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क्या सर्जिकल स्ट्राईक एक चुनावी स्ट्रैटजी है?

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दीपक भास्कर:

भारतीय सेना द्वारा किये जाने वाले “सर्जिकल स्ट्राइक” या किसी भी तरह के ऑपरेशन पर पूरे देश को गर्व होता रहा है। लेकिन हाल में हुए सर्जिकल स्ट्राइक को इस तरह से परोसा गया कि, प्रधानमंत्री को अंततः यह कहना पड़ा कि, उनके समर्थक सेना की इस कार्रवाही पर छाती फुलाना बंद करें। अब बीजेपी अध्यक्ष ने भी कहा है कि उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनाव में सर्जिकल स्ट्राइक को मुद्दा बनाएगी। तो क्या अब सेना की कार्यवाहियां,  चुनावी राजनीती का हिस्सा बनेंगी। क्या वर्तमान सरकार के चुनावी घोषणा पत्र में, यह सब कहा गया था? रूलिंग पार्टी को विभिन्न वादों में से, पूरे हो चुके वादे जनता को बताने चाहिए। अगर जनता अपनी उम्मीदों को पूरा होते देखेगी, तो स्वतः जन समर्थन प्राप्त हो जायेगा।

वैसे अब यह कहा जा रहा है कि जनता को चुनाव में बरगला/बहका दिया जाता है तो क्या 2014 में हुए चुनाव में भी जनता को बरगला/बहका दिया गया था। अगर 2014 में ऐसा नही हुआ था तो आने वाले चुनावों में ऐसा क्यूं होगा? अगर जनता आपको समर्थन दे तो वह जनता ज्ञान से भरपूर होती है और फिर किसी चुनाव में उसे नही दें तो अज्ञानी कैसे हो जाती है? वैसे जनता ने अपनी आँखों पर पर्दा इसलिए भी रखा है, क्यूंकि आप निर्वस्त्र  हो चुके हैं।

बहरहाल, मुद्दा सर्जिकल स्ट्राइक पर हो रही राजनीती का है। सेना और सरकार ने प्रेस कांफ्रेंस में इस कार्यवाही की पुष्टि भी की है। कुछ न्यूज़ चैनल ने इसे दिन-रात दिखाया भी है। इसी बीच संयुक्त राष्ट्र संघ ने ऐसे किसी सर्जिकल स्ट्राइक पर मुहर नही लगाई है। अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया ने भी अभी तक इस पर कुछ नही कहा है। हालांकि भारत की सभी पार्टियों ने सेना की इस कार्यवाही को सराहा है, लेकिन फिर भी लोगों के मन में कहीं न कहीं अविश्वास है। कुछ लोगों ने खुले आम सरकार से सबूत भी मांग लिया है। सरकार ने भी चुनौती स्वीकार करते हुए, समय आने पर सबूत पेश करने की बात भी कह दी है और बाद में मना भी कर दिया है। इस खींच-तान में सेना ने भी आनन-फानन में विडियो ज़ारी करने की बात कही है।

यहां सवाल टूटते विश्वास का है। इस सैन्य-कार्रवाही पर हो रही राजनीती में, सेना ने विडियो ज़ारी करने की बात कर, अपनी साख बचाई है। लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया से इस खबर की पुष्टि का इंतज़ार कर रही जनता ने एक बात साफ़ कर दी है कि 24 घंटे चलने वाले राष्ट्रवादी न्यूज़ चैनलों पर जनता ने विश्वास खो दिया है। जिस तरह के एनिमेटेड विडियो बनाकर टी.वी. पर दिखाए गए, उस स्ट्राइक में भाग लेने वाले जवान भी उन पर फब्तियां कसते होंगे। जो बिना मेक-उप किये न्यूज़ रूम में नही घुसते, वो भला सेना के संघर्ष को क्या समझेंगे। इस देश की राष्ट्रवादी मीडिया पर कुछ भी कहना बेकार है।

लेकिन, जिस जनता ने पूरे विश्वास के साथ सरकार चुनी थी, वही जनता आज द्वन्द में क्यूं है? क्यूं इस उधेड़बुन में है कि सरकार सही बोल रही है या फिर यह भी किसी अन्य चुनावी जुमले की तरह है। सरकार के कई मंत्रियों ने बार-बार आकर कहा है कि चुनाव में बहुत सारे जुमले बोले चले जाते हैं। खैर! बेचारी जनता तो, उन चुनावी जुमलों को वादा समझ बैठी थी और उन वादों में भविष्य के ‘अच्छे दिन’ को भी देख रही थी। इसी जुमले-बाजी की वजह से, प्रसिद्ध दार्शनिक प्लेटो ने जनतंत्र को ख़राब शासन-तंत्र कहा था। ठीक है! जनता का विश्वास तो टूटने के लिए ही होता है। इस तरह के अविश्वास को ही मैक्स वेबर ने “लेजीटीमाईजेशन क्राइसिस” कहा है।

अगर एक चुनी हुई सरकार पर ही लोग विश्वास करना बंद कर दें तो बात साफ़ है कि सरकार ने अपनी नैतिक-वैधता खो दी है। इस सर्जिकल स्ट्राइक को सरकार के द्वारा जिस तरह उत्तर प्रदेश में प्रचारित किया गया उससे यह बात साफ हो गयी कि, सरकार के दिमाग में राष्ट्र कही नहीं बल्कि चुनाव में जाने वाले राज्य हैं। उत्तर प्रदेश और पंजाब को सर्जिकल स्ट्राइक पर बधाई के होर्डिंग्स से पाट दिया गया है। अगर बधाई के इतने होर्डिंग्स होने चाहिए तो और राज्यों में क्यूं नही लगाए गए?

भारत में होने वाले अगले कई चुनाव में मुख्य मुद्दा, ‘अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद’ और ‘पाकिस्तान’ होंगे। अब आम जनता क्या बोलेगी! जब वह बढती मंहगाई, बेरोजगारी पर सवाल पूछेगी, तो उसका मुंह बंद करा दिया जायेगा। देशद्रोही कहा जायेगा, वो भी सिर्फ इतना कहकर कि आपको बस अपनी चिंता है, देश की नही। तो क्या इस देश को आम जनता की चिंता है? अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के नाम पर हमारी सरकार के द्वारा किये गए आतंक को कैसे माफ़ किया जायेगा।

जब सर्जिकल स्ट्राइक पर देश फ़र्ज़ी बहस कर रहा था, तभी झारखंड में आदिवासियों के घर तोड़ दिए गए, ज़मीनें छीन ली गयी, विरोध कर रहे 10 आदिवासियों की हत्या पुलिस कार्यवाही में कर दी गयी। आदिवासियों की हत्या पर बहस क्यूं होगी और कौन करेगा? कोई अपने ज़िन्दगी में ‘अच्छे दिन’ की मांग करेगा तो उससे सहसा कह दिया जायेगा कि सीमा पर सेना अपनी जान दे रही है और आपको ‘अच्छे दिन’ वाली ज़िन्दगी की पड़ी है।

कौन यह मानने को तैयार होगा कि, देश की सीमा पर सेना के होने का उद्देश्य ही देश को बाहरी आक्रमण से बचाना होता है। लेकिन क्या आम जनता, बेरोज़गारी, गरीबी और तमाम तरह की समस्यायों से निजात पाने के लिए भी सेना के पास ही जाएगी? सेना तो अपना काम कर ही रही है, लेकिन क्या हमारी सरकार अपना काम कर रही है? यहां एक कुकर्मी, जैसे सफ़ेद कपड़े पहनकर अपने पाप छुपाने की कोशिश करता है, वैसे ही एक विफल सरकार ‘तिरंगा’ ओढ़ लेती है। जब कोई सरकार अपनी देश की सेना का सहारा लेने लगे और सीमा पर ज्यादा रहने लगे तो ज़ाहिर है कि सरकार देश के अन्दर फेल हो चुकी है।

The post क्या सर्जिकल स्ट्राईक एक चुनावी स्ट्रैटजी है? appeared first and originally on Youth Ki Awaaz, an award-winning online platform that serves as the hub of thoughtful opinions and reportage on the world's most pressing issues, as witnessed by the current generation. Follow us on Facebook and Twitter to find out more.


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