भारत में आज कल वादों का मौसम है। वादा मतलब वचन वाला नहीं, वाद-विवाद वाला। वाद और भारत का पुराना रिश्ता रहा है। मोदी सरकार में तो लहर ही चल पड़ी है। राष्ट्रवाद, सम्प्रदायवाद,जनवाद,अफजल वाद,याकूब वाद, कन्हैया वाद, और अभी-अभी बिलकुल लेटेस्ट वाला गुरमेहर वाद।
वाम-दक्षिण और अवसरवाद के बीच किरन रिजीजू का नया वीडियो ट्वीट सामने आ गया है, जिसमें उन्होंने एक जवान का स्पीच शेयर किया है। आम तौर पर सेना के नौजवान पब्लिक स्पीच देते कम नज़र आते हैं लेकिन इस वीडियो में जनता ख़ूब तालियां पीटती नजर आ रही है।
Pain runs deeper than the Ocean. Very sad that our jawans are forced to speak with heavy heart. pic.twitter.com/1AbLScDnor
— Kiren Rijiju (@KirenRijiju) March 1, 2017
जवान को अफजल और याकूब की तरफदारी करने वाले लोगों से आपत्ति है। उसका कहना है कि हम बार्डर पर मरते हैं हमारे लिए इन लोगों के दिल नहीं पसीजते, लेकिन जो दहशत फैलाते हैं उनके लिए शोक सभाएं की जाती हैं। किरन का कहना है जवान इस तरह बोलने के लिए मजबूर हो रहे हैं। गृह राज्यमंत्री किरन रिजीजू के ट्वीट के अनुसार “ये दर्द समंदर से गहरा है, हमारे सैनिक इस तरह अपनी बात कहने के लिए मजबूर हो रहे हैं। ये बहुत दुःख की बात है।”
मराठा इनफेंट्री के जवान श्री राम गोरदे के वीडियो को ही किरन साहब ने शेयर किया है। इस वीडियो में श्रीराम गोरदे दहाड़े हैं कि, “सैनिक आतंकवाद से लड़ते हैं, माओवाद से लड़ते हैं, नक्सलवाद से लड़ते हैं, लेकिन देश के लिए खतरा आतंकवादियों और माओवादियों से नहीं बल्कि उन लोगों से है जो देश के विरोध में नारे लगाते हैं। जवान को गहरी पीड़ा है कि देश में अफजल गुरु के समर्थन के नारे लगते हैं और याकूब मेमन के जनाजे में जनसैलाब उमड़ता है, लेकिन जब कोई सैनिक शहीद होता है तो कोई बात नहीं करता है। देश में कुछ देशद्रोही लोग भारत मुर्दाबाद के नारे लगाते हैं और तिरंगे को जलाते हैं।” किसी भी सैनिक के लिए तिरंगे और देश का अपमान असहनीय होता है। इस सैनिक के स्पीच में साफ तौर पर ये बात झलकती है।जामनगर में पोस्टेड श्री राम आजकल मराठा इनफेंट्री में तैनात हैं। कुछ दिनों पहले उनकी तैनाती उड़ी में थी। श्रीराम इस वीडियो में आगे कहते हैं कि देश की रक्षा के लिए जवान हर दिन शहीद होते हैं और कोई आवाज़ नहीं उठती है। जब सेना पाकिस्तान में जाकर सर्जिकल स्ट्राइक करती है तो उसका सबूत मांगा जाता है। सबूत मांगने की परंपरा तो बुद्धिजीवियों के द्वारा शुरू की गई है। आपसे किसी भी बात का सबूत मांगा जा सकता है। गोरदे का ये वीडियो पिछले साल दिसंबर का है, लेकिन चर्चा में अब आया है। हमारे देश में अपने पक्ष में सबूत देने की परंपरा अब खुदाई में बदल गई है। लोग कुछ भी, कभी भी खोद के ला सकते हैं। बेहतर है सोच समझ कर बोला करें।
वैसे गुरमेहर को लेकर किरन रिजीजू के रोज नए-नए बयान आ रहे हैं। टीवी पर रोज-रोज दिखना शायद उन्हें अच्छा लगने लगा है। गुरमेहर के बचाव में अब उसके दादा जी सामने आ गए हैं। गुरमेहर के दादा कंवलजीत सिंह कहते हैं कि “वो तो बच्ची है उसे क्या मालूम। कौन उसका दिमाग खराब कर रहा है? किरन रीजिजू को ऐसा नहीं कहना चाहिए। वह तो बहुत छोटी थी जब उसने अपने पिता खो दिया था। वह सबकी बेटी है।”किरन साहब को ये बात समझ जानी चाहिए थी। ख़ैर जो है सो तो है ही। लोकतंत्र में अक्सर कई मुद्दे उपजते रहते हैं जिन पर लेफ्ट-राइट की पॅालिटिक्स चलती है। गुरमेहर भी इसी मुद्दे का शिकार हुई है। कुछ दिनों बाद जब वो थोड़ी बड़ी होगी तो शायद समझ जाएगी कि किसी का इस्तेमाल ये नेता अपने फ़ायदे के लिए कर लेते हैं पर जो इस्तेमाल होता है उसे इसकी भनक तक नहीं लगती।
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