कहते हैं किसी हथियार से लगी हुई चोट का ज़ख्म दवा से ठीक कर सकते हैं लेकिन किसी के ज़ुबान से निकले ज़ख्म को भरा नहीं जा सकता। इसलिए हर किसी को यही समझाया जाता है कि कोई भी ऐसी बात ना बोलें जिससे किसी को ठेस पहुंचे लेकिन राजनीतिक दलों के लिए उनके ज़ुबान से निकलने वाला ज़हर अमृत क्यों हो जाता है।
देखकर तो ऐसा ही अनुभव होता है कि सभी पार्टियां अपने कुछ नेताओं को ऐसे ज़हर उगलने के लिए रखती हैं और फिर वो ज़हर पार्टी के लिए अमृत बन जाता है। उसी अमृत से वह राजनीतिक दल फायदे और नुकसान का खेल खेलती है। गुजरात वाली घटना की बात करें तब अल्पेश ठाकोर का नाम सामने आता है जहां वे लोगों के मन एक खास प्रांत के लोगों के खिलाफ ज़हर उगलते नज़र आए। यहां तक कि उनसे कुछ साथी, लोगों को यह बताते हुए नज़र आए कि आप लोग अभी खा लो, आपके साथ अभी कुछ नहीं कर रहे हैं हम लेकिन सुबह होने से पहले राज्य छोड़कर चले जाईए, नहीं तो अच्छा नहीं होगा।
आखिर कौन लोग हैं ये और भारतीय राजनीति में इनकी औकात क्या है? केवल एक जाति की बात करके सत्ता में आए ये लोग भूल गए हैं कि दूसरे राज्यों से रोज़गार की तलाश में आए लोगों के साथ कैसे पेश आना है। ऐसे लोगों को आज़ादी मिली हुई है कि वे भारत की एकता पर दाग लगाने के लिए किस तरह से अपने संस्कारों का प्रदर्शन करें।
ये बातें केवल एक व्यक्ति या पार्टी तक सीमित नहीं है, बल्कि ओवैसी ब्रदर्स, आज़म खान, योगी आदित्यनाथ, साक्षी महाराज, गिरिराज सिंह और दिग्विजय सिंह जैसे कई नाम हैं जिनके बयानों से उनकी पार्टी को कोई फर्क नहीं पड़ता। दूसरों को लगने वाला ज़हर उनके लिए अमृत कैसे बन जाता है इसका जवाब अाज किसी के पास नहीं है।
हकीकत यह भी है कि ऐसा नेता अपनी ज़ुबान से ज़हर उगलकर अपने आलीशान घरों में जाकर चैन की नींद सोते हैं और इनके ज़हर से तकलीफ हमेशा आम आदमी को होती है।
नेताजी, आप ये बात क्यों नहीं समझते हैं कि भूखे पेट हैं वो लोग जो किसी से भीख मांगने नहीं बल्कि काम की तलाश में बाहर आए हैं। अगर उनके लिए आप कुछ कर नहीं सकते तब कम-से-कम ज़ुबान से ज़हर उगलना बंद कर दीजिए। इससे लोगों के बीच नफरत का माहौल बनता है।
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