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पुलवामा: “लोगों को फेक न्यूज़ और नेताओं की राजनीति से दूर रहने की ज़रूरत है”

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देश में इस समय युद्ध जैसे हालात पैदा हो गए हैं। सभी लोग भयभीत हैं कि आगे क्या होगा युद्ध या शांति? ऐसे हालात में जब हमारे प्रधानमंत्री को पूरे देश को विश्वास में लेना चाहिए था, तब वह पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ चुनाव को लेकर संवाद कर रहे थे।

‘मेरा बूथ सबसे मज़बूत’ कार्यक्रम के तहत भाजपा के कार्यकर्ताओं को संबोधित ना कर यह समय “मेरा देश सबसे मज़बूत” कार्यक्रम के तहत सम्पूर्ण भारत को संबोधित करने का था।

इस समय भारत एक कसमकस से गुज़र रहा है। युद्ध की आशंकाओं को देखते हुए सीमावर्ती हवाई अड्डों को बंद कर दिए गए हैं, सैन्य कर्मियों की छुट्टियां रद्द की जा रही हैं, भारतीय जनता ने अपने मुद्दे छोड़ दिए हैं और इन सबके बीच मीडिया ने भय का माहौल पैदा कर दिया है।

ऐसे  संवेदनशील वक्त पर पीएम मोदी का चुनावी अभियान समझ से परे है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और उनके तमाम नेता भी चुनाव प्रचार कर रहे हैं।

शहीदों पर राजनीति

इस दौरान लगातार शहीदों पर राजनीति की जा रही है। इसकी बानगी कर्नाटक बीजेपी अध्यक्ष बीएस येदियुरप्पा के बयान से देखी जा सकती है जिसमें उन्होंने कहा, “एयर स्ट्राईक के बाद कर्नाटक में बीजेपी को 22 से ज़्यादा सीटें जीतने में मदद मिलेगी।”

मोदी जी जब अपने बूथ के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हैं, तो पीछे शहीदों के चित्र लगे होते हैं। इसका क्या मतलब है?

इस वक्त तमाम विरोधी दल ज़ोर-शोर से कह रहे हैं कि सेना पर राजनीति नहीं होनी चाहिए लेकिन इसके बाद भी भाजपा अपने चुनाव अभियान में लगी हुई है। इस समय लोगों को कहा जा रहा है कि सवाल मत पूछो क्योंकि यह समय साथ खड़े होने का है।

चलिए मान लिया कि यह समय एकजुटता दिखाने का है लेकिन सवाल ना पूछे इसका क्या मतलब है? सवाल पूछने का यह अर्थ देश के खिलाफ होना नहीं है।

सवाल पूछना भी देशभक्ति है

आज सवाल पूछना ही असली देशभक्ति है, युद्ध के समय भी सवालों का जारी रहना ज़रूरी है, नहीं तो ऐसा होगा कि शासक युद्ध की आड़ में जनहित से जुड़े मुद्दो को नज़रअंदाज़ कर देगा। पिछले दिनों कुछ ऐसी ही हुआ भी जब सरकार की लचर पैरवी के कारण सुप्रीम कोर्ट ने आदिवासियों को ज़मीन से बेदखल करने का फरमान सुना दिया।

नरेन्द्र मोदी
फोटो साभार: Getty Images

यही नहीं, सरकार ने देश के 6 सरकारी हवाई अड्डों को अडानी को सौंप दिया। ‘सरकार से सवाल मत पूछो’ रणनीति के तहत मीडिया और जनता ने सरकार से कोई सवाल नहीं किया जबकि आदिवासियों का मसला लाखों लोगों से जुड़ा हुआ था।

अरुणाचल प्रदेश हिंसा की आग में जल गया लेकिन कहीं कोई खबर ही नहीं है। मीडिया लोगों तक सूचनाएं पहुंचाने की बजाय तमाम तरह की धारणाएं गढ़ रहा है।

भाषा पर नियंत्रण रखने की ज़रूरत

आम भारतीय जनमानस की भाषा भी आक्रामक हो चुकी है। वह लगातार सोशल मीडिया पर हिंसक प्रतिक्रियाएं दे रहा है कि पाकिस्तान का नाश होना चाहिए। गलियों और चौराहों पर देशभक्ति का एक नया उन्माद देखने को मिल रहा है।

पुलवामा अटैक के बाद दंगे
फोटो साभार: Getty Images

अतः यह समय बहुत कठिन है। सभी देशवासियों को सेना के साथ खड़े रहने की ज़रूरत है। किसी भी पार्टी को शहीदों पर राजनीति नहीं करनी चाहिए।

मीडिया को संयम बरतते हुए लोगों तक सही जानकारियां पहुंचाने की ज़रूरत है। इन सबके बीच सबसे ज़रूरी चीज़ यह है कि सरकार से लगातार सवाल पूछते रहें।

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