प्रयागराज कुम्भ 2019 में मानवाधिकार जन-निगरानी समिति ‘जनमित्र न्यास’ से विनोद कुमार के साथ 1 मार्च 2019 को ‘महफूज़ सुरक्षित बचपन’ के कार्यक्रम में भाग लिया। प्रयागराज कुम्भ 2019 के मेले में कई गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा भी कार्यक्रम चलाया जा रहा था।
हमलोग त्रिवेणी संगम अक्षय वट पर कैनोपी लगाकर बच्चों की जेब मे एक पर्ची डाल रहे थे, जिसपर नाम, पता और मोबाइल नंबर लिखा जा रहा था। इस कार्यक्रम के समर्थन में हस्ताक्षर कराना व पर्चा-पम्प्लेट वितरण कर लोगों को तमाम जानकारियां दी जा रही थीं।
जो बच्चे बाल भिक्षावृति और बाल श्रम कर रहे हैं, हमने उनका केस स्टडी भी तैयार किया। मेले में आए बच्चों के बीच जो पर्ची हमने बांटी, उसके बारे में वहां मौजूद लोगों को समझाते हुए उनसे हस्ताक्षर भी कराया गया।
भगवान का रूप धारण कर भीख मांगते हैं बच्चे
बच्चों से बातचीत करते हुए उनका केस स्टडी बनाने के बाद यह बात निकल कर आई कि बच्चे भगवान का रूप धारण कर मैहर, काशी और चित्रकूट आदि जगहों पर भिक्षावृत्ति का काम करते रहते हैं।
इसके बाद हम लोग इसी तरह से बच्चों को पर्ची लिखकर देते गए और लोगों को समझाकर हस्ताक्षर कराते गए। इसी बीच हमलोग बाल श्रम और बाल भिक्षावृत्ति करने वाले बच्चों के स्थान का पता लगाने निकल पड़े।
बाल श्रम करने वाले बच्चों की हालत भी बेहद चिंताजनक
हमने देखा कि घाट के किनारे बाल भिक्षावृत्ति करने वाले बच्चों की लंबी कतारें लगी हुई थीं। उनमें से अधिकांश बच्चों की उम्र 8, 10, 14 और 16 थी। उन्हीं बच्चों में से 4-5 बच्चे टोकरी लिए गाड़ियों को घेर घेरते हुए कहते थे, “हे बाबू हमरा माला फूल लेलो, हे मालिक हमरा माला फूल लेलो।”
इन बच्चों को वहां मौजूद लोग भी लगातार डांट-फटकार लगा रहे थे। बच्चों के लिए यह काम बेहद चुनौतीपूर्ण सा दिखाई पड़ रहा था। लोग स्नान करने के बाद किसी एक बच्चे का माला फूल लेकर चढ़ा लेते और शेष बच्चे दूसरी ओर दौड़कर अपना-अपना माला फूल बेचने चले जाते थे।
बच्चे अधिक और दान देने वाले कम
जब लोग संगम अक्षय वट से स्नान-पूजा कर बाहर आने लगते तो वे दान पुण्य की इच्छा में भी रहते थे। सामने कतार लगाए भिक्षावृत्ति में संलिप्त बच्चों को लोग चावल और कुछ पैसे दान में देते थे।
भिक्षावृत्ति में इतने बच्चे थे कि एक व्यक्ति भी कुछ लोगों को देने के बाद बगल होने लगते थे। इसके बाद दूर बैठे भिक्षावृत्ति करने वाले बच्चे दान देने वाले व्यक्ति पर भिक्षा लेने के लिए टूट जाते थे।

‘हमें दे द बाबू’, ‘हमें दे द साहब’ और ‘हमे ना मिलल हव’ जैसे शब्द लगातार सुनाई पड़ रहे थे। इसी तरह पीछे-पीछे जब कुछ दूर तक भिक्षुक बच्चे चले जाते थे, तब कुछ व्यक्ति कुछ रुपया निकाल कर 2-4 बच्चों को दे देते थे।
इसके बाद लोग अन्य भिक्षुक बच्चों से अपना पीछा छुड़ाकर हट जाते थे। ऐसे में जिन बच्चों को भिक्षा नहीं मिल पाता था, वे आपस में ही लड़ने लग जाते थे।
‘तय हमरे आगे आगईले ना ही त हमके मिलत’ यही कहकर आपस में भद्दी-भद्दी गालियां देकर लड़ाई-झगड़े करने लगते थे। वहीं, उनके परिवारवाले भी उन बच्चों से लड़ाई करते थे, जिन्हें भिक्षा में कुछ ज़्यादा पैसे मिलते थे।
इस पेशे में हिंसा भी है
भिक्षावृत्ति वाले बच्चों के परिवार में हमेशा झगड़ा होता रहता था। यहां तक कि हाथ में लिए तसली से मारपीट भी कर लिया करते थे। भिक्षावृति में हर हाल में बच्चों को गालियां सुननी पड़ती थीं।
02 मार्च को 5 बजे संगम अक्षय वट के स्नान घाट पर बाल भिक्षावृति और बाल श्रम करते बच्चे फिर मिले। वे बच्चे अपने दादा-दादी और नाना- नानी के साथ आकर भिक्षावृति कर रहे थे। वहीं, दो दिनों में भिक्षावृत्ति व बाल श्रमिक बच्चों की पहचान से दोस्ती भी होने लगी।
इस लेख के ज़रिये मैंने सिर्फ उन चंद दिनों की बातें बताई हैं, जो मैंने अनुभव किया है लेकिन देश के अलग-अलग इलाकों की तस्वीर क्या होगी इसका अनुमान लगाने मात्र से रूह कांप जाती है। इन चीज़ों को वक्त रहते सही करने की ज़रूरत है।
The post प्रयागराज में बाल श्रम और भीख मांगने वाले बच्चों की कहानी appeared first and originally on Youth Ki Awaaz and is a copyright of the same. Please do not republish.