मीडिया द्वारा जिन मुद्दों को उठाया जाता है, उन पर हमेशा चर्चा का स्तर व्यापक होता है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी कई मुद्दों को उठाया गया है, जिस वजह से कई राष्ट्रीय खबरें विश्वपटल पर सुर्खियों में रही हैं।
टाइम्स मैगज़ीन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी प्रतिष्ठित है। मैगज़ीन में प्रकाशित कवर स्टोरी पर विवाद खड़ा हो गया है क्योंकि इस स्टोरी में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भारत का डिवाइडर इन चीफ कहा गया है। दिलचस्प बात यह है कि स्टोरी के अंदर इस बात का कोई ज़िक्र नहीं है।
स्टोरी के अंदर उन घटनाओं के बारे में जानकारी दी गई है, जो मोदी सरकार के कार्यकाल में घटित हुई। इस बात पर कुछ लोग टाइम्स मैगज़ीन के साथ हैं जबकि विरोध में भी काफी लोग नज़र आ रहे हैं।
लेखक के ऊपर प्रोपेगेंडा फैलाने का आरोप लग रहा है। गौरतलब है कि इसी टाइम्स मैगज़ीन ने 2014 में प्रधानमंत्री मोदी के ऊपर काफी अच्छी स्टोरी छापी थी। उस वक्त मैगज़ीन अच्छा और इस वक्त बुरा कैसे हो सकता है?
मोदी सरकार के कार्यकाल को देखने का मैगज़ीन का अपना नज़रिया है। इसी मैगज़ीन में मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों को अच्छा बताया गया है। कुछ लोगों का कहना है कि एक ही सरकार पर अलग-अलग विचार कैसे लिखे जा सकते हैं? खैर, इस सवाल में कोई दम नहीं है।

किसी भी सरकार का सामाजिक और आर्थिक तौर पर अलग-अलग आंकलन किया जा सकता है। इसके निष्कर्ष भी अलग-अलग हो सकते हैं। इस विवाद की वजह से एक और सवाल खड़ा हुआ है कि क्या अंतरराष्ट्रीय मीडिया द्वारा किसी देश के आंतरिक विषय पर हस्तक्षेप किया जा सकता है? मूल रूप से यह सवाल बचकाना है। क्या इस सवाल को खड़ा करते हुए असली सवाल को दबाने की कोशिश की जा रही है?
मैगज़ीन में स्टोरी प्रधानमंत्री मोदी को लेकर लिखी गई है और जवाब भारतीय मीडिया दे रही है। चुनाव का समय है, ऐसे में इस मुद्दे पर भाजपा को अपनी बात रखनी चाहिए थी। भाजपा की जगह मीडिया क्यों जवाब दे रही है, यह सवाल भी चिंता का विषय है।
टाइम्स मैगज़ीन ने ऐसा क्यों कहा?
इस बात को समझने के लिए 2014 के बाद जो सांप्रदायिक घटनाएं घटित हुईं, उन्हें देखना चाहिए। गिरिराज सिंह और साक्षी महाराज जैसे नेता हमेशा सांप्रदायिक बयान देते रहे और मोदी जी इस बात पर खामोश रहे। मॉब लिंचिंग की घटनाएं बड़े पैमाने पर होने लगी।
प्रधानमंत्री जी ने कहा कि गौ रक्षा के नाम पर हिंसा गलत है लेकिन सच तो यह है कि इसके बाद भी मॉब लिंचिंग की घटनाएं हुई। इस विषय पर किसी को सज़ा सुनाई गई हो, ऐसी खबर नज़र नहीं आती।
कानपुर का चमड़ा उद्योग डेढ़ महीने से कुंभ के कारण बंद पड़ा है। सरकार ने इस पर अस्थाई रोक लगाई है। ऐसे आरोप लग रहे हैं कि ज़्यादातर चमड़ा व्यापारी अल्पसंख्यक होने के कारण सरकार ऐसा कर रही है। इस आरोप में दम इसलिए भी लगता है क्योंकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद बजरंगबली-अली का नारा लगाते हैं।

राहुल गाँधी के वायनाड से चुनाव लड़ने पर प्रधानमंत्री मोदी खुद अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक का नारा देकर हिंदू-मुस्लिम तुष्टीकरण को बढ़ावा देते हैं। 2019 में मोदी सिख दंगों की बात करते हैं और यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि सिख मतदाता किसी अन्य राजनीतिक पार्टी का समर्थन ना करें।
मेनका गाँधी यह बयान देती हैं कि अगर मुस्लिम उन्हें वोट नहीं देंगे तो वह उनके लिए काम नहीं करेंगी। मालेगाँव ब्लास्ट में आरोपी प्रज्ञा ठाकुर को बीजेपी द्वारा लोकसभा का टिकट दिया जाता है और प्रधानमंत्री खुद इसका समर्थन करते हैं।
प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत 180 देशों की सूची में 140वें पायदान पर खिसक गया है। ऐसी स्थिति में टाइम्स मैगज़ीन के कवर स्टोरी पर व्यापक रूप से बहस हो सकती है लेकिन लेखक की मंशा पर सवाल उठाना ठीक नहीं है।
इसी मैगज़ीन ने 2012 में उस वक्त के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की फोटो छापते हुए उन्हें “अंडर अचीवर” कहा था। अब यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप किस घटना को कैसे देखते हैं। मोदी भक्त होने के नाते यह ज़रूरी नहीं है कि उनकी आलोचना पर आप रिएक्टिव ही हो जाएं।
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