पूंजीवादी ‘जनतंत्र’ के सिरमौर अमेरिका की जनता को चुनाव करना है कि वह एक शोहदे और वाल स्ट्रीट की विश्वस्त के बीच में किसे अपना रहनुमा चुने! हर देश में यही पूंजीवादी जनतंत्र का असली चेहरा है, कहीं थोड़ा छिपा रहता है कहीं बाहर आ जाता है। जिन लोगों को डोनाल्ड ट्रम्प जैसे शोहदे को अभी तक भी मिलने वाले जन समर्थन पर अचम्भा है, उन्हें डेमोक्रेटिक-रिपब्लिकन पार्टियों की सरमायेदार परस्त राजनीति से वहां की आम जनता के जीवन में आई बेरोजगारी, बरबादी, निराश-हताशा की हालत को जानना चाहिए।
इसी बेरोजगारी, बरबादी, निराश-हताशा पर आम लोगों के तमाम राजनीति विरोधी गुस्से को भुनाकर ट्रम्प जैसा चरित्र इतनी दूर तक पहुँचा और अभी भी अगर वह हारेगा तो अपनी चारित्रिक बदनामी की वजह से नहीं बल्कि अपने पीछे एक संगठित फासीवादी ताकत के अभाव से, जो भारत में मोदी जी के साथ थी और नतीजा हम देख चुके हैं।
यह बात फिर से अपने उस विचार को दोहराने के लिए कि फासीवादी सामाजिक आंदोलन के खड़े होने में एक बड़ा कारक खुद को जनतांत्रिक, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष बताने वाली बुर्जुआ या सामाजिक-जनवादी पार्टियों द्वारा जनता को दिया गया भारी धोखा है। साथ ही विकास के नाम पर उनके जीवन में लाई गई बरबादी और धर्म, जाति, इलाके, भाषा, आदि के नाम पर अवाम पैदा किया गया वैमनस्य भी है। इन मुद्दों पर जनता के पूरी तरह उचित गुस्से का इस्तेमाल ही फासीवादी उभार चालाकी से अपने लिए करता है।
अब जिन कांग्रेस, सपा, तृणमूल, द्रमुक, राजद, जदयू से लेकर तमाम सोशल-डेमोक्रेटिक दलों की वादाखिलाफी और सरमायेदार परस्त नीतियों के खिलाफ व्याप्त गुस्से की वजह से जनता का एक बड़ा हिस्सा फासीवादी उभार के पीछे जा खड़ा हुआ है उनके सहारे ही अगर कोई फासीवाद से लड़ने की उम्मीद रखता है तो वह बस दिवास्वप्न ही है। यह तथाकथित ‘विपक्ष’ ही तो असल में संघ-मोदी की बड़ी ताकत है।
फासीवाद से लड़ाई के लिए तो इनसे अलग हटकर फिर से मेहनतकश मजदूर-किसान व निम्न मध्यवर्ग अवाम की जिंदगी के सवालों पर उसे एक, आवेदन-याचना-रियायत नहीं, बल्कि एक जुझारू आंदोलन के लिए संगठित करना होगा। साथ ही उनके बीच एक निरंतर राजनीतिक-सांस्कृतिक अभियान भी चलाना पड़ेगा जो फासीवादी विचार को बेनकाब कर सके। अगर इस लंबी लड़ाई की तैयारी ना हो तो फासीवाद के खिलाफ लड़ाई की बात एक सदिच्छा से ज्यादा कुछ नहीं।
The post ट्रम्प और मोदी के उदय की राजनीति appeared first and originally on Youth Ki Awaaz, an award-winning online platform that serves as the hub of thoughtful opinions and reportage on the world's most pressing issues, as witnessed by the current generation. Follow us on Facebook and Twitter to find out more.