“भारत के डिवाइडर-इन-चीफ”, यह कथन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए टाइम मैगज़ीन की तरफ से आया है। वैसे तो यह एक बहुत ही विवादास्पद कथन है लेकिन मुझे नहीं लगता कि यह हमारे देश के प्रधानमंत्री पर फिट बैठता है।
मैं ऐसा इसलिए नहीं कह रहा हूं कि मुझे यह लगता है इन्होने देश में धार्मिक असहिष्णुता नहीं फैलाई या फैलाई है, बल्कि इसलिए कह रहा हूं क्योंकि इसी कथन (डिवाइडर-इन-चीफ) को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के ले लिए वहां की मीडिया एजेंसियों ने प्रयोग किया था, जिसमे वाशिंगटन पोस्ट , द हिल, हफ़ पोस्ट जैसी प्रमुख न्यूज़ एजेंसीज़ भी शामिल थे।
फर्क बस इतना है कि इस बार ”इंडियाज़” शब्द इसके आगे लगाकर इसे नरेंद्र मोदी के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। वैसे इसकी उत्पत्ति भी अमेरिका में ही हुई है। अमेरिका के राष्ट्रपति को वहां के कमांडर-इन-चीफ कहते हैं, “जिससे प्रभावित होकर मुझे लगता है वहां की मीडिया ने अपने तत्कालीन राष्ट्रपति के लिए इस कथन का प्रयोग किया और अब भारत के प्रधानमंत्री के लिए उपयोग किया जा रहा है।”
मोदी को एक पॉपुलिस्ट नेता के तौर पर चित्रित किया गया है
यह विवादास्पद कथन प्रधानमंत्री द्वारा किए हुए वादों को पूरा ना करने, भारत को एकतरफा हिन्दू राष्ट्र की तरह सम्बोधित करने तथा यहां के मुस्लिम माइनॉरिटी के खिलाफ किए जा रहे उपद्रवों के सम्बन्ध में कोई ज़रूरी दिशा-निर्देश ना दिए जाने तथा महिला शोषण के खिलाफ प्रयोग किया गया है, जिसे टाइम मैगज़ीन के एक पत्रकार “आतिश तासीर” द्वारा टाइम मैगज़ीन में लिखे गए एक कॉलम में लिखा गया है।

इसमें उन्होंने मोदी को एक पॉपुलिस्ट (लोकलुभावन) नेता के तौर पर चित्रित किया है, तथा पॉपुलिज़्म (लोकलुभावनवाद) की राजनीति की आलोचना भी की है, जिसे मैं मनाता हूं कि कहीं ना कही सही भी है क्योंकि कोई भी प्रधानमंत्री अकेले अपने बल पर देश को बदल नहीं सकता, इसके लिए उसे एक विशिस्ट और कर्मठ मंत्रिमंडल की ज़रूरत पड़ेगी ही।
हम अपने अतीत में जाकर देखे तो समझ पाएंगे कि जब भी कोई प्रधानमंत्री ने अकेले हमारे देश के लिए कुछ करने की कोशिश की है; तो उसका परिणाम हमेशा उलटा ही पड़ा है। उदाहरण के तौर पर हम हमारे भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी जी का कार्यकाल देख सकते हैं।
टाइम के कवर पर मोदी जी को ‘डिवाइडर इन चीफ’ बताना विवादास्पद है
आतिश जी ने मोदी जी की जो आलोचना की, मैं मानता हूं कि कही ना कहीं सही है परन्तु पूर्ण रूप से नहीं लेकिन हां, टाइम मैगज़ीन का मोदी जी को यह कहना कि वह भारत के विभाजक हैं; यह बहुत ही आपत्तिजनक और विवादास्पद टिप्पणी है।
भारत में सिर्फ मुस्लिम ही माइनॉरिटी में नहीं हैं और यह कहना कि उन्हें सताया जा रहा है या उनकी सुरक्षा के लिए कोई बेहतर कदम नहीं उठाया जा रहा है, यह गलत बात है।
जब बात मुस्लिम माइनॉरिटी की आती है तो ना केवल भारतीय मीडिया बल्कि अंतराष्ट्रीय मीडिया भी हलचल में आ जाती है। हालांकि बाकी माइनॉरिटी के खिलाफ कुछ होता है तो वह कुम्भकर्ण बनी रहती है। अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए मौजूदा भारत सरकार ने पंद्रह सूत्री कार्यक्रम चालू किया था, जिसका मुख्य विषय मुस्लिमों का उत्थान ही था। इसमें उनकी मदरसा शिक्षा से लेकर आगे की शिक्षा, उनके व्यापार और रोज़गार के क्षेत्र में उन्नति को ध्यान में रखकर इस कार्यक्रम को बनाया गया है।

इसके बारे में अधिक जानकारी के लिए आप माइनॉरिटी अफेयर्स की वेबसाइट पर जाकर पढ़ सकते हैं। भारत हमेशा से एक सहिष्णु देश रहा है और रहेगा, यह हम पिछले कई दशकों से समझते और जानते आ रहे हैं और आगे भी रहेंगे। हमे यह किसी विख्यात पत्रकार चाहे वो राष्ट्रीय हो या अंतर्राष्ट्रीय, से सहिष्णुता सीखने की ज़रूरत नहीं है।
बस यह बहुत दुःख की बात है कि शुरू से ही चाहे वह अंग्रेज़ों का समय हो या अभी के राजनीतिज्ञों का, वे हमे भोलेपन और हमारे सामाजिक और धार्मिक अंतरों का फायदा उठाकर उसे हमारे खिलाफ प्रयोग करके हमे एक-दूसरे के खिलाफ भड़काते और लड़वाते रहे हैं और अगर हमें कुछ सीखने और जानने की ज़रूरत है, तो बस यही है और कुछ नहीं। हम यह भी सीखते आ रहे हैं, बहुत जल्द हम आपसी सारी रंज़िशें खत्म कर देंगे।
महिला शोषण के मामले में पत्रकार आतिश को रिसर्च करने की ज़रूरत थी
खैर, महिला शोषण के मामले में आतिश जी को यह पता होना चाहिए था कि भाजपा का यह कार्यकाल अपने मंत्रिपरिषद के इतिहास में सबसे ज़्यादा महिला मंत्रियों के होने का गवाह बना है। उन्होंने अपने आर्टिकल में जिस महिला मंत्री का ज़िक्र किया था, वह भारत की मौजूदा रक्षा मंत्री हैं, उनके पति तथा उनके पति का परिवार एक प्रो-काँग्रेस परिवार है।
वहां से इनको बीजेपी में शामिल करना तथा इन्हे रक्षा मंत्री बनाने जैसा काम मुझे लगता है कि सिर्फ बीजेपी ही कर सकती है, किसी और के बस की बात नहीं है। अगर आप महिला सशक्तिकरण का सपना देखते हैं तो मुझे लगता है यह महिलाओं को ऐसी ज़रूरी पदवियां देने के बाद ही संभव है फिर वह चाहे किसी भी जाति, धर्म, मज़हब या परिवार से हों।
धर्म और अंधविश्वास के खिलाफ आतिश की बातें सही हैं
आतिश जी ने अपने आर्टिकल में अन्धविश्वासों के खिलाफ जो कुछ भी बोला है, चाहे वह किसी भी धर्म में हो, मुझे लगता है कि पूरी तरह से सही है और ऐसे अन्धविश्वासों को मिटाने के लिए कार्य करना चाहिए तथा वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना चाहिए। चाहे वह गायों की पूजा करने को लेकर हो या तीन तलाक।
जो ज्वलंत मुद्दे हैं, जिनकी वजह से इतनी लिंचिंग हो रही है, मुझे लगता है कि उस पर विशेष ध्यान देना चाहिए तथा उसे खत्म करने के लिए एक कमिटी का भी गठन करना चाहिए। तभी हम अपने देश को आतंरिक रूप से ज्यादा सुरक्षित बना पाएंगे।
सरकार किसी की भी हो यह सारे प्रश्न जो कि आतिश जी ने किए हैं, मुझे लगता है एक बेहतर कल के लिए बहुत आवश्यक है और हर एक नागरिक के मन में ऐसे सवाल ज़रूर होने चाहिए लेकिन बिना किसी भेदभाव के अपने मन में यह चीज़ लानी होगी कि मैं किस धर्म, जाति या मज़हब का हूं, तभी सवाल का सही जवाब मिल पाएगा और देश सहिष्णुता और तरक्की की तरफ अग्रसर होगा।

अगर जो लोग इस तरीके से नहीं समझ पाते हैं, उनके प्रश्न क्या हैं और कैसे पूछे जाने चाहिए, उन्हें ऐसे आर्टिकल्स से शिक्षा लेकर उन्हें पढ़कर उस पर मंथन करके सोचना चाहिए, तभी उन्हें एक व्यवस्थित और टिकाऊ सरकार; जो उनके लिए डटकर काम करे और इच्छा शक्ति से करे, मिल पाएगी।
मेरा लोगों से यह कहना है कि आतिश का आर्टिकल यह समझ कर ना पढ़ें कि वह एक पाकिस्तानी हैं तथा उनके पिता एक पाकिस्तानी नेता थे, बल्कि यह सोच कर पढ़ें कि आतिश विश्व मीडिया को रिप्रेजेंट कर रहे हैं और उनकी कही हुई बात कितनी सही है और कितनी नहीं।
उनके पिताजी सलमान तासीर की जहां तक बात है, मैं उनके बारे में बता दूं कि उन्हें एक पाकिस्तानी महिला जिसका नाम आशिया बीबी था; को न्याय दिलाने के सम्बन्ध में मार दिया गया था।
The post “क्यों पीएम मोदी डिवाइर इन चीफ नहीं हैं” appeared first and originally on Youth Ki Awaaz and is a copyright of the same. Please do not republish.