देशभर में “राम के नाम पर”, “गाय के नाम पर”, “बच्चा चोरी” और अन्य किसी बात पर नागरिक समाज राष्ट्र-राज्य के लोकतांत्रिक अवधारणा को धता बताकर खुद ही फैसला सुनाने लगा है। ये भीड़ के रूप में अनियंत्रित होकर स्वयं अपने हाथों फैसला करने सड़कों पर ही नहीं, बल्कि किसी भी सार्वजनिक जगह पर इकट्ठा होकर अपना फैसला सुनाने लगा है। कानून-व्यवस्था कुछ भी करने में असमर्थ है। सभ्य...
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