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त्रासदियों में उलझे, उत्साही और प्रगतिवादी राजीव गांधी

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“कुछ दिन के लिए, लोगों को लगा कि भारत हिल गया है। लेकिन उनको यह पता होना चाहिए कि जब एक महान पेड़ गिरता है तो हमेशा झटके लगते हैं” इस वाक्य से सैकड़ों बेगुनाह नागरिकों की हत्या को कमोबेश जायज़ ठहराते हुए, 40 साल के युवा राजीव गांधी ने भारतीय राजनीति में उस समय प्रवेश किया जब देश के कई राज्य हिंसा में जल रहे थे।

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी, वरिष्ठ कांग्रेसी प्रणव मुखर्जी को हाशिए पर ढकेलते हुए, सोनिया गांधी के विरोध के बाद भी, भारतीय राजनीति के केंद्र में आ गये। राजीव गांधी से देश को उम्मीद का अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि 1984 के लोकसभा चुनाव में 413 सींटों के साथ उन्होंने जो सफलता पाई उससे जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी तक महरूम थे।

हालांकि इसके पहले भी राजीव गांधी कई अवसरों पर पर्दे के पीछे कई महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी निभा रहे थे, 1982 में एशियन गेम्स की ज़िम्मेदारी उस समय संभाली जब पंजाब में अलगाववाद की समस्या से एशियाई खेलों की सुरक्षा पर सवाल खड़े हो रहे थे। राजीव गांधी की कोशिशों से यह अयोजन सफल रहा। इसके साथ उन्होंने काँग्रेस के महासचिव के रूप में उन्होंने पार्टी संगठन को व्यवस्थित एवं सक्रीय भी किया।

राजीव गांधी को त्रासदी के बीच युवा नायक की उपाधी दी जा सकती है, क्योंकि जहां कई मोर्चों पर उनकी असफलता निराशा और क्षोभ पैदा करती है वहीं उनकी उपलब्धियां भी भारतीय राजनीति में बदलाव के साथ आज के युवाओं को असंख्य क्षितिज देती है।

मसलन, राजीव गांधी ने पहले आर्थिक उदारवादी राजनीतिक के रूप में कई सेक्टर्स को सरकारी नियंत्रण से मुक्त किया, जिसने लाइसेंस राज की नींव को खत्म कर दिया। इस वजह से कंप्यूटर, ड्रग और टेक्सटाइल जैसे क्षेत्र बंद अर्थव्यवस्था से खुली हवा में निमार्ण और व्यपार करने के लिए मुक्त हो सके। कंप्यूटर के लिए मदरबोर्ड के भारत में निर्माण ने कई कंपनियों के लिए सिलकन वैली का दरवाज़ा खोल दिया।राजीव गांधी विज्ञान, तकनीक और समावेशी शिक्षा की मुक्तकारी भूमिका के बारे में एक स्पष्ट राय रखते थे। उनका मानना था कि ” विज्ञान और तकनीक देश की कई पुरानी समस्याओं का निराकरण कर सकते हैं” इसलिए उन्होंने टेलीकॉम और इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में विशेष ध्यान दिया।

“पावर टू द पीपल” आईडिया से राजीव गांधी ने पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा दिलाने की कोशिश की, जिसने सत्ता के विकेंद्रीकरण का रास्ता बनाया। मतदान की उम्र सीमा 21 से घटाकर 18 साल करके राजीव गांधी ने अपने दौर में युवाओं को तो साधा ही, दल-बदल कानून बनवा कर भारतीय राजनीति को अवसरवादी राजनीति से मुक्त करने की कोशिश की, जिसके छींटे खुद काँग्रेस पार्टी पर भी थे।

राजीव गांधी ने भारत को शिक्षा के नये युग में प्रवेश कराने की भरसक कोशिशें ज़रूर की अपनी इस राय से कि “शिक्षा ने हमारे समाज को बराबरी का स्थान दिया है, यह एक ऐसा उपकरण है जो पिछले हजारों वर्षों के सामाजिक व्यवस्था को एक बराबर के स्तर पर ला सकता है।” 1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति का एलान और नवोदय विधालय की परियोजना से राजीव गांधी ने भारतीय समाज में ग्रामीण छात्रों को बेहतरीन शिक्षा सुविधाएं दिलाने की कोशिश की और कुछ परिणामदायी लक्ष्य हासिल भी किए।

राजीव गांधी के पूरे राजनीतिक सफर में सिखों पर राजनीतिक हिंसा रोकने में विफलता, भोपाल गैस त्रासदी, शाहबानो केस, आयोध्या मसले, श्रीलंका में लिट्टे के खिलाफ भारतीय सेना भेजना और बोफोर्स कांड वह अध्याय है जिसका जिन्न आज भी भारतीय राजनीति को सालता है। वक्त-बे-वक्त वो ज़िंदा हो जाता है और एक साथ कई ज़ख्मों पर नमक छिड़क जाता है।

सिख-विरोधी दंगे में शामिल लोगों को महत्वपूर्ण पद देना और जांच प्रक्रिया में सुस्ती के बाद भी लोगोंवाला समझौता में राजीव गांधी की भूमिका में उनकी सकारात्मक भूमिका का आकंलन कभी नहीं किया गया। यह कई हद तक सही है कि भोपाल गैस त्रासदी, शाहबानों केस, अयोध्या मसले, श्रीलंका में शांति सेना और बफोर्स विवाद ने 1989 में उनको पराजित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पारिवारिक पृष्ठभूमि और राजनीतिक परिस्थितियों के बीच पायलट से प्रधानमंत्री तक राजीव गांधी का सफर एक युवा संभावना के उदय और उस दौर के राजनीति की त्रासदी की गाथा है जिसमें वो भी फंसते चले गए या तमाम कोशिशों के बाद भी उससे मुक्त नहीं रह सके।

परंतु, यह भी सच है कि देश में आर्थिक उदारीकरण और सूचना तकनीक के व्यापक उपयोग का पहला अध्याय उनके नेतृत्व में लिखा गया। तमाम राजनीतिक आलोचना और खामियों के बावजूद उनको एक उत्साही और प्रगतिवादी प्रधानमंत्री के रूप में हमेशा याद किया जाता रहेगा, जिन्होंने आर्थिक नीतियों तथा सूचना क्रांति के कार्यों से वर्तमान भारत विकास और उपलब्धियों की कहानियां गढ़ीं।

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