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“नौजवान साथियों, क्या सारे अच्छे काम 2014 के बाद ही हुए हैं?”

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हाल ही में व्हाट्सएप पर एक मैसेज मिला। इसे चुटकुला कहना ज़्यादा सटीक होगा। चुटकुला कुछ यूं था,

“हमारे एक मित्र का बेटा 18 घंटे पढ़ने के बाद भी 10वीं क्लास में फेल हो गया। उन्हें विश्वास नहीं हुआ तो विद्यालय जा कर आंंसर शीट निकलवाई। उन्होंने प्रश्नों के उत्तर देखे तो वह खुद आश्चर्य में पड़ गए।

प्रश्न- हरित क्रांति कब शुरू हुई?

उत्तर- 2014 के बाद।

प्रश्न- श्वेत क्रांति कब शुरू हुई?

उत्तर- 2014 के बाद।

प्रश्न- भारत ने पहला परमाणु बम परीक्षण कब किया था?

उत्तर- 2015 के बाद।

प्रश्न- दलितों के हित में योजनाएं कब शुरू हुई?

उत्तर- 2016 के बाद।

प्रश्न- भारत में पहला कम्प्यूटर कब आया?

उत्तर- 2015 के बाद।

प्रश्न- भारत असली रूप में कब आज़ाद हुआ?

उत्तर- 2014 के बाद।

प्रश्न- भारत में पंचायती राज कब आया था?

उत्तर- 2016 के बाद।

प्रश्न- भारत का सबसे बड़ा सामाजिक संगठन कौन है?

उत्तर- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ।

प्रश्न- भारत के महान संत कौन-कौन हैं?

उत्तर- आसाराम बापू, राम रहीम, बाबा रामदेव, प्रज्ञा सिंह ठाकुर,  अजय सिंह बिष्ट, उमा भारती, साध्वी निरंजन ज्योति, ॠतंभरा, आदि।

प्रश्न- भारत को आज़ाद किस व्यक्ति और किस विचारधारा ने कराया?

उत्तर- प्रधानसेवक नरेंद्र मोदी और संघ की विचारधारा ने।

प्रश्न- इस देश में आर्थिक उदारीकरण कब शुरू हुआ?

उत्तर- 2014 के बाद।

प्रश्न- संचार क्रांति कब शुरू हुई?

उत्तर- 2014 के बाद।

प्रश्न- बैंकों का राष्ट्रीयकरण कब हुआ?

उत्तर- नोटबंदी के दौरान।

प्रश्न- देश की सुरक्षा के ल‍िए आर्मी, नेवी, एयरफोर्स,  बीएसएफ, सीआईएसएफ, आईटीबीपी, एसपीजी, एनएसजी, कोस्‍टगॉर्ड आदि का गठन किसने और कब किया?

उत्तर- प्रधानसेवक नरेन्द्र मोदी ने 2014 के बाद।”

2014 से पहले के भारत को झुठलाने की कोशिश

नौजवान साथियों, आप मिलेनियल हैं यानि 21वीं सदी की संतानें। आज 2001 में पैदा होने वाली पीढ़ी 18 साल की हो चुकी है। वह पीढ़ी इस बार वोट दे रही है। कुछ पार्टियों का खास ज़ोर आप म‍िलेनि‍यल पर ही है। इसी तरह एक बड़ा समूह है, जो 1992 के बाद पैदा हुआ है। वह भी लगभग 27 साल का हो चुका है। यानि शहरी भारतीय आबादी का बड़ा हिस्सा इन 27 सालों में दुनिया में आया है।

आप सभी जोश और उम्मीदों से भरे नौजवान हैं। जब आपने अपनी आंखें खोली तो ज़्यादातर को यह शहरी दुनिया वैसी नहीं म‍िली, जैसी आपके पुरखों को म‍िली थी। खासतौर पर बेहतर ज़िंदगी के लिए सरकारी सुव‍िधाओं और मौकों के मामले में आप शहरी युवा अपने पुरखों से बेहतर हालत में थे। यकीन नहीं हो तो कहीं और जाने की ज़रूरत नहीं है। आप अपने घर में ही पता कर सकते हैं।

राजनीतिक रैली
फोटो साभार: Getty Images

मगर आपको अलग-अलग माध्यमों से यह बताने की कोशिश की जा रही है कि यह सब झूठ है। जो हुआ है वह सन् 2014 के बाद ही हुआ है। आज़ादी के सत्तर सालों में कुछ नहीं हुआ था। आप इस पर यकीन भी कर रहे हैं। तभी तो आप फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, जैसे सोशल साइट्स पर 2014 से पहले क्या हुआ था ऐसे संदेश बिना किसी जांच के भेजते रहते हैं।

सच जानना आज की तारीख में बहुत कठ‍िन नहीं है। हां, बशर्ते आप जानने की ख्वाहिश रखते हो। जवानी तो जिज्ञासाओं से जूझने का ही नाम है। ज्ञान हासिल करने की तड़प ही जवानी है। आपने सुना ही होगा कि फांसी दिए जाने से चंद मिनट पहले तक नौजवान भगत सिंह पढ़ ही रहे थे।

क्या 2014 से पहले लोकतंत्र नहीं था?

हम चाहे जितनी भी आलोचना कर लें लेकिन अगर इमर्जेंसी के ढाई साल छोड़ दें तो भारत का लोकतंत्र बिना रुके 70 साल से चल रहा है। दुनिया इस लोकतंत्र का लोहा मानती है। भारत के साथ या भारत के बाद आज़ाद हुए किसी मुल्क में ऐसा लोकतंत्र शायद ही है।

अपने पड़ोस में तो ऐसा कहीं नहीं रहा है। अपने देश में पंचायत से लेकर लोकसभा तक चुनाव होते हैं और लोगों की भागीदारी से होते हैं।चुनाव के लिहाज से हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं और यह 2014 की देन नहीं है। इसी लोकतंत्र की वजह से कोई गरीब, कोई किसान, कोई अल्पसंख्यक, कोई पिछड़ा इस मुल्क का पहला सेवक बनता रहा है।

क्या भारत की प्रगति 2014 के बाद शुरू हुई है?

चाहे कोई मुल्क हो या हम में से कोई शख्स, किसी की आज़ादी का बड़ा आधार होता है कि वह खुद के पैरों पर कितनी मज़बूती से खड़ा है। दुनिया में पिछले दिनों मंदी आई थी। कई देशों में तबाही लाई थी। भारत उस मंदी को किसी तरह झेल गया। यह 2014 से पहले की बात है। यह क्यों और कैसे हुआ?

एक उदाहरण काफी है। जिन्हें दुनिया नवरत्न कंपनियों के रूप में जानती है, वे सब इसके एक मज़बूत आधार थे। इनमें से एक भी नवरत्न कम्पनी 2014 के बाद नहीं बनी है। कई शहर जिन्हें हम सिर्फ इसलिए जानते हैं कि वहां कुछ उद्योग लगे हैं, वे सब उद्योग कब लगे हैं?

अगर हम वाकई सत्य की तलाश में हैं तो हमें पता करना चाहिए कि एचएएल, एचईसी, एनटीपीसी, सेल, ओएनजीसी, थर्मल पावर कार्पोरेशन, जैसी अनेक कंपनियां और इनके नए और पुराने अवतार कैसे और कब बने? सामाजिक और वैज्ञानिक शोध में लगे ढेरो संस्थान कब अस्तित्व में आए? ये सारे संस्थान 2014 के बाद तो नहीं बने थे।

क्या 2014 के पहले भारतीयों में प्रतिभा नहीं थी?

हमने परमाणु वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा, विक्रम साराभाई, प्रोफेसर यशपाल जैसे लोगों का नाम ज़रूर सुना होगा। ये और इन जैसे अनेक भारतीय वैज्ञानिक परमाणु तकनीक, अंतरिक्ष विज्ञान और वैज्ञानिक चेतना की अगुवाई कर रहे थे। इनमें से कोई भी 2014 के बाद यह सब नहीं कर रहा था।

नारायण मूर्ति, नंदन निलेकणी, रघुराम राजन, सुंदर पिचाई, सच‍िन बंसल, बिन्‍नी बंसल, चेतन भगत, मनोहर पार्रिकर, अम‍ित स‍िंघल, न‍िकेश अरोड़ा, हर्षा भोगले, अरव‍िंद सुब्रमण्‍यम, एमवी कामथ, इनमें से किसी ने भी 2014 के बाद अपना नाम नहीं बनाया है।

इन जैसे हज़ारों नाम उन आईआईटी या आईआईएम से निकले हैं, जहां पढ़ना आप जैसे लाखों भारतीय युवाओं का ख्वाब होता है। यह सत्य है कि दुनिया के सामने भारत की तकनीक और प्रबंधन का लोहा मनवाने वाले इन संस्थानों का आधार दशकों पहले रखा गया था।

क्या भारत 2014 के बाद विश्वगुरु बना?

क्‍या आपको तनिक भी अंदाज़ा है क‍ि आपके आंखें खोलने और होश संभालने से पहले दुनिया में भारत की हालत क्‍या रही है? आपको अपने स्कूल की क‍िताब या नौकरी की तैयारी के दौरान एक नाम पढ़ने को म‍िला होगा, “गुट न‍िरपेक्ष आंदोलन”। यह सवा सौ देशों का आंदोलन रहा है। इसकी नींव में भारत और ‘बदनाम-ए-ज़माना’ भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू रहे हैं।

तीसरी दुनिया के देशों का यह आंदोलन, दुनिया की दो महाशक्तियों के बीच गर्व से सर ऊंचा कर खड़ा हुआ था। इसने महाशक्तियों से बराबरी के स्तर पर बात की और दुनिया को अमन के साथ बराबरी से जीने और विकसित होने का विचार दिया। यह युद्ध करने और थोपे जाने के खिलाफ दुनिया का सबसे बड़ा आंदोलन माना जाता है। यह भारत की विश्वगुरु की भूमिका थी या नहीं?

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन

एक और नाम आपने ज़रूर पढ़ा ही होगा, ‘दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस)’ जिसे अंग्रेज़ी में ‘साउथ एशियन एसोसिएशन फॉर रीजनल कोऑपरेशन (सार्क)’ कहते हैं। यह हमारे मुल्क के आसपास के देशों के बीच आपसी सहयोग बढ़ाने और मिलकर काम करने वाला संगठन रहा है। इसे बनाने में भी भारत ने अगुवाई की।

यह संगठन भी 2014 के बाद नहीं बना है। इनके बारे में आसानी से जानकारी हासिल की जा सकती है। चाहे दुनिया की बात हो या पड़ोस की बात हो, भारत के पुरखों ने उसका सिर हमेशा ऊंचा रखा है। यह बात ज़रूर है कि इसे जताने के लिए उन्होंने बिना मतलब यहां-वहां ताल नहीं ठोका है।

क्या भारत अब सेहतमंद बना है?

आज हम प्लेग, कालाजार, मलेरिया, चेचक से कितने लोगों की मौत की खबर सुनते हैं? कितने लोगों को पोलियो के गिरफ्त में आते हुए पाते हैं? यह कैसे और कब कम हो गए? अमीर हो या गरीब, हर बीमार इंसान और उसके परिवारजनों की ख्वाहिश होती है कि उसका इलाज भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) या पीजीआई में हो जाए।

ये संस्थान इतने भरोसेमंद कैसे और कब बने? इनमें इतने काबिल डॉक्टर कब और कहां से आ गए? उन्होंने जिन जगहों पर पढ़ाई की, वे संस्थान कब बने थे?

आप जिन संस्थानों में पढ़ना चाहते हैं, वे कब बनें?

यह सोचिए कि बारहवीं पास हर स्टूडेंट आगे की पढ़ाई कहां करना चाहता है? आप में से अगर किसी को अर्थशास्त्र या कॉमर्स पढ़ना है, इतिहास या राजनीति शास्त्र पढ़ना है तो पहली पसंद क्या होगी? अगर किसी के पास साधन है तो वह कहां पढ़ना चाहेगा? अगर किसी को फैशन टेक्नोलॉजी, मैनेजमेंट या कानून पढ़ना है तो वह किस संस्थान में जाना चाहेगा?

अगर किसी को फिल्म तकनीक की जानकारी लेनी हो या रंगमंच की बारीकियां सीखनी हो तो वह कहां जाना चाहेगा? भारत में उसे जो पसंद आएगा, उनमें से कितने संस्थानों की पैदाइश पांच साल में हुई है? ये सब तो हम सब आसानी से पता कर सकते हैं? तो क्यों नहीं करते?

क्या डिजिटल भारत 2014 के बाद ही बना है?

आप मिलेनियल यानि स्मार्ट युग के नौजवान हैं। आपकी ज़िंदगी तो कम्प्यूटर, स्मार्ट फोन और इंटरनेट के बिना अधूरी है। भारत में क्या ये सब अचानक से आ गया? हमें पता करना चाहिए कि जिसे हम दूरसंचार क्रांति और कम्प्यूटर क्रांति कहते हैं या अब जिसे डिजिटल क्रांति कहा जा रहा है, उसकी बुनियाद कब पड़ी और उसमें तेज़ छलांग कब लगी?

कैसे अचानक भारत के आईटी वाले दुनिया में छा गए? क्या ये सब पिछले पांच सालों में हुआ है? पता करने के लिए ज़्यादा दूर जाने की ज़रूरत नहीं है। गूगल क्यों नहीं करते? देखिए कहीं सर्च में एक और ‘बदनाम ए ज़माना’ प्रधानमंत्री का नाम तो नहीं बता रहा है?

क्या पाकिस्तान 2014 के बाद ही सीधा हुआ है?

आज़ादी के बाद भारत ने तय किया कि हम अपनी तरफ से किसी देश पर हमला नहीं करेंगे मगर इतिहास बताता है कि जब भी हम पर युद्ध थोपा गया तो हमने उसका बहादुरी से सामना भी किया है।

बॉर्डर
फोटो साभार: Getty Images

ऐसा नहीं है कि बहादुरी अचानक 2014 के बाद पैदा हो गई। 1965, 1971 में वही पाकिस्तान हमारे सामने था, आज जिसका नाम लिए बिना हमारे कुछ नेताओं का एक भी भाषण पूरा नहीं होता। क्या उस दौरान पाकिस्तान ने भारत को हरा दिया था?

तो वाकई कुछ नहीं हुआ?

थोड़ी इतिहास की बात भी की जाए। अंग्रेज़ों से आज़ादी की लड़ाई के दौरान भारत में मुख्यत: तीन धाराएं थीं। दो धाराओं का आधार धार्मिक राष्ट्रवाद था यानी वे अपने-अपने धर्मों के बारे में सोचने में मशगूल थे। सबसे बड़ी और सबसे मज़बूत धारा उन लोगों की थी जो इस मुल्क को सबके लिए एक समान बनाने का ख्वाब लेकर लड़ रहे थे।

जब “70 सालों में कुछ नहीं हुआ” का जुमला ज़ोर से कहा जाता है तो असल में इस मज़बूत धारा की विरासत को नकारने की कोशिश होती है। हम आज जिस पायदान पर खड़े होकर ये सब कह पाने की हालत में हैं, वह भी इसी धारा की वजह से है। उसने बेआवाज़ों को बेखौफ आवाज़ देने की बुनियाद डाली थी।

एक सच यह भी

हम गैरबराबरियों के बीच रह रहे हैं। हम गैरबराबरियों के साथ आगे बढ़ रहे हैं मगर पिछले सत्तर साल में इन गैरबराबरियों से लड़ने की लगातार कोशिश होती रही है। आज भी हो रही है। ऐसा कतई नहीं है कि हमारे देश में अब कुछ समस्या रही ही नहीं मगर इन समस्याओं से लड़ने और भारत को गढ़ने के लिए एक किताब की रचना की गई।

यह किताब संविधान कहलाई। यह भी 2014 के बाद नहीं रची गई। ये सब नेहरू और गांधी ने अकेले नहीं किया, बल्कि उन्होंने सरदार वल्लभ भाई पटेल, डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, सरोजनी नायडू, राजकुमारी अमृत कौर और ढेरों लोगों के साथ मिलकर इस नए भारत की मूरत गढ़ने की कोशिश की।

बाद में इसमें ढेरों और लोग शामिल होते गए और अपने हिस्से का काम करते गए। आज़ादी के हमारे इसी अगुवा दस्ते ने मतभेदों के बावजूद इसे मज़हबी राष्ट्र नहीं बनाया। यह धर्मनिरपेक्ष देश बना। देश के सामने जाति, लिंग, धर्म, क्षेत्र, भाषा, पैसे की हैसियत का कोई मूल्य नहीं था। उसके लिए सब समान हैं। उसने बंधुता को मूल्य बनाया। क्या ये मूल्य 2014 के बाद हिफाज़त से हैं?

वापस ऊपर के व्हाट्सएप मैसेज पर लौटते हैं

कॉपी देखने के बाद स्टूडेंट के पिता तमतमाते हुए घर वापस आए और उन्होंने बेटे को दो थप्पड़ मार के उससे पूछा कि उसने ऐसा क्यों लिखा। बच्चे ने रोते हुए कहा, “पापा मैंने किताब तो पढ़ी थी लेकिन मैंने आपको कई बार अंकल लोगों से बात करते और न्यूज़ पर बोलते सुना था। आप बोल रहे थे कि 70 साल से हमारे देश में कुछ भी नहीं हुआ। जो हो रहा है अब हो रहा है। आप ही तो सारी उपलब्धियां नरेंद्र मोदी जी के नाम बताते हैं। मुझे लगा कि किताब की बातें सही नहीं हैं।”

कहीं आप भी अपनी किसी परीक्षा में ऐसा लिख कर तो नहीं आ रहे हैं? कहीं आप भी ऐसा ही तो नहीं मानने लगे हैं? अगर हां, तो आप एक खतरनाक हालत की ओर बढ़ रहे हैं। झूठ आप पर हावी हो रहा है। कहने को यह सिर्फ एक चुटकुला है मगर यही चुटकुले कुछ द‍िनों बाद हमारे ज़हन में तथ्य बन कर बस जाएंगे।

राजनीतिक रैली
फोटो साभार: Getty Images

इतिहास बदले नहीं जा सकते, बस समझे जा सकते हैं। समझने के लिए दिमाग की खिड़कियां खोलनी होती है। तर्क, बुद्धि और वैज्ञानिक तरीके का इस्तेमाल करना पड़ता है। आप अपने ज्ञान और जानकारी की कुंजी ऐसे हाथ में दे रहे हैं, जिसकी नींव झूठ, नफरत और हिंसा पर टिकी है।

आप अपने दिमाग के मालिक खुद बनिए। व्हाटसएप के ज्ञान से आप दुनिया में कहीं गर्व से खड़े नहीं हो पाएंगे। देशभक्त बनिए लेकिन अंध राष्ट्रभक्त मत बनिए। पढ़िए, तलाश कीजिए, सवाल कीजिए लेकिन गाली गलौज मत कीजिए, नफरत मत पालिए।

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