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“साध्वी प्रज्ञा के बारे में पोस्ट करने पर दोस्त ने कहा, मुल्ले तुझे मारेंगे तब पता चलेगा”

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ज़रा याद करिए अदम गोंडवी जी की यह कविता,

हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए

अपनी कुर्सी के लिए जज़्बात को मत छेड़िए।

हम में कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है

दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िए।

अगर गलतियां बाबर की थी, जुम्मन का घर फिर क्यों जले

ऐसे नाज़ुक वक्त में हालात को मत छेड़िए।

हैं कहां हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ खान

मिट गए सब, कौम की औकात को मत छेड़िए।

छेड़िए एक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के खिलाफ

दोस्त, मेरे मज़हबी नग्मात को मत छेड़िए।

समाज में मुसलमानों के प्रति इतनी नफरत कहां से आ गई है? मैं मानता हूं कि पहले भी हम मुसलमानों से नफरत करते थे पर क्या हम इस तरह की नफरत करते थे कि हम किसी को मारने पर आ जाए? 2014 के बाद धर्म और जाति को लेकर एक विशेष मानसिकता बनाई गई है, जैसे दाढी रखना और काजल लगाना कोई गुनाह नहीं है मगर उस काजल और दाढी के साथ मूंछें नहीं रखना गुनाह हो गया है।

मुझे ऐसा लगता है कि इसमें भाजपा सरकार का बहुत बड़ा हाथ रहा है। उससे कहीं ज़्यादा भारत के मीडिया घरों का हाथ रहा है। दिन-रात हिन्दू-मुसलमान की डीबेट चला कर हिंदुओं को मुसलमानों के खिलाफ भड़काया गया है।

साध्वी प्रज्ञा
फोटो साभार: Getty Images

इस बार चुनावों में प्रज्ञा सिंह ठाकुर का जीतना मेरे लिए भयावह था। इसे लेकर मैंने अपने विचार अपने वॉट्सएप स्टेटस पर डाले। मैंने लिखा कि प्रज्ञा सिंह ठाकुर का जीतना इस देश के लोकतंत्र के मुंह पर एक करारा तमाचा है। जिस प्रज्ञा सिंह ठाकुर पर आतंकवाद का मुकदमा चल रहा हो और जो ज़मानत पर जेल से बाहर हो, उसका जीतना मेरे लिए तो भयावह है। इससे बुरा लोकतंत्र के लिए और कुछ नहीं हो सकता है।

जैसे ही मैंने यह स्टेटस डाला कि मेरे पास बहुत से संदेश आए। इन संदेशों में मेरे दोस्त के संदेश भी थे। अब मैं हमारे बीच हुई बातचीत को आपसे साझा कर रहा हूं।

मेरा स्टेटस- प्रज्ञा सिंह ठाकुर, जिस पर आतंकवाद का मुकदमा चल रहा है और जो ज़मानत पर जेल से बाहर है, उसका चुनाव जीतना लोकतंत्र के मुंह पर एक करारा तमाचा है।

दोस्त का रिप्लाई– जब मुल्ले तुझे मारेंगे तब पता चलेगा।

मेरा रिप्लाई- इतनी नफरत क्यों है मुसलमानों से? क्या कर दिया उन्होंने?

दोस्त का रिप्लाई- उसने एक वीडियो भेजा, जिसमें कोई औरत बोल रही थी कि भारत तेरे टुकड़े होंगे। वह वीडियो भेज कर उसने बोला कि यह सब मुसलमानों ने किया है।

अब मेरा सवाल मेरे उन दोस्तों और आप सभी से भी है कि क्या भारत इतना कमज़ोर है कि किसी के बोलने मात्र से उसके टुकड़े हो सकते हैं। अगर ऐसा है तो अभी तक भारत कैसे बचा है?

ऐसे तो पाकिस्तान को भी कब का खत्म हो जाना चाहिए था क्योंकि हम तो पाकिस्तान को हर रोज़ बोलते हैं कि पाकिस्तान तेरे टुकड़े होंगे। इन सब बातों के बाद दिमाग में यह आता है कि इन पांच सालों में ऐसा क्या हुआ जो हम अपने ही देश के मुसलमानों के प्रति इतनी नफरत करने लगे हैं।

प्रज्ञा सिंह ठाकुर की जीत के मायने

प्रज्ञा सिंह ठाकुर अपने आपको सन्यासिन बताती है। वह विश्व हिन्दू परिषद की महिला शाखा दुर्गा वाहिनी से जुड़ी थी। प्रज्ञा सिंह ठाकुर का नाम 2008 के मालेगांव बम विस्फोट की एक आरोपी के रुप में सामने आया था। 2008 के मालेगांव आतंकवादी हमले में पुलिस को प्रज्ञा सिंह ठाकुर की मोटरसाइकिल मिली थी। इस मोटरसाइकिल में ही बम रखे गए थे। इसी कारण प्रज्ञा सिंह ठाकुर को आतंकवाद के आरोपों में गिरफ्तार किया गया था।

26/11 के शहीद अफसर हेमंत करकरे ने अपनी रिपोर्ट में प्रज्ञा सिंह ठाकुर को आरोपी पाया था लेकिन एनआईए द्वारा मकोका धारा हटाने के बाद प्रज्ञा सिंह ठाकुर को ज़मानत मिल गई। अभी उन पर यूएपीए के तहत केस चल रहा है।

उन्होंने 26/11 के शहीद अफसर हेमंत करकरे को लेकर कहा था कि उन्होंने हेमंत करकरे को श्राप दिया था कि उनका सर्वनाश होगा। एक शहीद के लिए ऐसी बातें बोलना क्या सही है? प्रज्ञा सिंह ठाकुर अपने धार्मिक भड़काऊ भाषणों की वजह से जानी जाती है। बीजेपी का ऐसे लोगों को चुनाव में टिकट देना जो मुसलमानों के प्रति इतनी कट्टरता रखते हैं, यह साफ दिखाता है कि मोदी सरकार मुसलमानों के खिलाफ नफरत बढ़ाना चाहती है।

नफरत फैलाने में मीडिया की प्रमुख भूमिका

भारत में धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाने में मीडिया का हाथ मुख्य रुप से रहा है। चौबीस घंटे न्यूज़ चैनलों पर हिन्दू-मुस्लिम की बहस चलती रहती है। वहां बैठ कर एंकर और प्रोग्राम में आए उनके जैसे ही लोग बिना मतलब की बातों से लोगों को गुमराह करने में लगे रहते हैं।

भारतीय मीडिया
फोटो साभार: Twitter

ये लोग इस देश की बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, शिक्षा, औरतों की स्थिति, भारत की आर्थिक स्थिति जैसे असली मुद्दों को छोड़ कर बस नफरत फैलाने का काम कर रहे हैं। भारत की मीडिया नेताओं की भाषा बोलती नज़र आती है। इन बहसों का हमारे दिमाग पर ऐसा असर हुआ कि हम चलते-फिरते मानव बम में बदल गए।

भारत में सितम्बर 2015 से हुई मॉब लिंचिंग की घटनाएं

सितंबर 2015 में मौहम्मद अख्लाक को मारा गया। फिर पहलू खान को, उसके बाद उम्मर खान को, फिर रकबार खान को जुलाई 2018 में अलवर में मारा गया।

असम में तीन, गुजरात में एक, हरियाणा में पांच, हिमाचल प्रदेश में एक, जम्मू-कश्मीर में एक, झारखंड में पांच, मध्य प्रदेश में तीन, राजस्थान में चार, उत्तर प्रदेश में दस से भी ज़्यादा और पश्चिम बंगाल में 6 लोगों को भीड़ द्वारा मार दिया गया। इतनी नफरत लोगों के अंदर कहां से आ गई? ये सब मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद ही क्यों हो रहा है?

मुसलमानों की प्रतीकात्मक तस्वीर
फोटो साभार: Getty Images

भारत के मुसलमान और पाकिस्तान के मुसलमान कैसे बराबर हो सकते हैं? हम कैसे अपने देश के मुसलमानों की तुलना किसी दूसरे देश के मुसलमानों से कर सकते हैं? हमें यह बात अच्छे से समझनी होगी कि भारत के मुसलमान इसी देश के नागरिक हैं। उनको इस देश के संविधान में पूरा विश्वास है।

अगर भारत के प्रति उनकी आस्था नहीं होती तो वो लोग यहां भारत में नहीं रहते। उनको इस देश से प्यार था, इसलिए उनके पूर्वजों ने 1947 के बाद पाकिस्तान को छोड़कर भारत को चुना। वे अपनी आस्था का इससे बड़ा और क्या सबूत देंगे? मुझे नहीं लगता कि भारत के किसी भी मुसलमान को अपनी देशभक्ति साबित करने की ज़रूरत है।

क्या भारत देश कमज़ोर है?

क्या भारत इतना कमज़ोर है कि किसी सिरफिरे के बोलने से ही खत्म हो जाएगा? मुझे तो ऐसा नहीं लगता है। जो देश इतने आक्रमणों के बाद भी एक विशालकाय चट्टान की तरह खड़ा हो, उसका भला कौन क्या बिगाड़ सकता है। इस देश पर सबसे पहले आर्यों ने आक्रमण किया। फिर शक, हुण, कुशाण, पुर्तगाली, तुर्की, मुगल और फिर अंग्रेज़ों ने आक्रमण किया।

अगर भारत को कोई खत्म कर सकता है तो वह है भारत के लोगों की खराब मानसिकता। जिस तरह आज लोग एक दूसरे को धर्म और जाति के नाम पर मार रहे हैं, उससे तो यह देश खुद ही खत्म हो जाएगा। भारत के लोग शायद यह भूल गए हैं कि वे एक धर्मनिरपेक्ष देश में रहते हैं। किसी भी देश को उस देश के नागरिक मज़बूत बनाते हैं। उनके बीच का प्यार और भाईचारा उस देश को मज़बूत बनाता है।

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