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“लहराता हुआ तिरंगा ही अच्छा लगता है, लिपटा हुआ गमगीन नज़र आता है”

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चाह नहीं, देवों के सिर पर

                  चढ़ूं भाग्य पर इठलाऊं।

मुझे तोड़ लेना वनमाली!

                  उस पथ पर देना तुम फेंक,

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने

                  जिस पथ जावें वीर अनेक।

माखनलाल चतुर्वेदी की इस कविता का मर्म आज देश के हर व्यक्ति को समझ आ रहा होगा क्योंकि एक बार फिर से देश के जवान जिनकी वजह से हम चैन की नींद सोते हैं, उनकी ज़िंदगियों को आतंकवादियों ने खत्म कर दिया है।

पुलवामा अटैक
फोटो साभार: ANI Twitter

आतंकवादियों ने बेरहमी से सीआरपीएफ के 42 जवानों को मौत के घाट उतार दिया। क्या उन्होंने ऐसा इसलिए किया ताकि वे देश की सुरक्षा पर हंस सके? मगर इन आतंकवादियों को यह नहीं मालूम कि जिस देश के एक जवान को वे मारेंगे, वहां हर गली से एक जवान देश के लिए जान न्यौछावर करने के लिए निकलेगा।

भारत देश का हर व्यक्ति अपने वतन के लिए मर मिटने का रुतबा रखता है क्योंकि जब-जब सरहद पर हमारे जवान शहीद हुए, तब-तब देश के हर इंसान ने उनके लिए एक सुर में आवाज़ उठाई है। शहीदों की शहादत का मंज़र हमें बार-बार नहीं देखना है।

माइनस डिग्री की सर्दियों में जान की परवाह किए बगैर यह जवान तटस्थ भावों से अपने कर्तव्य का निर्वाहन करते हैं। इसी कर्तव्य का निर्वाहन करते हुए कई जवान वीरगति को भी प्राप्त हो जाते हैं।

इनके पीछे उनकी शहादत पर उनका परिवार आंसू भी नहीं बहा सकता क्योंकि आसूं बहाने पर तो उनकी शहादत शर्मसार होगी। उन्हें तिरंगे में लिपटी ऐसी शहादत नसीब हुई, जो विरलों को ही मिलती हैं।

अपने पीछे छोड़ गए उन रिश्तों और परिवारवालों का क्या, जो एक पल में ही उनसे जुदा हो गए। ऐसा ही हाल कल हुए जम्मू कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आतंकवादी हमलों में मारे गए शहीदों के घर का है।

पुलवामा अटैक
फोटो साभार: ANI Twitter

उन घरों में किसी का बाप उम्र की दहलीज़ के उस मोड़ पर खड़ा है, जहां वह अपने बेटे के कंधें पर जाने की राह देख रहा है मगर अब बेटा जाएगा बाप के बूढ़े कंधों पर तिरंगे में लिपटा हुआ। किसी की माँ अपने बेटे की शादी के सपने सजाए बैठी थी जिसे क्या पता था बेटा तो आएगा मगर तिरंगे की चादर में लिपटा हुआ।

यह मंज़र होगा आज उन शहीदों के घर का, जिनके घर में कल से भीड़ है मगर यह भीड़ किसी त्यौहार पर अपनों से  मिलने की नहीं, बल्कि नम आखों से अपने नौजवान वीर सैनिकों  के पार्थिव शरीर को विदा करने के लिए होगी।

हम अब पूछना चाहते हैं कि यह मंज़र उन माँ-बाप, भाई-बहन, पत्नी औप बेटियों को कब तक देखना होगा? क्या सरकार अब भी नहीं चेतेगी? क्योंकि जुबानी वादे बहुत हो चुके, अब इन मंज़रों को फिर से ना दोहराने का वक्त है।

तिरंगा लहराता हुआ ही शानदार लगता है। लिपटा हुआ तो गमगीन नज़र आता है क्योंकि वह भी अपने वीर सपूतों की शहादत पर रोता है।

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