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फिलिस्तीन पर हो रहे ज़ुल्म के खिलाफ क्यों खामोश है पूरा विश्व?

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दुनिया के 195 देशों में से एक देश ऐसा भी है जो रोज़ अपने अस्तित्व के लिए लड़ता है। जो रोज़ साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ लड़ता है। जो रोज़ बहुसंख्यकवाद, सांप्रदायिकता और राष्ट्रवाद (एक सांप्रदायिक भावना) के खिलाफ लड़ता है। जो पूंजीवाद के खिलाफ लड़ता है, जो शाम को लड़ते हुए सोता है और जिसे लगता है कि यही उसकी आखिरी शाम है। लेकिन अगली सुबह फिर वो खड़ा होता है डटकर लड़ता है।

उसका एक-एक बच्चा लड़ता है। मानों वो अल्लाह के भेजे हुए उन अबाबील की तरह है जिन्होंने मस्जिद अल हराम (काबा) की हिफाज़त की थी। ये बच्चे रोज़ लड़ते हैं अपने यरुशलम के लिए, अपने फिलिस्तीन के लिए, अपनी मस्जिद अल अक्सा के लिए। दुनिया के 195 देशों में से वो देश जो शोषण के खिलाफ और लोकतंत्र के ठेकेदार बनते हैं, वो भी खामोश हैं, क्यों? क्योंकि फिलिस्तीनी मुसलमान हैं।

मुस्लिम राष्ट्र होने का दावा करने वाले भी खामोश हैं

दुनिया के 52 मुस्लिम देशों के शासक जो अमेरिका और इज़राइल के डर से बिल में छिपे बैठे हैं और मुसलमानों के हक के लिए भी नहीं बोल सकते, इन्हे अपने देश को मुस्लिम राष्ट्र कहने का कोई हक नहीं। उनको चाहिए कि वो आज के बाद से वो कलमा-ए-तैयबा को अपनी ज़ुबान पर न लाएं। क्योंकि उनके भीतर का मुसलमान मर चुका है। ये लोग दुनिया की सारी कौमों पर होते ज़ुल्म पर चुप रहते हैं। यहां तक कि अपनी कौम पर होते हुए ज़ुल्म पर भी खामोश हैं।

मुझे याद आती है कर्बला के उन 72 शहीदों की जिन्होंने इस्लाम का परचम सरबुलंद किया था। जिन्होंने यज़ीद के खिलाफ अपनी जान कुर्बान कर दी थी। लेकिन आज मिडिल ईस्ट की दो बड़ी ताकतें जिसमें से एक सऊदी अपने को सुन्नियों का नेता बताता है और दूसरा ईरान जो अपने को शियाओं का नेता बताता है। दोनों आम मुसलमानों के खुले दुश्मन है। एक ने अमेरिका से हाथ मिला रखा है तो दूसरे ने रूस और चाइना से।

मुस्लिम समुदाय
फोटो साभार: Getty Images

सऊदी तो खलीफा उस्मान को मानता है जिन्होंने मस्जिद-ए-अक्सा में नमाज़ पढ़ी थी। ईरान भी हुसैन को मानता है जिन्होंने यज़ीद के ज़ुल्म के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। आज दोनों देश खामोश हैं। सऊदी की तो इज़राइल से खुली दोस्ती है। आज कर्बला के 72 शहीदों के आगे 52 इस्लामी मुल्क कम पड़ गए हैं।

मुझे यहूदियों से कोई नफरत नहीं है। मै मानता हूं कि हिटलर ने उनपर ज़ुल्म किया था, मैं उस ज़ुल्म के खिलाफ भी हूं। लेकिन यहूदी जिस प्रजातीय हिंसा का शिकार हुए थे उसी का शिकार वो फिलिस्तीनियों को बना रहे हैं। उन्हें अपने इतिहास से सीखना चाहिए। हिटलर खत्म हो गया। लेकिन पहले का जर्मनी अब आज का इज़राइल है।

साम्राज्यवाद की भूमिका

मुझे दुनिया के उन शासकों से भी नफरत होती है जो कि इज़राइल के तलवे चाटने में कोई कसर नहीं छोड़ते। फिलिस्तीनियों पर इज़राइल जो ज़ुल्म कर रहा है उनको वो नहीं दिखता या वो देखना नहीं चाहते या फिर वो सिर्फ इसके ज़रिए अपने देश में अपनी मुस्लिम विरोधी छवि बनाना चाहते हैं।

ऐसा हमारे देश में भी हो रहा है। हमारे देश के दक्षिणपंथी लोग इज़राइल को इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि वो मुसलमानों को मार रहा है। लेकिन वो क्यों मार रहा है ये नहीं समझ रहे। ये जानने के लिए हमे अपनी ही इतिहास की किताबों के पन्नों को पलटना चाहिए तो हमें जवाब मिलेगा साम्राज्यवाद। जिसको हमने 200 साल भुगता है अंग्रेज़ों का शोषण सहकर।

आज दुनिया में शांति स्थापित करने के लिए बनाया गया संयुक्त राष्ट्र संघ भी खामोश है। वो अमेरिका के हाथ की तो कठपुतली है ही और गुटनिरपेक्ष देश जो अपने को किसी भी गुट में नहीं मानते वो भी आज खामोश है। क्योंकि उन्हे अपने पूंजीपति दोस्तों को बचाना है।

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