गणतंत्र दिवस के रोज़ मैं अपने गाँव में था। दिन में बारिश और धूप ना होने की वजह से ठिठुरन और बढ़ गई थी। गणतंत्र दिवस की वजह से गाँव के तमाम नवुयवक सुबह से ही देशभक्ति से लबरेज़ थे। मैं भी दिल्ली से सीधे प्रसारित किए जा रहे रंगारंग कार्यक्रमों के दृश्य देख रहा था।
सुबह से ही गाँव के स्कूल में गणतंत्र दिवस की तैयारियां प्रारंभ कर दी गई थी। महापुरुषों की तस्वीरें, मंच, लाउडस्पीकर, मिष्ठान और पुष्पमाला आदि सभी कुछ तैयार थे।
कुछ ही देर बाद जब लाउडस्पीकर से ‘भारत माता की जय’, ‘वन्दे मातरम्’ और ‘झंडा ऊंचा रहे हमारा’ की आवाज़ सुनी तब हम भी आयोजन स्थल पर पहुंच गए। हम भी उसी जगह खड़े हो गए जहां पहले से ही सभी लोग एकत्रित थे।

अचानक मेरी निगाहें उस ओर चली गई जहां मालाओं से सुसज्जित महापुरुषों की तस्वीरें थी। महात्मा गाँधी को देखा तब मन में सम्मान की भावना जागृत हो गई। सरदार पटेल, शास्त्री और इंदिरा गाँधी की तस्वीरें देखकर मन में देशभक्ति की भावनाएं जाग उठी। इन सबके बीच पता नहीं क्यों मेरी आंखें किसी और तस्वीर को तलाश रही थी।
स्कूली शिक्षा और NCERT के अध्ययन के पश्चात मुझे यही पता चला है कि ‘संविधान निर्माण में डॉ. भीमराव अंबेडकर का बहुत बड़ा योगदान है लेकिन इन तस्वीरों के बीच बाबा साहेब की तस्वीर नहीं थी। मैं उनकी तस्वीर तलाश रहा था इसका मतलब यह नहीं है कि अन्य महापुरुषों को नज़रअंदाज़ कर रहा था।
अंबेडकर की तस्वीर क्यों नहीं?
भारत की स्वतंत्रता और भारत को गणतंत्र बनाने में महात्मा गाँधी, सरदार पटेल, नेहरू, बोस और भगत सिंह जैसे महापुरुषों की भूमिका तो रही ही है लेकिन अंबेडकर का भी उतना ही योगदान रहा है। जी हां, कम-से-कम इंदिरा गाँधी से तो ज़्यादा ही योगदान रहा है जिन्होंने फले-फूले गणतंत्र पर शासन किया, जबकि अंबेडकर ने तो गंणतंत्र की नींव रखी।
सवाल यह है कि गणतंत्र दिवस के इस पावन अवसर पर अंबेडकर की तस्वीर क्यों नहीं है? उनकी तस्वीर से गुरेज़ क्यों? क्या इसमें जातिगत दंभ है? या यह विद्यालय की महज़ एक चूक है। कहीं ऐसा तो नहीं कि हम अंबेडकर के महत्व से परिचित नहीं हैं।
जातिगत भेदभाव
अक्सर समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनलों में जाति के आधार पर भेदभाव की खबरें देखने को मिलती हैं। इन बातों से सवाल ज़रूर खड़े होते हैं कि आज़ादी के 70 वर्ष से भी अधिक समय बीत जाने के बावजूद भी हम अंबेडकर को सिर्फ एक ‘जाति विशेष’ के नेता के रूप में क्यों देखते हैं।
भले ही देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और तमाम शीर्ष राजनेता विभिन्न आयोजनों में अंबेडकर के प्रति अपना सम्मान प्रकट करते हों परन्तु हकीकत यही है कि आम जनमानस उन्हें एक जाति विशेष का नेता मान रही है।

समाज के एक वर्ग के लिए अंबेडकर उद्धारक के समान हैं जबकि समाज का एक अन्य वर्ग उन्हें अभी भी टेढ़ी नज़र से देखता चला आ रहा है। हम विचारों के आधार पर अंबेडकर की आलोचना कर सकते हैं। यहां तक कि राष्ट्रीय आंदोलन में उन्होंने क्या सही किया और क्या गलत किया इस पर भी आवाज़ उठा सकते हैं मगर यह तो स्वीकार करना होगा कि संविधान निर्माण में उनका बहुत योगदान है। इस नाते उनके प्रति सम्मान प्रकट करने में हम संकोच क्यों करें?
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