Quantcast
Channel: Politics – Youth Ki Awaaz
Viewing all articles
Browse latest Browse all 8261

बेरोज़गारों को दलाल बताने से पहले ये आंकड़ें भी देख लीजिए डियर पीएम सर

$
0
0

वर्ष 2014, गांव-कस्बों के चौक चौराहों से लेकर मेट्रो सिटी के ओवरब्रिज के बड़े-बड़े विज्ञापन बोर्ड ”अबकी बार मोदी सरकार” के नारों से पटे पड़े थे। अच्छे दिन, रोज़गार सृजन के नये अवसर जैसे लोक-लुभावन नारों ने युवाओं को यह विश्वास दिला दिया था कि अब देश बदलने वाला है।

लेकिन ‘अच्छे दिन’ और ‘सबका साथ, सबका विकास’ के नारों के तीन साल बाद भी उन युवाओं के बारे में कोई बात नहीं हो रही है जिनके बल पर चुनावी जीत मिली थी और जिनकी उम्मीदें बहुत बढ़ गई थीं। स्किल इंडिया और मेक इन इंडिया का भी कोई असर नहीं हो रहा है। तीन साल बीतने के बाद शिक्षित-प्रशिक्षित युवाओं में यह सवाल गहरा होता जा रहा है कि आखिर उनके रोज़गार का क्या होगा। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि नौकरियां मिल नहीं रही हैं और छंटनी बढ़ती जा रही है। सरकार की ओर से स्वरोज़गार की बातें की जा रही हैं, लेकिन उसकी भी संभावनाएं सीमित होती जा रही हैं। ऐसा सरकारी आंकड़े ही कह रहे हैं।

अभी रोज़गार की स्थिति के बारे में सरकार की ओर से संसद में दिए गए जवाब से ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि हालात लगातार खराब ही होते जा रहे हैं। केंद्रीय कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह ने संसद में एक लिखित जवाब में बताया था कि 2013 की तुलना में 2015 में केंद्र सरकार की सीधी भर्तियों में 89 फीसदी की कमी आई है। अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों की भर्ती में 90 फीसदी की कमी आई है। 2013 में केंद्र सरकार में 1,54,841 सीधी भर्तियां हुई थीं। 2014 में यह कम होकर 1,26,261 हो गई और 2015 में सिर्फ 15,877 लोग ही केंद्र सरकार में सीधी भर्ती ले पाएं।

74 मंत्रालयों और विभागों ने सरकार को बताया कि अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों की 2013 में 92,928 भर्तियां हुई थीं। 2014 में 72,077 भर्तियां हुई थीं। 2015 में यह घटकर 8,436 रह गईं।

इसके अलावा, रोज़गार के बारे में अन्य स्रोतों से मिले आंकड़े और आशंकाएं भी बहुत गंभीर हैं। चैंपियन्स आफ चेंज नामक कार्यक्रम में देश के 150 युवा उद्यमियों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी का कहना था कि

दलाली रोज़गार का क्षेत्र बन गया था। ये बिचौलिये नौकरी का वादा करके धन ऐंठते का काम करते थे। अब बिचौलियों को बाहर कर दिया गया है। इस सरकार में दलाल बेरोज़गार बन गए हैं। जो दलाल बेरोज़गार हो गए हैं, वही आज सबसे ज्यादा हल्ला कर रहे हैं कि रोज़गार नहीं है।

तो क्या देश ने मान भी लिया कि बेरोज़गारी अब नहीं रही?

अमेरिका की एक रिसर्च फर्म एचएसएफ रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट में भारत में आईटी और बीपीओ सेक्टर में 2022 तक 7 लाख लोगों की नौकरी जाने की बात कही है। आटोमेटिक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के कारण घरेलू आईटी और बीपीओ सेक्टर में लो स्किल्ड वर्कर्स की संख्या 2016 में 24 लाख से घटकर 2022 में 17 लाख रह जाएगी। भारत में यह ट्रेंड वैश्विक परिदृश्य को दर्शाता है क्योंकि विश्व स्तर पर लो स्किल्ड आईटी व बीपीओ नौकरियों में 31 फीसदी की गिरावट आने की आशंका है।

पिछले अगस्त माह में बाज़ार पर नज़र रखने वाली कंपनी नीलसन के एक सर्वे के अनुसार, वर्ष 2017 की दूसरी तिमाही में उपभोक्ताओं का आत्मविश्वास नरम पड़ा है। इसकी दो प्रमुख वजहें हैं। एक लोगों को रोज़गार की सुरक्षा की चिंता है। दूसरा, लोगों को लगता है कि नौकरियों के नए मौके कम हुए हैं। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर 12 महीनों में रोज़गार बढ़ने को लेकर उम्मीदों का स्तर आठ फीसदी गिरकर 76 फीसदी पर आ गया है और जॉब सेक्यॉरिटी की चिंता बढ़कर 20 फीसदी पर पहुंच गई। पिछले सर्वे में इसका स्तर 17 फीसदी था।

अगस्त में ही रिज़र्व बैंक आफ इंडिया (RBI) का भी एक कंज्यूमर कॉन्फिडेंस सर्वे आया था। इस सर्वे में कहा गया है कि लोग अपनी आय वृद्धि, रोज़गार और आर्थिक स्थिति से खुश नहीं हैं। बीते तीन सालों में उनकी खुशी में तेज़ी से कमी आई है। जून 2017 में किया गया यह सर्वे बताता है कि लोगों की आमदनी दिसंबर 2013 और मार्च 2014 के मुकाबले काफी कम है।

सेंटर फार मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनामी (सीएमआईई) ने भी देश में रोज़गार के बारे में एक सर्वे के आधार पर बताया है कि सात महीनों में 30 लाख लोग बेरोज़गार हुए हैं। सीएमआईई के मुताबिक, जनवरी 2017 में देश में कुल 40.84 करोड़ लोगों के पास रोज़गार था जो जुलाई 2017 में घटकर 40.54 करोड़ हो गएं। यानी सात महीने के अंतराल में रोज़गार में करीब 30 लाख की गिरावट दर्ज की गई।

संयुक्त राष्ट्र श्रम संगठन की रिपोर्ट भी बेरोज़गारी बढ़ने के बारे में ही कहती है। इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2017 और 2018 के बीच भारत में बेरोज़गारी में इज़ाफा हो सकता है। संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने 2017 में वैश्विक रोज़गार एवं सामाजिक दृष्टिकोण पर जारी रिपोर्ट में कहा है कि रोज़गार ज़रूरतों के कारण आर्थिक विकास पिछड़ता प्रतीत हो रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, आशंका है कि पिछले साल के 1.77 करोड़ बेरोज़गारों की तुलना में 2017 में भारत में बेरोजगारों की संख्या 1.78 करोड़ और उसके अगले साल 1.8 करोड़ हो सकती है।

लम्बे समय से भाजपा शासित राज्यों में स्थिति और भी बद्तर है। छत्तीसगढ़ में विधानसभा में एक सवाल के उत्तर में सरकार द्वारा दिए गए आंकड़े के मुताबिक़ बेरोज़गारों की संख्या करीब 20 लाख है।

युवाओं की पार्टी कहलाने का दंभ भरने वाली भाजपा और उसकी सरकार आखिर युवाओं के मुद्दों पर ही विफल क्यों हो रही है? आखिर ऐसी कौन सी नीतियां हैं जो कि भाजपा सरकार को हमेशा से इस समस्या में बैकफुट पर ले आती है?

अगर आप यह लेख पढ़ रहे हैं, गुस्से में हैं। पूर्ण या अर्द्ध बेरोज़गारी से परेशान हैं, सरकार की आलोचना कर रहे हैं, तो थोड़ा संभल जाएं। प्रधानमंत्री के मुताबिक़ रोज़गार के लिए हल्ला वही मचा रहे हैं जो कि दलाल हैं।

बेरोज़गारी बढ़ने और रोज़गार पर संकट की आशंकाओं के बीच यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के दौरान नरेंद्र मोदी ने रोज़गार सृजन के दावे किए थे। चुनाव प्रचार के दौरान मोदी कहा करते थे कि प्रधानमंत्री बनने पर सरकार हर साल एक करोड़ रोज़गार पैदा करेगी। आंकड़े बता रहे हैं कि रोज़गार घटा और बेरोज़गारी बढ़ी है। कोई हल्ला न मचाए, इसलिए कह दिया दलाल रोज़गार के लिए हल्ला मचा रहे हैं।

The post बेरोज़गारों को दलाल बताने से पहले ये आंकड़ें भी देख लीजिए डियर पीएम सर appeared first and originally on Youth Ki Awaaz and is a copyright of the same. Please do not republish.


Viewing all articles
Browse latest Browse all 8261

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>