शुक्रवार को भारतीय एयर फोर्स के विंग कमांडर अभिनंदन वतन वापस आ गए हैं। वापसी की वाहवाही में अपने यहां कुछ लोग इस घटना को सरकार की कूटनीति बता रहे हैं। कई जगहों पर कुछ पार्टियों के बैनर भी लगे हैं।
अगर यह कूटनीति की जीत थी तो पुलवामा में सीआरपीएफ के जवानों पर हमले की चूक की ज़िम्मेदारी फिर किसकी हुई? और जो जवान शहीद हुए हैं या फिर जो एयरक्राफ्ट दुर्घटनाग्रस्त हुए हैं, उसके ज़िम्मेदार कौन लोग होंगे?
कुछ ऐसे भी लोग हैं जो पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के भी मुरीद हो गए हैं लेकिन क्या वाकई अभिनंदन की वापसी इमरान खान साहब की दरियादिली है या बदलते भारत की तस्वीर, जहां नेताओं की व्यक्तिपरक विफलताओं के बीच भारत के सैन्य क्षमता की उपेक्षा भी हो रही है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इमरान साहब ने अपने पाकिस्तानी संसद में भारत की ओर से मिसाइल हमले की भी आशंका जताई थी।
हिरोशिमा और नागासाकी पर जब एटम बम गिराया गया था
आज से 74 साल पहले हिरोशिमा और नागासाकी पर छोड़ा गया परमाणु बम भले ही इंसान की तबाही का सबसे खतरनाक दर्शन करा गया लेकिन यकीन मानिए इस घटना ने पूरे विश्व की एक बड़ी आबादी को नया जीवन भी दे दिया।
क्या होता यदि उस वक्त जापान और जर्मनी के बढ़ते निरंकुश प्रभाव को रोका नहीं जाता। शायद युद्ध तब और लंबा चलता, शायद कुछ और लोगों की जान जाती जिनकी संख्या हिरोशिमा और नागासाकी में मरने वालों से भी ज़्यादा हो सकती थी।
ऐसा भी हो सकता था कि युद्ध बिना किसी को नुकसान पहुचाए भी खत्म हो जाता। क्या होता यदि अमेरिका के बजाय किसी और देश ने एटम बम छोड़ा होता? दुनिया का भूगोल तब कुछ अलग ही होता और शायद शांति के प्रयास भी।

हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु बम के प्रयोग ने पूरे विश्व की कल्पना को ही बदल कर रख दिया था। पूरा विश्व एक नए डर से भयभीत हो गया था, जिस विनाश की लोगों ने मात्र कल्पना ही की थी, उसका नज़ारा सामने था।
इस घटना के बाद परमाणु बम के परीक्षण तो काफी हुए लेकिन इसका प्रयोग किसी भी जीवित मनुष्य पर नहीं किया गया। इसका प्रयोग केवल मनुष्यता के वैज्ञानिक शोध तक ही सीमित था।
आज परमाणु बम से भी काफी खतरनाक बम मौजूद हैं। हायड्रोजन बम से लेकर तमाम ऐसे उपकरण हैं, जिसके विनाश की शायद कल्पना भी नहीं की जा सकती है। आज मनुष्य केवल अतीत के हादसों से ही अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ा सकता है।
हिरोशिमा और नागासाकी के विध्वंश ने मनुष्यों को डरा दिया है, अब परमाणु बम तो कई देशों के पास ज़रूर हैं लेकिन केवल हाथी के दिखाने वाले दांतो की तरह ही हैं।
आसान नहीं है परमाणु युद्ध
भारत द्वारा पाकिस्तान में हुए एयर स्ट्राइक के बाद जो भारत को पहली धमकी दी गई, वो यह, “यदि पाकिस्तान पर हमला हुआ तो पाकिस्तान परमाणु बम का उपयोग भारत के विरूद्ध करेगा।”

ज्ञात हो कि भारत खुद भी परमाणु सम्पन्न देश है। ऐसे में क्या वाकई पाकिस्तान परमाणु युद्ध करता? परमाणु युद्ध की स्थिति में अंतराष्ट्रीय स्तर पर अब मायने यह नहीं रखता कि किस देश ने किस देश पर परमाणु बम छोड़ा है, बल्कि यह मायने रखता है कि किसी देश ने हिरोशिमा और नागासाकी के बाद परमाणु बम छोड़ा है।
नई पथा को जन्म देता पाकिस्तान
हिरोशिमा और नागासाकी पर छोड़ा गया परमाणु बम का मुख्य उद्देश्य द्वितीय विश्व युद्ध को रोकना और अमेरिका को शांति दूत के तौर पर स्थापित करना था लेकिन यदि पाकिस्तान परमाणु बम छोड़ता तो वह शांति के लिए नहीं होता, बल्कि इतिहास में पहली बार कोई देश युद्ध लड़ने के लिए परमाणु बम छोड़ता, जो कि एक नई प्रथा को जन्म देती।
ऐसे में स्वाभाविक था कि पाकिस्तान पुरे विश्व में एक ऐसी दुष्प्रथा को जन्म देने जा रहा होता जिससे पुरे विश्व को ही खतरा होता। एक बार प्रथा शुरू हो जाती तब अन्य देशों का डर भी खत्म होता, वे भी एक दूसरे पर एटम बम छोड़ने लगते।
यह भी संभव था कि कोई देश अमेरिका पर ही बम फोड़ दे। इस स्थिति में निसंदेह नाटो सहित अन्य अंतराष्ट्रीय संगठन इस कुप्रथा को रोकने हेतु पाकिस्तान के परमाणु स्टेशनों पर कब्ज़ा जमा लेती और पाकिस्तान के तख्त को नियंत्रण में ले लेती।

परमाणु बम छोड़ने की स्थिति में पाकिस्तान ज़्यादा बुरी स्थिति में होता, जबकि नहीं छोड़ने की स्थिति में ना तो सैन्य शक्ति और ना ही हथियारों में ही उसका भारत से कोई मुकाबला है।
अंतराष्ट्रीय इस्लामिक संगठनों ने पहले ही पल्ला झाड़ा हुआ है, जबकि इज़राइल, फ्रांस, अमेरिका और रूस अपने हथियारों के सबसे बड़े ग्राहक, ‘भारत’ की ओर ही देखते। एक चीन है जो शायद पाकिस्तान के साथ खड़ा होता लेकिन परमाणु युद्ध और अंतराष्ट्रीय ट्रेड के दबाव में वह भी खुलकर साथ नहीं दे पाता।
इमरान खान के पास विकल्प क्या होते?
- जैसा कि हमने उपर ज़िक्र किया है, परमाणु युद्ध का रास्ता इमरान खान या पाकिस्तानी सेना का अंतिम रास्ता भी नहीं होता। अभिनंदन को ना छोड़ने से युद्ध के हालात ज़्यादा बढ़ते, जो कि पाक के हितों में कभी नहीं होते। ऐसे में पाकिस्तान के पास छोड़ने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था।
- युद्ध के लिए हथियारों के अलावा फॉरेन रिज़र्व भी चाहिये होता है, जो की पाकिस्तान के पास बिल्कुल ना के बराबर है, जबकि भारत हज़ार गुना बेहतर स्थिति में है, ऐसे में पाकिस्तान युद्ध की स्थिति में खाने को भी तरस सकता था।
- अभिनंदन को छोड़ने से पाकिस्तान की आंतकवादी वाली इमेज भी ठीक होगी। दुनिया भर में आतंकवाद के लिए बदनाम देश अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंदी देश के सैनिक के साथ मानवीय व्यवहार कर रहा है। चाय पिला रहा, फिर अमन का पैगाम देकर छोड़ रहा और दुनिया को यह संदेश दे रहा है कि जिस पाकिस्तान को वे जानते थे, वह अब पुराना हो चुका है। यह नया पाकिस्तान है, इमरान खान का पाकिस्तान है, जो हाफिज़ सईद जैसों के विरोद्ध में खड़ा है।
- भारत की इस बदलती तस्वीर के बीच यह कहना गलत नहीं होगा कि यह नया भारत है, जो किसी भी व्यक्तिपरक नेतृत्व का गुलाम नहीं है। नेता कोई भी हो, देश आज खुद ही वैश्विक चुनौतियों का सामना करने में सक्षम है।
पाकिस्तान के विकल्पों की बात की जाए तो कुल मिलाकर पाकिस्तान ने वही किया जो उसके पास विकल्प था। इसे उनकी लाचारी भी कह सकते हैं या अंतराष्ट्रीय समीकरणों का प्रभाव।
निसंदेह युद्ध एक अंतहीन विकल्प ही है और शांति का मार्ग नैसर्गिक ज़िम्मेदारी लेकिन इन सबके बीच मुख्य समस्या अभी भी वहीं खड़ी है। आतंकवाद के मुद्दें के समाधान में पाकिस्तान अभी भी केवल शांति के दिखावे के बीच खोखले दावे ही पेश कर रहा है, जबकि कश्मीर समस्या, अब कश्मीरियों की समस्या से कहीं आगे की बात हो चुकी है, जिसका समाधान भी जल्द तलाशना होगा।
नोट: लेखक श्वेतांक मिश्रा भारतीय सामाजिक अनुसंधान परिषद के ‘रिसर्च फेलो’ हैं।
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