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“मैं भी मोदी समर्थक हूं लेकिन मुझे देश में मुद्दों की राजनीति चाहिए”

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बड़े जनादेश के बाद सरकार फिर से सत्ता में आई है। अगर जीत को केंद्रीकृत किया जाए तो अमित शाह की स्ट्रैटजी और नरेंद्र मोदी जी का लोगों के बीच भावनात्मक जुड़ाव ही काम आया है। क्या आपको याद है कि आपने इन दोनों के अलावा भाजपा के किसी बड़े नेता को इस चुनाव में सुना हो? क्या आपको राजनाथ सिंह जी की बातें याद हैं? या निर्मला सीतारमण का कोई भाषण याद हो? या फिर प्रकाश जावडेकर का कोई भाषण याद? नहीं क्योंकि इस देश में वर्तमान परिस्थिति का अगर आंकलन किया जाए, तो इन दोनों बड़े नेताओं का लोगों से इस तरह का भावनात्मक जुड़ाव है कि लोग ज़मीनी हकीकत के मुद्दे भूल चुके हैं।

अब परिस्थिति इनके लिए भी विकट है। 2014 के चुनाव में तो यकीनन इन्हें ब्यूरोक्रेसी में यह देखना था कि अब कौन किस पद पर अच्छा कार्य कर पायेगा? डोभाल साहब NSA के लिए सही रहेंगे या नहीं लेकिन अब परिस्थिति ऐसी नहीं है। अब इन्हें इस देश को मथना है और गढ़ना है।

मीडिया की ज़िम्मेदारी

फोटो सोर्स- Getty

क्या मीडिया अब फिर से अपना कार्य करने में सही साबित होगा? मीडिया को एक बात समझनी होगी कि अगर कही विकास हो रहा है तो आप उसे दिखाये, ज़रूर दिखाए लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि आप उस विकास की एक बात को दिखाकर बाकि मुद्दों से भटक जाए। अरे भाई मीडिया वालों, उनका काम है विकास करना, लोकतंत्र में संवैधानिक पदों पर उन्हें इसलिए हम आम जनों ने भेजा है, जिससे वो विकास कर सकें, इस देश को आगे बढ़ा सकें।

आप आइना है, इस बात को समझने की कोशिश कीजिए कि अगर कोई अध्यापक विद्यालय में बच्चों को ज्ञान देता है और आप बस यही दिखाए कि देखो अध्यापक सब कितना सही पढ़ाते हैं तो वह गलत होगा। अगर इसके उलट आप यह दिखाये कि बच्चों को और समझदार और ज्ञानवर्धक बनाने के लिए अध्यापक महोदय आप यह परिवर्तन कर सकते हैं तो बेहतर होगा, बेहतर होगा देशहित में। इसलिए मीडिया से निवेदन है कि आप सरकार को आइना दिखाये और प्रश्न करें-

  1. देश में बेरोज़गारी क्यों है?
  2. देश में भुखमरी क्यों है?
  3. किसान आत्महत्या क्यों कर रहा है? इसके साथ और भी कई मुद्दे हैं।

आपने किसान को हर साल सम्मान निधि देने की बात की है। अरे भाई आप पैसा दीजिये। अगर विकासशील देश को विकसित करना है तो आप फल को पानी ना दे, जड़ों को पानी दे।

यकीनन मैं भी भाजपा समर्थक हूं लेकिन मुद्दों से नहीं भटक सकता हूं। अब बात करें तो 2014 का चुनाव तो मुद्दों का चुनाव था। भाजपा ने भी रोज़गार, विकास की बात की थी लेकिन अब 2019 में तो मुद्दे ही गायब थे। यह सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश के लिए सही नहीं है कि जहां सबसे ज़्यादा युवा हो और वो मुद्दों पर ही चर्चा ना करे।

खैर, हम तो बोलते रहेंगे इसी तरह बेबाक हर वक्त लेकिन अगर मीडिया एकजुट होकर मुद्दों पर बात करे तो इस देश के लिए बेहतर होगा।

The post “मैं भी मोदी समर्थक हूं लेकिन मुझे देश में मुद्दों की राजनीति चाहिए” appeared first and originally on Youth Ki Awaaz and is a copyright of the same. Please do not republish.


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