सबसे बड़ा लोकतंत्र, और सबसे युवा देश – भारत। हमारे देश के सत्ताधारी जनाब हरेक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इसी का दंभ भरते दिख जाते हैं। यह दौर अपने आप में ख़ास है। आज सत्ता के गलियारों में खुले तौर पर किसानी, गरीबी, दलित से ज्यादा युवाओ की बातें होती हैं। हर जगह युवाओं को एक विशेष स्वरुप में प्रस्तुत किया जाता है, ऐसा लगता है मानो ये युवा समूचे भारत ही नहीं ब्रह्मांड का तक़दीर पलट देंगे और इस काबिलियत पर हमें शक भी नहीं। किन्तु इन दिनों ये हुक्मरानों द्वारा देशभक्ति, आक्रोश, राष्ट्रीयता, धर्म जैसे शब्दों के ज़रिये रोज़ बरगलाये जाते हैं। धर्म विशेष आक्रामकता अपनी पराकाष्ठा पार कर चुका है। आज के दौर में खुलकर लिखने में भी डर सा लगता है कि पता नहीं कौन सा युवा संगठन आपको नक्सली, पाकिस्तानी या अख़लाक़ घोषित कर दे।
जी अख़लाक़! याद तो होगा ही? कुछ महीने पहले जिसकी जान ने नेता, राजनीतिक पार्टियां, मीडिया के पेट का जुगाड़ किया था। दरअसल अख़लाक़ एक बार फिर से सुर्खियों में है, और यह नाम जब भी सुर्खियों में होता है तो जाने अनजाने में ही ना जाने कितनों की धज्जियां उड़ा देता है। इस बार अख़लाक़, रवि सिसोदिया के असामयिक मौत की वजह से चर्चा मे है। रवि सिसोदिया अख़लाक़ प्रकरण का आरोपी था जिसपर अख़लाक़ की हत्या का संगीन आरोप था। कुछ दिनों पहले ही न्यायिक हिरासत में रवि की किडनी खराब होने से मौत हो गई। जिसके बाद उसे एक तबका शहीद का दर्जा देते हुए उसके शव को तिरंगे में लपेट अंत्योष्टि करता है।अख़लाक़ – जिसके गौ मांस रखने पर आज भी संदेह है, उसे इस देश का गद्दार, देशद्रोही घोषित कर दिया जाता है। तो वहीं आरोपों के साथ दम तोड़ने वाले रवि को एक बड़ा तबका शहीद घोषित करता है और सत्ता के गलियारे के छद्म राष्ट्रवादी अपनी राष्ट्रवाद की परिभाषा को नया आयाम देने उनके घर पहुँच जाते हैं। कथित मुआवज़ों का दौर शुरू हो जाता है। सोशल मीडिया पर छाती कूटम् और दिल छेद अध्याय शुरू हो जाता है।
मतलब मेरे समझ में ये नहीं आ रहा कि आखिर हम किस समाज का निर्माण कर रहे हैं? कैसी युवा पीढ़ी और युवा शक्ति की बात कर रहे हैं? क्या आज के समय में युवाओं का सम्बन्ध बस आक्रामकता भर से रह गया है?
मुझे घिन आती है ऐसी युवा शक्ति पर जो महज़ सत्ता के इर्द गिर्द नाचती है। शर्म आती है ऐसे समाज पर जहाँ जवानों के शव पर राजनीति चमकाई जाती हो। यह जो लोग अति उतावलेपन में आकर रवि के शव को तिरंगे में लपेट रहे हैं वो अपना मानसिक संतुलन खो बैठे हैं। ये लोग तिरंगे का अपमान कर रहे हैं। राष्ट्रवाद और हिन्दुवाद के नाम पर नेताओं के तलवे चाट रहे हैं। यह पूरा प्रकरण हमारे समाज को एक आईना दिखाने का काम कर रही है। अगर हम ज़रा सा भी तार्किक होकर इन सभी घटनाक्रमों पर गौर फरमाएंगे तो निःसंदेह प्रतीत होगा कि किस तरह से हमारा समाज रसातल की ओर तेज़ी से जा रहा है। यह समय भीड़ के पीछे भागने का नहीं अपितु ठहर कर सोचने और तार्किक होने का है। अन्यथा जिस पड़ोसी देश को आप दिन भर फेसबुक और ट्विटर पर गलियाते हैं, उसमे और हममें कोई फर्क नहीं रह जायेगा।
The post क्या देशभक्ति के नाम पर युवाओं का राजनीतिक इस्तेमाल हो रहा है? appeared first and originally on Youth Ki Awaaz, an award-winning online platform that serves as the hub of thoughtful opinions and reportage on the world's most pressing issues, as witnessed by the current generation. Follow us on Facebook and Twitter to find out more.