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Channel: Politics – Youth Ki Awaaz
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“फेक खबरों को असलियत समझकर कब तक बहसबाज़ी होगी?”

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पिछले 15-16 दिनों से सोशल मीडिया का उपयोग भी काफी सोच समझकर करना पड़ रहा है। कोई भी पोस्ट जो देश, कश्मीर, पुलवामा, सैनिक और मोदी जी से संबंधित है, उन पर गज़ब के कमेन्ट्स हैं।

कोई किसी की तरफदारी करते हुए उसके लिए लड़ रहा है तो कोई अपनी बात या राय थोपने के लिए शिष्ट भाषा का इस्तेमाल कर रहा है। शिष्ट भाषा से मेरा अभिप्राय आप समझ ही गए होंगे।

किसी बात पर तर्क-वितर्क करने तक तो सही था मगर इस चक्कर में जमकर गाली गलौच और अशिष्ट शब्दों का प्रयोग करते हुए लोगों के आत्म-सम्मान को भी ठेस पहुंचाया जा रहा है। विचारों की यह कैसी आज़ादी?

यह बहस भी समाज के ऐसे तबके द्वारा की जा रही है जिनको ज्ञानी भी सोशल मीडिया ने ही बनाया है। आज इस प्रकार के पोस्ट्स पढ़कर लगता है कि समाज अलग-अलग श्रेणियों में विभक्त हो गया है।

इन्हें पता है युद्ध-युद्ध चिल्लाने से कुछ नहीं होता

पहली श्रेणी में वे लोग हैं जो जानकारियों और अपवाहों में फर्क करना भलीभांति जानते हैं। किसी भी बात पर अपने विचार व्यक्त करने से पहले अपने दिमाग के तीनों मुख्य भागों का उचित उपयोग करके उससे होने वाले परिणामों का अच्छी तरह से विश्लेषण करते हुए समाज के सामने रखते हैं।

ये वर्ग यह भी जानते हैं कि हमारे युद्ध-युद्ध चिल्लाने से ना तो देश का रक्षा विभाग उनकी राय पूछेगा और ना ही पाकिस्तान पर हमला बोल देगा। हर तरह की अशिष्टता को सहने के बावजूद भी यह वर्ग लोगों को समझाने की अपनी भरपूर कोशिशों में जुटा हुआ है।

जब भारत में पुलवामा का इतिहास लिखा जाएगा तब इस श्रेणी के लोगों का ज़िक्र सेना के बाद देश में शांति व्यवस्था स्थापित करने हेतु सर्वोपरि होगा।

सोशल मीडिया पर हद से ज़्यादा विश्वास करने वाले लोग

दूसरी श्रेणी में वे लोग आते हैं जो बात की गहराई तक जाए बिना सोशल मीडिया का अपने दिमाग से ज़्यादा उपयोग करते हुए फेक खबरों को प्रसारित करते हैं।

इस प्रकार के लोग न्यूज़ चैनलों की फेक न्यूज़ को असलियत समझकर जमकर बहसबाज़ी कर रहे हैं। एक बात जो इस वर्ग के साथ सकारात्मक है, वो यह है कि कम-से-कम अपनी सोच को लोगों के साथ रख रहे हैं। इसमें से कुछ लोग अपनी सोच को किसी के समझाने पर दुरुस्त भी कर रहे हैं।

फोटो साभार: सोशल मीडिया

अभी भी औसत लोग ऐसे हैं जो इन बातों से बेखबर हैं या बेखबर होने का दिखावा कर रहे हैं। कुछ लोगो को छोड़ देने पर शेष जो लोग हैं, उन्हें काफी कुछ पता है मगर इन बातों पर बात करने से कतराते हैं।

ऐसे वक्त पर हमें ज़रूरत है अपने दिमाग का सही इस्तेमाल करते हुए किसी भी फेक न्यूज़ पर विश्वास ना करें। फेक खबरों को सब जगह फैलाने से पहले उस पर दो मिनट विचार करें।

किसी बात पर इतना उत्तेजित या आक्रोशित ना हो जाएं जिससे देश में अशांति फैले। तर्क-वितर्क करें मगर ऐसा नहीं जिससे किसी के आत्म-सम्मान को हानि हो।

देश सबका है, सबको अपनी बात रखने की स्वतंत्रता है और देश हम सबसे बना है। किसी एक धर्म विशेष या समुदाय विशेष से धर्म निरपेक्ष भारत नहीं बनता।

The post “फेक खबरों को असलियत समझकर कब तक बहसबाज़ी होगी?” appeared first and originally on Youth Ki Awaaz and is a copyright of the same. Please do not republish.


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