भारत पिछले 15 सालों से प्रधाममंत्री की तलाश में है। पांच साल पहले जब 10 सालों से मनमोहन सिंह जी की सरकार थी तब देश उस चेहरे को ढूंढ रहा था जो देश के विकास हेतु हो रहे जटिल क्रियाकलापों को आसान भाषा में देश को समझा सके। लोगों के ज़हन में कहीं ना कहीं यह बबात थी कि एक ऐसा नेता आए जो देश की वर्तमान समस्याओं व भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए देश को विश्वास दिलाकर एकजुट कर सके।
बतौर अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह ने जिस समझदारी से देश को 1991 के आर्थिक संकट से निकाला, बेशक उसी समझ से उन्होंने बतौर प्रधानमंत्री अपने कार्यकाल को भी चलाया लेकिन उनकी समझदारी ज़्यादातर उनके कार्यालय तक ही सीमित रही। एक कुशल वक्ता की भांति कभी देश की जनता से संवाद नहीं कर सके। विपक्षियों की आलोचनाओं का सीधा जवाब ना दे सके व विरोधियों द्वारा गढ़ी गई ‘कमज़ोर नेतृत्व’ वाली छवि को हरा ना सके।

मनमोहन सिंह द्वारा दिए गए पाकिस्तान के खिलाफ कई हज़ार पन्नों के सबूत की बदौलत, पाकिस्तान को FTAF की ग्रे लिस्ट में लाने की अहम कोशिश की गई मगर उस कृत्य का भी मनमोहन जी को उपहास ही झेलना पड़ा। इसी छवि के चलते मोदी जी ने 2014 में देश की जनता को अच्छे दिन के सपने दिखाए व अपना बहुमत साबित कर दिया।
मोदी की नीतियों में उनके व्यक्तित्व वाला जलवा नहीं है
आरएसएस के प्रचारक के रूप में मोदी जी को 35 साल का जो अनुभव अर्जित है, जिसका जलवा देश 2014 से ही देख रहा है मगर प्रचारक के तौर पर जो जलवा उनके चुनाव प्रचार में दिखता है, उस जलवे का अभाव उनके द्वारा बनाई नीतियों में हमेशा ही रहा।
बेशक उन नीतियों के प्रचार में कोई कमी नहीं रही मगर व्यवहारिक तौर पर उनका लाभ आम जनता को ना मिला। देश में अब यह मान लिया गया है कि पीएम बनने के लिए या तो आपको एक अच्छा वक्त बनना पड़ेगा या एक कुशल अर्थशास्त्री।
यह दोनों ही गुण यदि आपमें नहीं हैं फिर आप पीएम नहीं बन सकते। क्यों लोगों को ऐसा लगता है कि एक अच्छा वक्ता या एक कुशल अर्थशास्त्री ही बेहतर पीएम सकता है। यदि यह पीएम बनने का पैमाना है फिर तो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। प्रचार की उन्मादता इतनी रही जैसे सड़ी सब्ज़ी को भी कृतिम रंग व खुशबू डालकर परोस दिया गया।
जनता ने भी 2019 का जनादेश देकर साबित कर दिया कि उन्होंने इस सब्ज़ी को अपनी कच्ची रोटियों के साथ कितने चाव से खाया। जो भी हो कच्ची रोटियों से सड़ी सब्ज़ी खाना स्वास्थ के लिए विनाशकारी ही रहता है।
बीते 15 सालों में देश ने अच्छा अर्थशास्त्री व अच्छा प्रचारक तो देखा मगर अटल जी के बाद हमेशा ही एक अच्छे प्रधानमंत्री की कमी भी महसूस की। आने वाले पांच सालों में भी यही आशा है कि देश स्वस्थ रहे व देश की खोज पूरी हो। सरकार को भी चाहिए कि देश की तबियत को समझे, उचित नेतृत्व दे व देश के संविधान व लोकतंत्र की रक्षा करे।
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