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सरहद पर डटे सेना के जवानों की सैलरी पर टैक्स क्यों?

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आज हमारे देश में सबसे अधिक शोषण हमारे बहादुर जवानों का हो रहा है। यह कहना सरासर गलत है कि जवान सिर्फ रोज़ी-रोटी कमाने के लिए फौज़ में भर्ती होता है। अगर ऐसा होता तो यह सोचने वाली बात है कि पैसे तो एक चायवाला भी उनसे ज़्यादा कमा लेता है। फौज़ में वही इंसान जाता है जिसमें जुनून, बहादुरी और कुछ कर गुज़रने का जज़्बा होता है।

हम किताबों में पढ़ते हैं कि बड़े-बड़े तपस्वी हिमालय की बर्फ और रेगिस्तान की तपती धूप में तपस्या किया करते थे। वे तपस्वी कोई और नहीं बल्कि हमारे फौजी जवान हैं, जिन्हें माइनस 40 डिग्री की हड्डियों को जमा देने वाली ठंड और 50 डिग्री की आग बरसाती गर्मी भी अपने कर्त्तव्य से नहीं डिगा सकती। उनके लिए फर्ज़ की राह में आने वाली हर तकलीफ एक मामूली बात है।  

आसान नहीं है सरहद पर रहना

असली ब्रह्मचारी तो मैं अपने जवानों को मानता हूं, जो महीनों घर, परिवार से दूर एक सन्यासी जीवन जीते हैं। उनका अपनी ज़िन्दगी पर भी बस नहीं होता, पता नहीं कब शहादत का जाम पीना पड़ जाए। हमारे जवानों से बड़ी कुर्बानी देता है उनका परिवार, पत्नी, बच्चे, भाई-बहन, बूढ़े माता-पिता।

जब तक जवान सरहद पर रहता है, पूरा परिवार एक अनजानी आशंका से घिरा रहता है। फोन की हर घंटी पर पूरा परिवार सहम जाता है। बच्चों की पढ़ाई कैसी चल रही है, माता-पिता की तबियत कैसी है, उर्मिला सा जीवन व्यतीत कर रही पत्नी का क्या हाल है, हर रात यही बातें उनके दिलो दिमाग में घूमती रहती है लेकिन सुबह होते-होते उनका परिवार होता है उनकी रेजिमेंट और उनके दिमाग में सिर्फ देश की सुरक्षा का ख्याल घूमता है।

प्रैक्टिस के दौरान सेना
फोटा साभार: Getty Images

हमारे जवान यह सारा त्याग सिर्फ इसलिए करते हैं ताकि हम चैन की नींद सो सके, व्यापारी भाई अपना धंधा कर सके, नेता बेफिक्र होकर नेतागिरी कर सके और हमारा देश शांति की लय और ताल के साथ आगे बढ़ता रहे। यह सवाल हर किसी के ज़हन में आता है कि ड्यूटी जवान भी करता है और ऑफिस में काम करने वाला एक कर्मचारी भी। सैलरी भी दोनों को बराबर मिलती है, सिवाय कुछ मामूली बेनिफिट के।

कर्मचारी शाम होते ही अपने परिवार के साथ होता है और जवान सरहद पर। कर्मचारी सिर्फ कलम चलाता है और जवान के हाथ में  हमेशा बंदूक रहती है। आम आदमी के पास विकल्प होता है कि वह नौकरी के अलावा कुछ और कमाई के स्रोत तलाश कर सकता है लेकिन जवानों को यह नसीब नहीं है।   

समाज के लिए दोनों ज़रूरी है लेकिन हम दोनों को एक ही तराज़ू में नहीं तौल सकते हैं। हम आंदोलनों में, रैलियों में, सोशल मीडिया पर बहादुरी दिखा सकते हैं मगर हमारे अंदर जान देने का जज़्बा नहीं है फिर क्यों हमारी सरकारें उनको एक ही इनकम टैक्स स्लैब के तराज़ू पर तौलती हैं? उनसे इनकम टैक्स क्यों वसूली जाती है?

जवानों की सैलरी इनकम टैक्स फ्री हो

मेरी प्रधानमंत्री से गुज़ारिश है कि हमारे बहादुर जवानों की सैलरी पूर्ण रूप से इनकम टैक्स से मुक्त की जाए। उनकी बहादुरी, उनकी शहादत का कर्ज़ चुकाने के लिए तो दुनिया की सारी दौलत कम है लेकिन यह काम तो हम कर ही सकते हैं।

अगर राजनीतिक पार्टियां बड़े-बड़े उद्योगपतियों का अरबों रुपए का कर्ज़ माफ कर सकती है तो जवानों के लिए इतना काम क्यों नहीं कर सकती? इसके लिए सिर्फ इच्छा शक्ति की ज़रूरत है। मैं जनता से अपील करना चाहता हूं कि जो भी पार्टी चुनाव के पहले यह घोषणा करे, उसी पार्टी को वोट दीजिए।

जय जवान, जय किसान का नारा तभी सार्थक होगा जब हम अपने जवान भाइयों के लिए यह एक छोटा सा काम कर पाएंगे। इसके लिए अगर सरकार चाहे तो डिफेन्स सेस लगा सकती है। जनता खुशी-खुशी यह टैक्स भरेगी। हम सोशल मीडिया का हिस्सा होने के नाते अगर यह मांग पुरज़ोर तरीके से उठाएंगे तो सरकार को सुनना ही पड़ेगा। यह कदम हमारे जवानों के लिए एक छोटी सी हौसला आफजाई होगी।

The post सरहद पर डटे सेना के जवानों की सैलरी पर टैक्स क्यों? appeared first and originally on Youth Ki Awaaz and is a copyright of the same. Please do not republish.


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