“कैराना से हिन्दुओं का पलायन” इसी झूठ के साथ स्वर्गीय हुकुम सिंह ने प्रदेश को साम्प्रदायिक राजनीति की आग में झोंककर विधानसभा चुनाव का प्रचार शुरू किया था। इस झूठे मुद्दे को ब्राह्मणवादी मीडिया ने खूब हवा दी थी। प्राइम टाइम में बैठे तमाम ब्राह्मणवादी प्रगतिशील पत्रकार भी इस मुद्दे को बढ़ा चढ़ाकर दिखाते रहें।
इ्स साम्प्रदायिक राजनीति ने अखिलेश यादव के विकास की राजनीति को कोसों दूर छोड़ उन्हें सत्ता से बेदखल कर दिया था। आज अखिलेश यादव प्रदेश में विपक्ष की कुर्सी सम्भाले जनता के हरेक मुद्दों को उठा रहे हैं, जिसमें वे बेरोज़गारी, किसान, सामाजिक न्याय के मुद्दों को लेकर सत्ताधारी पार्टी पर अपनी आक्रामकता को बनाए हुए हैं।
भाजपा ने समाज को अपनी साम्प्रदायिक और जातिवादी राजनीति से तोड़ रखा था जिसके परिणामस्वरूप भाजपा को सत्ता हासिल हुई थी। जैसा कि अखिलेश यादव लगातार भाजपा पर जातिवादी और साम्प्रदायिक होने का आरोप लगाते रहते हैं।
गोरखपुर, फूलपुर, नुरपूर और कैराना में दलितों, पिछड़ों, मुसलमानों की एकता ने भाजपा की तोड़ने वाली राजनीति को एक सिरे से दरकिनार कर दिया।
अखिलेश यादव लगातार प्रदेश भर के छोटे-छोटे राजनीतिक दलों को एक साथ लाने का प्रयास कर रहे हैं जिसका प्रभाव गोरखपुर से लेकर कैराना तक के उपचुनाव के परिणामों में साफ दिखता है। इन सभी चुनावों में अगर किसी ने सबसे ज़्यादा समझदारी दिखाई तो वो है मुस्लिम समुदाय। आज कैराना चुनाव के परिणाम ने ये भी साबित कर दिया कि अब जाट और मुस्लिम फिर से एक साथ रहने को तैयार हो गए हैं।
कैराना में दलित वोट भी इस जीत में निर्णायक साबित हुआ, हाल के दिनों में मायावती ने भी भाजपा की जातिवादी व साम्प्रदायिक राजनीति के खिलाफ खुलकर मोर्चा सम्भाले हुआ है। जयंत चौधरी की मेहनत ने जाटों और मुस्लिमों को एक साथ लाने का काम किया। इसलिये कैराना उपचुनाव की जीत की बधाई के पहले हकदार जयंत चौधरी हैं।
आज इस जीत पर अखिलेश यादव ने कहा की ये जीत सामाजिक न्याय की जीत है, ये जीत सामाजिक सद्भाव की जीत है। अब भाजपा अपनी साम्प्रदायिक और जातिवादी राजनीति को सिर्फ आरएसएस की शाखा में ही लागू कर सकता है बाकी देश की जनता ने तो नकार दिया है।
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