॉजी का फायदा उठाते हुए आतंकी लगातार अपने पैर फैला रहे हैं। ऐसे में अगर कोई व्यक्ति संदेहजनक गतिविधियों में पाया जाता है या अपने कंप्यूटर के ज़रिए दूसरे मुल्क के आतंकियों के साथ देश की सुरक्षा के साथ समझौता करने का प्रयास कर रहा हो, तब जांच एजेंसियों को स्वतंत्रता क्यों नहीं होनी चाहिए?
डरना तो उन्हें चाहिए जो ऐसी गतिविधियों में शामिल हो रहे हैं। इस मुद्दे पर विपक्षी पार्टियों का विरोध करना समझ से परे है। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि कश्मीर में भी पाकिस्तान के आतंकी भारतीय युवाओं को बहलाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में कश्मीर और देश की शांति के लिए यह फैसला देश हित में है।
भारत के नागरिकों को इस फैसले पर कोई समस्या नहीं होनी चाहिए क्योकिं सरकार उनकी सुरक्षा के लिए कदम उठा रही है। ऐसे वक्त पर विपक्षी पार्टियों को भी सोच समझकर विरोध प्रकट करना चाहिए।
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