अभी इलाहाबाद अर्थात प्रयागराज में माघ के महीने में अर्ध कुंभ लगा हुआ है। बहुत सारा पैसा पानी की तरह बहाया गया है इस आयोजन के लिए। अभी तक लगभग 42 सौ करोड़ रुपए इस आयोजन में खर्च किए जा चुके हैं। इस अर्ध कुंभ में साधु-संतों पर हेलीकाप्टर से फूल बरसा कर पैसे बहाए जा रहे हैं। इसी बीच इस माघ मेले अर्थात कुंभ के नाम को लेकर विवाद सामने आ रहे हैं। कुछ लोग इसे अर्ध कुंभ तो कुछ इसे महाकुंभ बता रहे हैं।
आइए विवाद पर कुछ तथ्यात्मक बातें जान लें-
प्रत्येक 6 वर्ष पर लगने वाला कुंभ अर्ध कुंभ कहलाता है। प्रत्येक 12 वर्षों में लगने वाला कुंभ पूर्णकुंभ कहलाता है और प्रत्येक 12 पूर्णकुंभों के पश्चात आता है महाकुंभ अर्थात 144 वर्षों में एक बार आता है महाकुंभ। कुंभ की ऐतिहासिकता में यह दंत कथा है कि समुद्र मंथन के समय अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदें गंगा, जमुना और सरस्वती में गिरी थी तभी से कुंभ लगता है।
अब आइए एक बार विवाद पर नज़र डालते हैं। इस वर्ष लगे कुंभ पर विवाद तब खड़ा हुआ जब उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने इस कुंभ का नाम महाकुंभ दिया जबकि महाकुंभ 144 वर्षों में एक बार आता है। पिछला कुंभ जो वर्ष 2013 में लगा था वह पूर्णकुंभ था जो कि 12 वर्षों में आता है। अतः यथार्थ स्वरूप में देखा जाए तो वास्तव में इस कुंभ का नाम अर्ध कुंभ ही होना चाहिए परन्तु योगी सरकार ने इसका नाम महाकुंभ रखकर एक विवाद को जन्म दिया है।
अर्ध कुंभ को महाकुंभ बनाने के पीछे राजनीतिक फायदे
अब हम इस विवाद के राजनीतिक महत्व की ओर नज़र डालते हैं। योगी सरकार ने इस अर्ध कुंभ को सफल बनाने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है ताकि 2019 के लोकसभा चुनावों में इस कार्य को गिनाकर वोट लिया जा सके।
योगी सरकार इस अर्ध कुंभ को महाकुंभ बताकर अपने कार्यकाल में लगे कुंभ को अखिलेश यादव के कार्यकाल में लगे कुंभ से बड़ा बताने की कोशिश कर रही है। इसी के साथ वह समाज में एक सीधा संदेश देना चाहती है कि भाजपा से बेहतर हिंदुओं का ख्याल कोई भी नहीं रख सकता।
इससे पहले कुंभ 6 वर्ष पूर्व 2013 में अखिलेश यादव के कार्यकाल में लगा था। वह भी अर्ध कुंभ था और यह भी अर्ध कुंभ ही है। इस आयोजन का प्रचार विदेशों में भी किया जा रहा है और फिर विदेशों में अपने धर्म के बखान के नाम पर वोट मांगने की तैयारी है।
योगी आदित्यनाथ जो नोएडा में मुस्लिम समाज नमाज़ ना पढ़ पाए इसलिए पार्क में पानी भरवा दे रहे हैं वहीं दूसरी ओर साधुओं पर हेलीकाप्टर से फूल बरसवा रहे हैं, जिसका सीधा मतलब है वह साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के आधार पर राजनीति कर रहे हैं।
हमारे गांव में एक कहावत है कि नामी बनिया का कुछ भी बिक जाता है। इसका अर्थ है कि अगर आपका नाम है तो आप कुछ भी बेचिए चलेगा। सारा प्रभाव नाम का है, इसलिए योगी जी अर्ध कुंभ को महाकुंभ बताकर इसे इतिहास में दर्ज करवाना चाहते हैं, साथ ही साथ इसके नाम ‘महाकुंभ’ को आधार बनाकर इस विशाल आयोजन को विभिन्न प्रकार के प्रचार माध्यमों से जनता में फैलाकर इसे और विशाल बताना चाहते हैं। इसका चुनावी लाभ लेना चाहते हैं।
श्रद्धालुओं को वोटर्स में बदलने के की तैयारी
ये लोग कहते तो हैं खुद को हिन्दू धर्म का ध्वजवाहक लेकिन अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए ये हिन्दू धर्म और उसकी मान्यताओं से खिलवाड़ करने से भी बाज़ नहीं आते हैं। इसका एक नमूना है अर्ध कुंभ को महाकुंभ बताना।
चूंकि योगी सरकार पिछले दो सालों में कानून व्यवस्था से लेकर हर मसले पर अब तक की रिपोर्ट कार्ड के हिसाब से फेल ही रही है। अतः अपनी नाकामी को छिपाने के लिए योगी ने यह दांव चला है। कुंभ में लगभग 12 करोड़ के आसपास लोग स्नान करेंगे। अतः इन लोगों को वोट में तब्दील करने के लिए योगी जी अर्ध कुंभ को महाकुंभ का नाम दे रहे हैं, ठीक वैसे ही जैसे मोदी जी अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए दूसरे की योजनाओं और कार्यों का नाम बदलकर उन्हें अपना बताते हैं।
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नोट- आकाश पांडेय YKA के जनवरी-मार्च 2019 बैच के इंटर्न हैं।
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