जम्मू कश्मीर के पुलवामा में सीआपीएफ के काफिले पर भीषण आतंकवादी हमले में लगभग 42 सीआरपीएफ के जवान शहीद हो गए। आतंकियों ने बड़े ही क्रूरता से हमारे जवानों पर हमले किए लेकिन सोचने वाली बात यह है कि हमें कितनी बार ऐसी बेबसी झेलनी पड़ेगी?
हम हर बार ऐसे ही बेबस हो जाते हैं और जब गुस्सा आता है तब निंदा करते हैं। अपने आप से बात करते हुए कहते हैं कि शायद यह आखिरी बार होगा।
हमें लगता है कि हम अब आगे से ऐसे बेबस नहीं महसूस करेंगे लेकिन हर हमले के बाद हमले होते हैं। हमारे देश में हर हमले के बाद राजनीतिक प्रतिक्रियाएं देने और बेबसी दिखाने के अलावा कुछ नहीं होता है। मैं भी काफी बेबस सा महसूस कर रहा हूं और ऐसा लग रहा है कि सारा गुस्सा सोशल मीडिया पर लिखकर निकाल दूं।

देशभर में जब इस घटना की निंदा हो रही है तब मेरे ज़हन में सवाल उत्पन्न हो रहे हैं कि इसका समाधान कैसे किया जाए? क्या करूं, बेबस सा हो गया हूं और मन ही मन बहुत कुछ सोच रहा हूं कि ऐसा होना चाहिए था, वैसा होना चाहिए था लेकिन वही चीज़ें बार-बार परेशान करती हैं कि घटना के बाद हम कुछ नहीं कर पाते हैं।
अबकी बार हमें बेबसी नहीं बल्कि ताबड़तोड़ कार्रवाई, मुहतोड़ जवाब और आगे से ऐसा ना होने के वादे चाहिए। हमें आतंकवादियों को उन्हीं की भाषा में जवाब देना होगा।
जिनके हाथ में कुछ निर्णय लेने का अधिकार है वे हर बार बस कड़ी कार्रवाई के आश्वासन देकर निंदा करते हुए चुप हो जाते हैं और हम फिर एक बार बेबस होकर रह जाते है।
आम जनता कड़ी कार्रवाई की मांग कर रही है और बॉलीवुड उस हमले पर फिल्म बनाने के लिए बेकरार है। हमारे देश में होता यही है कि लोग फिल्म देखकर चले आते हैं लेकिन इस गंभीर विषय के समाधान के लिए कोई भी नहीं सोचता है।
मनोरंजन के तौर पर हम फिलमें देखते हैं। हमनें 26/11, उरी और अन्य घटानाओं पर भी फिलमें देखी है लेकिन समाधान पर बात करना उचित नहीं समझा।
हमें अब 26/11, उरी और कल का घटनाक्रम नहीं चाहिए। यह वो वक्त है जब बेबसी खत्म करते हुए हमें इस दिशा में कोई सकारात्मक पहल करनी होगी ताकि हमारे फौज़ को जानें ना गंवानी पड़े।
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