गांव के दालान पर बैठकी लगी थी. नीतीश कुमार के नेतृत्व में राजग( राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) की सरकार लालू यादव के किले को धराशायी करते हुए सत्ता में पहुंची थी. दालान पर सभी उत्सुक थे और बोल रहे थे कि अब तो सुशासन बाबू के शासन में शहाबुद्दीन सरीखे अपराधियों की खैर नहीं. कुछ महीनों बाद ही शहाबुद्दीन पर कानून का शिकंजा कसता गया. ज्यों-ज्यों शहाबुद्दीन या किसी और राजनीतिक रसूख वाले अपराधियों पर कानूनी शिकंजा कसता, त्यों-त्यों उस दालान पर उत्सव का माहौल होता.
लगभग 10 वर्षों बाद नॉन रेजिडेंट बिहारी बनकर उस दालान से दूर हूँ. राजस्थान के गांवों में शिक्षा के उत्थान हेतु तत्पर हूँ और हमेशा यही सोचता रहता हूँ कि अब बिहार लौटने का वक़्त हो चला है। इस सोच और काम के व्यस्तता के बीच व्हाट्स एप्प पर अचानक एक मैसेज आया,
“शहाबुद्दीन को तेज़ाब कांड में जमानत, जेल से बाहर आना लगभग तय”।
इस सन्देश ने अचानक मेरी गति पर ब्रेक लगा दी। इस वक़्त जब कई युवा साथी बिहार लौटने और कुछ अलग करने की तैयारी में सर्वस्व दांव पर लगाने को तैयार हैं, उस समय कोर्ट से आया यह फैसला हमें फिर से सोचने पर मजबूर कर देता है।
मुझे स्वीकारने में कोई हर्ज़ नहीं कि हम लोग शहाबुद्दीन से डरते हैं. उसके जेल से बाहर आने की खबर सुनकर डरते हैं, वह सीवान जेल में होता है फिर भी सीवान के भले लोग डरते हैं,पत्रकार डरते हैं, आम छात्र और छात्र नेता भी डरते हैं.
राजवीर हत्या कांड को कौन भूल सकता है, लड़कों को तेज़ाब से नहला कर मारना कौन भूल सकता है। भले आप कामरेड चंद्रशेखर की हत्या की बात भूल जाएं,हम नहीं भूल सकते क्योंकि हमारी माँ, बहन, भाई, बाबूजी सभी आज भी वहीं रहते हैं, इसलिए डर लगता है।
पता नहीं जब यह खबर आज उस दालान पर पहुंची होगी तो वहाँ के लोगों की क्या प्रतिक्रिया रही होगी? पता नहीं मेरी माँ और छोटे भाई-बहन को इस ख़बर की ख़बर है भी कि नहीं? लेकिन इतना ज़रूर है कि लालू यादव, नीतीश कुमार के कंधे पर बंदूक रख अपने राजनीतिक समीकरण को फिर से मजबूत कर रहे है।
शहाबुद्दीन को ज़मानत उसी दिशा में बढ़ता हुआ कदम है और नीतीश कुमार कुर्सी के मोह में धृतराष्ट्र बने बैठे हैं। इस एक फैसले और चंद राजनीतिक समीकरणों के चक्कर में बिहार और बिहार के आवाम को फिर से बलि का बकरा बनाया जा रहा है।
शहाबुद्दीन का जेल के बाहर होना ना जाने बिहार में कौन सा बहार लाएगा? लेकिन चंदा बाबू(जिनके तीनों बेटों की हत्या का आरोपी शहाबुद्दीन है) को न्याय दिलाना हमारा फर्ज़ है। उस दालान की खुशियाँ वापस लाना हमारा कर्तव्य है. हम चुप नहीं रहेंगे, हम लिखेंगे। हमारी आप सभी से भी गुज़ारिश है कि आप भी लिखें क्योंकि आपकी तटस्थता का सीधा मतलब होगा शहाबुद्दीन की जय और बिहार के खूनी इतिहास की जय।
The post ‘मुझे अपने बिहार वापस जाना था, लेकिन सुना है शहाबुद्दीन जेल से बाहर आ रहा है’ appeared first and originally on Youth Ki Awaaz, an award-winning online platform that serves as the hub of thoughtful opinions and reportage on the world's most pressing issues, as witnessed by the current generation. Follow us on Facebook and Twitter to find out more.