जनरल बिपिन रावत का ट्वीट यौन कुंठित भारतीय समाज के पुरुषों की वैचारिक गंदगी दिखा रहा है। यह दिखा रहा है कि महानता, संस्कृति, सभ्यता, प्राचीनता, आध्यात्मिकता, धार्मिकता और विश्वगुरु आदि के दावों के बावजूद भारतीय पुरुष इतने भी संयमित नहीं हो पाए हैं कि महिला सहकर्मी के टेंट में ताक-झांक करने से भी खुद को रोक सकें।
बिपिन रावत ने यह भी कहा कि मातृत्व अवकाश के कारण महिलाओं को छुट्टी लेनी पड़ सकती है। हास्यास्पद बात है कि छुट्टी लेने की वजह से महिलाओं को नौकरी ही नहीं करने दिया जाएगा। हालांकि महिलाओं के प्रति भेदभाव तो है ही लेकिन अब सार्वजानिक मंच से ‘सेना अध्यक्ष’ जैसे पद पर बैठे व्यक्ति द्वारा खुल कर यह बात कही जा रही है जो कि ‘महिला समानता’ के प्रयासों को एक तगड़ा झटका है।
जहां पश्चिमी दुनिया के समाजशास्त्री और महिलाएं यह साबित करने की कोशिश में लगी हुई हैं कि ‘स्त्रियां’ शारीरिक रूप से भी ‘पुरुषों’ के बराबर हैं और इसमें वे बहुत हद तक सफल भी हो रही हैं। ऐसे में भारत जैसे सबसे बड़े लोकतंत्र के सेनाध्यक्ष द्वारा इस तरह का स्त्रीद्वेषी बयान देना शर्मनाक है।

अमेरिका ने एक इलीट स्क्वॉड की ट्रेनिंग में महिला कैडेट के लिए भी वही शारीरिक मापदंड तय किए हैं जो पुरुषों के लिए हैं। नॉर्वे, फिनलैंड जैसे यूरोपीय देशों के महिला व पुरुष सैनिक एक साथ, एक ही बैरक में सोते हैं और एक साथ ट्रेनिंग तथा ड्यूटी करते हैं। हालांकि सेना में इनकी भागीदारी का प्रतिशत अभी भी कम है लेकिन सतत प्रयासों से इसे भी बढ़ाया जा रहा है।
भारत के जंगलों में वर्षों से सरकार के खिलाफ चल रहे सशस्त्र नक्सली संघर्ष में भी महिलाएं पुरुषों के बराबर ही दिखाई पड़ती हैं। सभी सारे काम करते दिखाई पड़ते हैं, महिलाओं को सिर्फ खाना पकाने तक सीमित नहीं किया गया है, वे हथियार भी बराबर में खड़े होकर चलाती हैं।
महिला सैनिकों की बात बिना कुर्द और यज़ीदी फाइटरों के नहीं खत्म हो सकती है। इराक और सीरिया में हुई ज़मीनी लड़ाई में दुर्दांत आतंकवादी संगठन आईएसआईएस को कड़ी टक्कर देने और पीछे हटने पर मजबूर कर देने वाले पेशमर्गा फोर्स में 40 प्रतिशत सैनिक महिलाए हैं। इराक के सिंजर पहाड़ी पर जब आईएसआईएस ने यज़ीदियों पर कहर बरपाया था तब उनके लिए सुरक्षित रास्ता बनाने में इन्हीं महिला सैनिकों ने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर खूनी लड़ाई लड़ी थी। इनके YPJ नामक यूनिट में सभी सैनिक महिला हैं।
‘एथनिक माइनॉरिटी’ कहे जाने वाले कुर्दों के महिलाओं के प्रति लोकतांत्रिक विचार और व्यवहार अमेरिका जैसे तथाकथित मॉडर्न समाजों से कहीं बेहतर हैं। आतंकवाद को फंडिंग करते अमेरिका के जिगरी, ‘सऊदी अरब’ जैसे कठमुल्ला देश तो ‘स्त्री स्वतंत्रता और समानता’ जैसे मुद्दों पर इनके आस-पास भी नहीं फटकते। अभी भी ईरान और तुर्की जैसे सांस्कृतिक रूप से अपनी विरासत को बर्बाद कर चुके देश दोबारा महिलाओं पर पाबंदियां थोपने में लगे हुए हैं।
विद्रूप यह है कि इन्हीं झूठे लोकतांत्रिक राष्ट्रों से कुर्दों के लिए अलग राष्ट्र की मांग करते संगठन ‘पीकेके’ को लोकतंत्र के चैंपियन अमेरिका के दबाव पर दुनिया ने उन्हीं आतंकवादियों (आईएसआईएस) की श्रेणी में डाल रखा है जिसको कुर्दों ने अमेरिका की ही मदद से इराक और ईरान में धूल चटा रखी है।
वाईपीजी और पीकेके जैसी सेनाओं में महिलाएं वर्षों से फ्रंटलाइन पर बहादुरी से लड़ रही हैं और भारत के सेनाध्यक्ष ‘मातृत्व अवकाश’ और टेंट में होने वाली तांक-झांक में उलझे हुए हैं। पता नहीं पेशे से खुद एक सैनिक ‘बिपिन रावत’ को इन बहादुर सैनिकों की कहानियां क्यों नहीं पता।
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