पिछले कुछ दिनों में कुछ घटनाएं ऐसी घटी जिसको मैं लोकतांत्रिक उग्रवाद की संज्ञा देना उचित समझता हूं। लोकतंत्र भी कभी उग्रवादी हो सकता है सुनने में थोड़ा अटपटा लगता है लेकिन जब लोकतांत्रिक प्रक्रिया द्वारा किसी सरकार का गठन हो और वहीं सरकार सत्ता के हनक में आकर उग्रवाद पर उतर आये तब उसे आप क्या कहेंगे? ऐसा नहीं कि यह आज शुरू हुआ है। सत्ता बचाने के लिए और सत्ता को पाने के लिए समय-समय पर सभी सरकारें इस तरह के हथकंडे अपनाती रही हैं लेकिन जिस मौजूदा समय में हम हैं मैं उसकी बात करना चाहूंगा।
is indian politican taking support of Extremist
पश्चित बंगाल में ममता और सीबीआई का मामला

बात पश्चिम बंगाल से शुरू करते हैं। उत्तर प्रदेश थोड़ी देर से पहुंचेंगे। पिछले दिनों बंगाल सरकार ने सीबीआई को गिरफ्तार कर लिया। कहने को तो बहुत कुछ कहा जा सकता है कि सीबीआई अनियमित तरीके से आई, केंद्र सरकार डराने के लिए सीबीआई का प्रयोग कर रही है आदि-आदि लेकिन दूसरी तरफ कहा गया कि हम बेदाग हैं और सीबीआई के प्रयोग से हमें डराने की कोशिश की जा रही है। लेकिन सवाल यह है कि जब गलती नहीं थी, तो जांच से डरने की ज़रूरत क्यों? और तो और अगर केंद्र द्वारा सीबीआई का प्रयोग डराने के लिए किया जा रहा है तो आप बंगाल पुलिस का प्रयोग किस लिए कर रहे थे? सवाल सीधा है लेकिन यकीन मानिए जवाब नहीं आएगा।
उत्तर प्रदेश में क्या समाजवाद का मतलब तोड़फोड़ है?
अब आइये बात कर लेते हैं उत्तर प्रदेश की भी। जब दुनियाभर के लोग प्रयागराज में आकर सुरक्षित महसूस कर रहे हैं तो अखिलेश यादव के चले जाने से क्या विपदा आ जाती? सवाल तो यह है कि जहां वीआईपी सुरक्षित है नहीं, वहां आम आदमी की सुरक्षा का क्या? सवाल और है। अपने को समाजवादी बताने वाले युवा पीढ़ी ने क्या किया? क्या समाजवाद का मतलब तोड़फोड़, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना और लूटपाट है? अगर ऐसा है तो यह समाजवाद अपने तक ही सीमित रखें? समाज को इसकी ज़रूरत नहीं है। सवाल तो यह भी है कि ऐसा क्या कर रहे थे छात्र कि उन्हें रोकने के लिए लाठियां भांजनी पड़ी और तो और बंदूकधारी सेना बल को उतारना पड़ा।
कमलनाथ का बिहारी और यूपी वालों पर हमला

खैर, छोड़ दीजिए चलिए चलते हैं मध्यप्रदेश। यहां मामला थोड़ा पुराना है लेकिन बात होनी चाहिए। सत्ता में आने के साथ ही कॉंग्रेस को ऐसा क्या दिख गया कि उत्तर प्रदेश और बिहार के युवा को मध्यप्रदेश में रोकने की नौबत आ गयी। सवाल तो यह है कि कमलनाथ ने कितनी नौकरियां सत्ता में आते ही दे दी, जिसपर उत्तर प्रदेश और बिहार ने कब्ज़ा कर लिया। या फिर चुनावी वादे से डरकर मध्यप्रदेश की जनता को गोल-गोल घुमाने की कोशिश है।
अब जब ये सब सत्ता ही नौकरशाहों द्वारा चल रही हो तब क्यों ना कहा जाए कि भारत में लोकतांत्रिक उग्रवाद का जन्म हो रहा है।
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