देश की आन, बान और शान के लिये ख़ून का क़तरा-क़तरा कुर्बान, लेकिन जब दुश्मन की ताक़त को कम करके आंका जाये तो वो किसी भी सैन्य ऑपरेशन की पहली विफलता होती है। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में हुई सर्जिकल स्ट्राइक, उसका दायरा, उसकी बारीकियों को समझने की नज़र से कुछ सवाल हैं जिनका जवाब या तो सरकार दे सकती है या फिर सेना। ये लेख ऐसे ही कुछ तकनीकी प्रश्नों को उठाने की कोशिश है, इस बात को मानते हुए कि सेना के जवानों ने नियंत्रण रेखा के पास सर्जिकल स्ट्राइक करके दुश्मन को बड़ा नुक़सान पहुंचाया है। सर्जिकल अटैक के दावों पर निरंतर ख़बरें आ रही हैं इसलिये तथ्यों में बदलाव मुमकिन है। इस लेख का मकसद ऑपरेशनल बारीकियों को उजागर करने की बजाय पाकिस्तान की कमियों पर ध्यान दिलाना है।
29 सितंबर को सेना के डी.जी.एम.ओ. लेफ्टिनेंट जनरल रणबीर सिंह की प्रेस वार्ता के बाद से ही उन सवालों के जवाब की तलाश शुरू हो गयी थी, जिसे हम अंग्रेज़ी में किसी भी समस्या का ‘इफ़ एंड बट’ कहते हैं। डी.जी.एम.ओ. ने पत्रकारों के काउंटर सवाल तो नहीं लिये लेकिन कुछ देर बाद ही ऑपरेशन की पूरी स्क्रिप्ट ‘सूत्रों के मुताबिक़’ टैग के साथ टीवी चैनलों पर मौजूद थी। डी.जी.एम.ओ. लेफ्टिनेंट जनरल सिंह ने बहुत ही साफ़ शब्दों में कहा था कि भारत ने नियंत्रण रेखा पर सर्जिकल स्ट्राइक की है। उनके बयान ‘नियंत्रण रेखा पर’ में इस पूरे स्पेशल ऑपरेशन की पहेली छुपी हुई है। लेकिन साउथ ब्लॉक के चक्कर काटने वाले वाले पत्रकारों ने सूत्रों के हवाले से इसे ‘डीप पेनीट्रेशन स्ट्राइक’ बताया, यानी दुश्मन के इलाक़े में अंदर घुसकर सेना ने इस ऑपरेशन को अंजाम दिया। कुछ रिपोर्ट में नियंत्रण रेखा के 4 किलोमीटर अंदर, तो कुछ में 8 किलोमीटर तक अंदर तक सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम देने की बात कही गयी।
इसमें कोई दो राय नहीं कि भारतीय सेना में दुश्मन की सीमा के अंदर जाकर ऐसे ऑपरेशन करने की ताक़त है। स्पेशल फोर्स के दस्ते इसी मक़सद और ट्रेनिंग के साथ तैयार किये जाते हैं। लेकिन यहां ज़िक्र 28 सितंबर की रात को हुए सर्जिकल अटैक का है जिसमें भारतीय सेना की पैरा एस.एफ़. (थल सेना की स्पेशल फोर्स) की छोटी-छोटी टुकड़ियों ने नियंत्रण रेखा के पार दुश्मन या आतंकियों के 7 अड्डों पर हमला किया। रिपोर्ट के मुताबिक़ क़रीब 38 आतंकियों को मार गिराया गया। ये ऑपरेशन रात बारह बजे के बाद चार घंटे चला और सूरज निकलने से पहले सभी कमांडो सुरक्षित अपने बेस पर वापस पहुंच चुके थे। इनमें दो कमांडो घायल हुए हैं जिसमें एक कमांडो को बारूदी सुरंग फटने से ज़ख़्मी हुआ है।
ये भारत सरकार की तरफ़ से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक की पहली आधिकारिक पुष्टि थी। हालांकि जो लोग सेना को क़रीब से समझते हैं, नियंत्रण रेखा के हालात जानते हैं और खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) की कार्यशैली से परिचित हैं, उनके लिये ये सर्जिकल स्ट्राइक नयी बात नहीं है। दोनों देश ऐसे हमले करते रहे हैं। लेकिन जिस तरह से कुछ मीडिया हल्कों में दावे किये गये हैं कि ये सर्जिकल स्ट्राइक नियंत्रण रेखा के 8 किलोमीटर अंदर जाकर की गयी, उससे कई बुनियादी सवाल उठते हैं।
नियंत्रण रेखा क्या है, उस पर किस तरह की मोर्चेबंदी है, दुश्मन की तैयारी किस स्तर की होगी, इसका अंदाज़ा ही सिर्फ़ तभी हो सकता है जब सूत्र ने वहां का दौरा किया हो। ये सूत्र कौन हैं, सेना से हैं, राजनीतिक सूत्र हैं, या फिर पत्रकार की अपनी समझ है, इस पर इस लेख में आगे विस्तार से बताने की कोशिश है, क्योंकि सूत्र सच भी हो सकते हैं, ग़लत भी हो सकते हैं, उसके पीछे कोई एजेंडा भी हो सकता है। ये एजेंडा देशहित में हो तो बुरा नहीं लेकिन सच के पैमाने पर उसका खरा उतरना भी ज़रूरी है।
जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा क़रीब 750 किलोमीटर लंबी है और दोनों तरफ़ की सेनाओं ने अपने-अपने इलाक़े को सुरक्षित रखने के लिये बड़े पैमाने पर बारूदी सुरंग बिछाई हुई हैं। इन बारूदी सुरंगों से अकसर मवेशियों की जान भी जाती है जो भटकते हुए नियंत्रण रेखा तक पहुंच जाते हैं।
दोनों तरफ़ बड़ी तादाद में सेना तैनात है, कई जगह एक किलोमीटर तो कई इलाक़ों में कुछ सौ मीटर के दायरे में भी पोस्ट बनी हुई हैं जिसमें सैनिक एक दूसरे की हरकत पर बराबर नज़र रखते हैं। ये पोस्ट और बंकर भारी मशीन गन से लेकर एंटी टैंक हथियारों तक से लैस हैं। दोनों तरफ़ ही पोस्ट से एक दूसरे पर 24 घंटे निगरानी रखी जाती है। दुश्मन की तरफ़ से हमेशा गोलीबारी और स्नाइपर अटैक का अंदेशा रहता है लिहाज़ा अगर दुश्मन की ज़द में पोस्ट है तो सैनिकों का वहां भी चलना फिरना काफ़ी सीमित रहता है। ये नियंत्रण रेखा पर पहली रक्षात्मक पंक्ति है जो दोनों तरफ़ मज़बूत है।
28 सितंबर की रात पैरा एस.एफ़. की सर्जिकल स्ट्राइक के पीछे पहले कई कहानी बनायी गयीं। जैसे कमांडो हेलीकॉप्टर से नियंत्रण रेखा के पार उतरे और पोस्ट में बैठे पाकिस्तानी सैनिकों को ख़बर नहीं लगी, इस तरह की बचकाना बातों को सुनकर कोई भी सैनिक हंसेगा। बॉर्डर समेत नियंत्रण रेखा पर मोबाइल ऑब्ज़र्वेशन पोस्ट होती है जिसमें सैनिक आसमान में होने वाली गतिविधियों पर नज़र रखते हैं। ये दुश्मन के विमान को पहचानते हैं और आसमानी घुसपैठ पर फ़ौरन कंट्रोल रूम को ख़बर करते हैं। नियंत्रण रेखा पर हेलीकॉप्टरों को निशाना बनाने के लिये दोनों तरफ़ के सैनिक MANPADS से लैस हैं जो क़रीब पांच हज़ार मीटर तक की ऊंचाई पर उड़ रहे विमानों को निशाना बना सकते हैं। ऐसे में हेलीकॉप्टर वाली थियोरी ख़ारिज हो जाती है।
दूसरा बड़ा दावा कि स्पेशल फोर्स के सैनिक नियंत्रण रेखा के पास 8 किलोमीटर के दायरे में ऑपरेशन को चार घंटे अंजाम देते रहे लेकिन पाकिस्तानी सेना को ख़बर तक नहीं लगी और हमारे फ़ौजी आराम से वापस लौट आये। ये दावा इसलिये बचकाना लगता है क्योंकि आज सभी पोस्ट आधुनिक सिस्टम के ज़रिये आपस में बेहतर तरीक़े से जुड़ी हुई हैं और एक भी पोस्ट का अलर्ट होने का मतलब है पूरी नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तानी फ़ौज हरकत में आ चुकी होती। लेकिन हैरानी है कि 7 ठिकानों पर 8 किलोमीटर अंदर तक हमारे जवान चार घंटे तक आतंकियों को मारते रहे और पाकिस्तानी फ़ौज को ख़बर तक नहीं हुई।
ये कैंप जंगल में नहीं बल्कि आबादी के बीच बने हैं। भारतीय हिस्से से उलट नियंत्रण रेखा पार पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में ज़्यादा आबादी है। कई घर ठीक पाकिस्तानी पोस्ट से 100 मीटर की दूरी पर बने हैं। भारतीय फ़ौजी अपनी पोस्ट से पी.ओ.के. में बच्चों को खेलते हुए, महिलाओं को कपड़े धोते हुए तक आराम से देख सकते हैं। कुछ इलाक़ों में नियंत्रण रेखा पार सड़के बनी हुई हैं जहां ट्रैफ़िक भी रहता है। क्या ऐसे माहौल में जब पाकिस्तान की फ़ौज अलर्ट है, किसी आबादी वाले इलाक़े में सर्जिकल स्ट्राइक ख़ामोशी से अंजाम दी जा सकती है। ऐसे में इस हमले के दौरान अगर पाकिस्तानी फ़ौज सोती रह गयी, तो उसे भारत के सामने ऐंठने तक का कोई अधिकार नहीं है।
हाल की कुछ मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि नियंत्रण रेखा पार लोगों ने माना है कि काफ़ी बमबारी हुई है और ट्रकों में लाशें भरकर वहां से ले जाई गई। ये मुमकिन है और इसमें कोई विरोधाभास नहीं है, अगर हमला नियंत्रण रेखा के 8 किलोमीटर अंदर ना होकर, नियंत्रण रेखा के कुछ सौ मीटर के दायरे में हुआ हो। अगर हमला इसी तरह हुआ होगा, तो उसमें मरने वालों में अधिकतर पाकिस्तान के सैनिक रहे होंगे। नियंत्रण रेखा पर कई ऐसी पोस्ट हैं जहां भारत हावी है और कई ऐसी पोस्ट हैं जो पाकिस्तानी फ़ौज से घिरी हुई हैं।
नियंत्रण रेखा पर लीपा, भिंबर गली के पास बनी पोस्ट उन मोर्चों में शामिल हैं जहां भारतीय सेना की पकड़ मज़बूत है। अगर भारतीय फ़ौज यहां से पाकिस्तानी सेना की पोस्ट और बंकरों पर नियंत्रित बमबारी करे, तो दुश्मन के पास सिर छुपाने के लिये जगह नहीं होगी। इसलिये कई ‘इफ एंड बट’ में ये नज़रिया भी शामिल है, जिसमें सटीक आर्टिलेरी फायर और स्पेशल फोर्स की मदद से भारत ने पाकिस्तानी ठिकानों पर हमला किया होगा। किसी भी सैन्य ऑपरेशन के लिहाज़ से दुश्मन के इलाक़े में 8 किलोमीटर अंदर घुसना और किसी तरह के विरोध के बिना उसे अंजाम देना, ये अहसास दिल में उतर सकता है, लेकिन दिमाग़ तो सवाल करता है। भारतीय फ़ौज की क़ाबलियत और उसकी ताक़त पर कोई शक नहीं, लेकिन झूठा प्रचार और उसके सहारे अपने राजनीतिक हित साधने की बात होगी तो ऐसे प्रश्न बार-बार उठाए जाएंगे।
The post ‘सर्जिकल स्ट्राइक’: सवाल जो उठने ज़रूरी हैं appeared first and originally on Youth Ki Awaaz, an award-winning online platform that serves as the hub of thoughtful opinions and reportage on the world's most pressing issues, as witnessed by the current generation. Follow us on Facebook and Twitter to find out more.