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सत्ता के लालच में डूबी नेताओं की भीड़ में हमें खुद अपनी आवाज़ उठानी होगी

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काफी दुखी होकर लिख रहा हूं। आज हमारे देश का संविधान एवं आवाम दोनों खतरे में हैं। जो नेता निष्ठा और ईमानदारी से देश के गौरवशाली संविधान एवं देश की आत्मा यानी देश की आवाम की हर पल रक्षा करने का वादा करते हैं, आज वो ही देश को और उनके असहाय आवाम को निष्ठा एवं ईमानदारी से लूट रहे हैं और बर्बाद कर रहे हैं।

राजनीति का मतलब अपने ईमान को ज़िंदा रखकर गरीब किसान, मज़दूर, शोषित वर्ग और संविधान और आवाम के लिए लड़ना होता है ना कि चुनाव जीतकर अपने बैंक खाते को मज़बूत करना और ना ही सत्ता के नशे में गरीब आवाम के खून को चूसना होता है। लेकिन आज की राजनीति सिर्फ इसपर ही आधारित है।

हमने कहीं पढ़ा था कि चुनाव राजनीति का एक छोटा सा हिस्सा होता है, लेकिन आजकल के कुछ राजनेता चुनाव को ही पूरी की पूरी राजनीति समझ लेते हैं। आज हमारे देश की लगभग 60 प्रतिशत आबादी युवाओं की है। जिसमें ज़्यादातर युवा आज बेरोज़गार बैठे हैं। रोज़गार के नाम पर सरकार के द्वारा सिर्फ लतीफे सुनाए जा रहे हैं। लड़कियों, औरतों  का बालात्कार हो रहा है जिनमें नेता भी शामिल होते हैं। अमन और शांति के नाम पर अशांति फैलाई जा रही है। विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा पर सीटें काटी जा रही हैं जबकि सरकार को सीटें बढ़ानी चाहिए थी। रोज़गार बढ़ाने के बदले उलटा रोज़गार छीना जा रहा है।

किसान आत्महत्या कर रहे हैं। क्योंकि उनको कृषि से नुकसान के अलावा और कुछ हासिल नहीं हो रहा है। जब किसान अपना अनाज बेचने जाते हैं तो उनके अनाजों को सही दामों पर खरीदा नहीं जा रहा है। किसान पर बैंक लोन या महाजन का बकाया होता है। चारों ओर से आवाम परेशान है। खुश हैं तो सिर्फ और सिर्फ पूंजीपति वर्ग।

हमारे देश के लिए संविधान को लिखने वालों ने एकता, समानता और भाईचारा के लिए काफी मशक्कत की। लेकिन आज के कुछ नेताओं को एकता, समानता और भाईचारे से अच्छी मनुवादी और सामंती सोच लगती है। वो हमें कभी हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर तो कभी शुद्र-ब्राह्मण के नाम पर तोड़ डालना चाहते हैं। जो हम ऐसा कभी भी होने नहीं देंगे। इस बात के लिए हम सब को शपथ लेनी पड़ेगी। राजनेताओं को सिर्फ सत्ता से मतलब है, इसलिए ज़रूरी है कि हमें हमारे देश के संविधान, एकता, समानता और भाईचारे से मतलब हो।

चाहे युवाओं के लिए शिक्षा या रोज़गार की बात हो, किसानों के लिए अनाजों का सही दाम मिलने की बात हो, मज़दूरों के लिए जीविकोपार्जन की बात हो हमें इकठ्ठा होकर आवाज़ उठानी चाहिए।

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नोट- इस लेख के राइटर दिल्ली विश्वविद्यालय साउथ कैंपस के छात्रसंघ के अध्यक्ष हैं।

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