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JNU मामला: “अब मीडिया ही जज है और कानून भी”

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जब भी जेएनयू का कोई मामला सामने आता है तब न्यूज़ एंकर्स हमारा परिचय एक शब्द से कराते हैं और वह शब्द ‘राष्ट्रद्रोह’ है। सोचने वाली बात है कि यह शब्द आज कल वापिस से क्यों सुनाई दे रहा है? इसका कारण जेएनयू में 9 फरवरी 2016 का विवादित कार्यक्रम है।

यह दावा किया गया कि कार्यक्रम के दौरान ‘अफज़ल गुरू की फांसी’ के खिलाफ और ‘कश्मीर की आज़ादी’ जैसे नारे लगाए गए। इस घटना के तीन साल बीतने के बाद एक बार फिर से चार्जशीट दायर की गई है। इस मामले में पटियाला हाउस कोर्ट ने कन्हैया कुमार समेत 10 अन्य लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर किया है।

गौरतलब है कि कन्हैया कुमार, उमर खालिद और अनिर्बाण भटचार्य पर आईपीसी की धारा 124ए, 323, 143, 149 और 120बी लगाई गई है। जबकि उमर खालिद पर आईपीसी की दो अतिरिक्त धाराओं ‘465’ और ‘471’ के तहत मामला दर्ज किया गया है।

इन आरोपों के साथ ही चार्जशीट में कश्मीरी छात्र-छात्राओं आकिब हुसैन, मुज़ीब हुसैन, मुनीब हुसैन, उमर गुल, रईया रसूल, बशीर भट और बशरत के भी नाम शामिल हैं। सवाल यह भी खड़ा होता है कि दिल्ली पुलिस को चार्जशीट फाइल करने में आखिर इतना वक्त क्यों लग गया? नियमों के मुताबिक 90 दिनों के अंदर चार्जशीट दायर करनी होती है।

बहरहाल, इन 3 सालों में देश की मीडिया ने कैसे इस खबर को दिखाया, उस पर भी सवाल खड़े होते हैं। टीवी से ही देश की जनता को मालूम चला कि इस कार्यक्रम में ‘भारत की बर्बादी’ व ‘देश टुकड़े होंगे’ जैसे नारे लगाए गए थे। जैसे ही खबर सामने आई कि तुरंत पुलिस ने उमर खालिद, कन्हैया कुमार व अनिर्बाण भट्टाचार्य को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस व कोर्ट को कोई ठोस सबूत नहीं मिलने के कारण उन्हें रिहा कर दिया गया।

उमर खालिद
उमर खालिद। फोटो साभार: सोशल मीडिया

इसके बाद उमर खालिद के साथ कन्हैया व अनिर्बाण की जिंदगी बदल चुकी थी। देश की जनता उन्हें गालियां देकर देशद्रोही पुकार रही थी। उन्हें लगातार जान से मारने की धमकियां भी मिल रही थीं। इस ज़हर को फैलाने के पीछे देश की मीडिया और कुछ एंकर्स का हाथ रहा है जिसने नाटकीय ढंग से ज़हर पनपने दिया।

अदालत या देश का कानून तो बाद में इन्हें दोषी बताता लेकिन आज कल कानून का काम भी न्यूज एंकर्स ने आसान कर दिया है। न्यूज़ एंकर्स द्वारा प्रसारित खबर का असर यह हुआ कि घटना के रोज़ से ही देश की अधिकांश जनता उमर खालिद, कन्हैया कुमार और अनिर्बान को देशद्रोही मान चुकी थी।

उन्हें पाकिस्तान जाने तक की धमकियां मिल चुकी है। उमर खालिद पर तो यह भी आरोप है कि वह पाकिस्तान जा चुके हैं। इन सभी आरोपों के बीच किसी ने सच जानने की कोशिश नहीं की। आरोपों के बीच उमर खालिद पर हमला भी किया जा चुका है।

अब दिल्ली पुलिस द्वारा चार्जशीट दायर करने के बाद न्यूज़ एंकर्स ने तो फैसला भी देना शुरू कर दिया है। तमाम न्यूज़ चैनल्स लगातार कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं। सुधीर चौधरी अपने कार्यक्रम में खुद ही जज व वकील की भूमिका में फैसला सुनाते दिख रहे थे।

लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ आज वाकई खतरे में है जो इस देश को खबर नहीं सुना रहा बल्कि खबर के बदले नफरत बेच रहा है। देश की जनता को शायद अब टीवी व अखबार से दूरी बनानी होगी क्योंंकि ये लोग जनता नहीं बल्कि सरकार के लिए काम कर रहे हैं। मीडिया एंकर्स सरकार के चाटुकार लगते हैं जो जनता को बेवकूफ बना रहे हैं।

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