“पहनावा” वह चीज़, जिससे हर एक इंसान जुड़ा हुआ है। अपनी-अपनी सभ्यता-संस्कृति के हिसाब से भी और आधुनिक हो रही सभ्यता में अपने विचारों के हिसाब से भी। यहां तक किसी को कोई समस्या नहीं है। “पहनावा” को जैसे ही महिलाओं की आधी दुनिया में सेट करते हैं, समाज में लोगों के नथुने फुलने शुरू हो जाते हैं, मुठ्ठियां तन जाती हैं, यहां तक कि फतबे भी जारी हो जाते हैं साहब। माफ करें यह किसी एक जाति, वर्ग और धर्म के...
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